जहां लोग अपने घर के ड्राइंग रूम को खूबसूरत सजावटी चीजों से सजाते हैं या कोई सुंदर सीनरी या अपनी यादगार तस्वीरों सजाते हैं, लेकिन एक घर ऐसा भी है जहां बैठक के कमरें में शहीद क्रांतिकारियों की फोटो लगे हुए हैं। परिवार के लोग सुबह उठकर पहले इन्हीं क्रांतिकारियों को नमन करते हैं, उसके बाद ही दूसरा काम करते हैं। यह घर है लखनऊ में कैसरबाग स्थित उदय खत्री का।

क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री के पुत्र है उदय खत्री
उदय खत्री काकोरी ट्रेन एक्शन के महान क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री के पुत्र हैं, जहां वह अपने पिता और उनके शहीद क्रांतिकारियों साथियों की यादों को आज भी संजोये हुए हैं। इस घर में किसी जमाने में क्रांतिकारियों को बहुत आना होता था, उनकी बैठकें होती थी और अपने संस्मरण सुनाए जाते थे।
हिन्दुस्थान समाचार से खास बातचीत में उदय खत्री बताते हैं हमारा पूरा जीवन इसी घर में बीता है और पिता जी के साथियों की बातें सुन-सुन कर ही बड़ा हुआ हूं। इसीलिए उनकी बातें आज भी मेरे दिल-ओ-दिमाग ताजा है। बटकेश्वर दत्त बहुत यहां आए, वह अपने संस्मरण बहुत सुनाते थे।
काकोरी ट्रेन एक्शन में रामकृष्ण खत्री को हुई सजा
उदय इतिहास को याद कर बताते हैं कि 09 अगस्त, 1925 को काकोरी ट्रेन एक्शन हुआ था, उसके बाद सभी भाग गए थे। पिताजी को पूणे में अक्टूबर, 1925 को पकड़ा गया था। लखनऊ में काकोरी षडयंत्र केस के नाम से केस चला, जिसमें उन्हें 10 साल की सजा हुई। जहां आज हजरतगंज में जीपीओ है, पहले वह रिंग थिएटर के नाम से जाना जाता था, वहीं पर केस चला था। पिताजी अपने साथियों के बीच उदासीन स्वामी गोविंद प्रकाश के नाम से जाने जाते थे। वह चोपड़ा परिवार के थे, लेकिन जो पुलिस अधिकारी मि. हॉटन काकोरी केस को बना रहा था, उसको चोपड़ा बोलने दिक्कत हो रही थी, इसलिए उसने सर नेम खत्री लिख दिया। उसके बाद से वह खत्री हो गए। वह बताते हैं कि पिताजी को पहले आगरा जेल में रखा गया था, बाद लखनऊ जेल लाए गए थे। 1935 में यहीं से रिहा हो गए थे।
ये क्रांतिकारी आते थे इस घर में
उदय ने बताया कि यहां हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन पार्टी के परमानंद पाण्डेय, बाबा पृथ्वी सिंह आजाद, सचिन नाथ बख्शी, राम दुलारे त्रिवेदी, मुकुंदी लाल, राजकुमार सिंह, प्रेम किशन खन्ना, विष्णु शरण दुबलेश, उपेंद्र नाथ सान्याल सहित अन्य कार्यकर्ता आते थे। इसके बाद हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक पार्टी से दुर्गा भाभी, मनमथ गुप्त, शिव वर्मा, यशपाल व उनकी पत्नी प्रकाशवती पाल, विजय कुमार सिन्हा आदि थे।
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वह बताते हैं कि हमारे घर की दीवारों पर शहीद क्रांतिकारियों की तस्वीरें ही लगी हैं क्योंकि इन्हीं शहीदों के कारण ही आज हम स्वतंत्र देश में रह रहे हैं और खुली हवा में श्वांस ले रहे हैं।
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