आधिकारिक रूप से गुरुवार को समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन के प्रत्याशियों की घोषणा हो गई। सपा के सहारे रालोद की मंशा अपना खोया मुस्लिम और जाट वोट समीकरण वापस पाने तथा सियासी सूखा खत्म करने की है।
रालोद और सपा के बीच कई सीटों के टिकट को लेकर खींचतान चल रही थी। गुरुवार को इस खींचतान को दरकिनार करते हुए रालोद-सपा गठबंधन ने अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया। मेरठ जनपद की किठौर सीट पर सपा ने अपना दावा बरकरार रखा और पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर को प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसी तरह मेरठ शहर सीट से विधायक रफीक अंसारी को फिर से समाजवादी पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा के 04 नेता रालोद टिकट पर चुनाव लड़ेंगे।
2013 दंगों में बिगड़ गया था समीकरण
पश्चिम उप्र में रालोद का सियासी समीकरण जाट और मुस्लिम वोट बैंक रहा है। 2013 के मुजफ्फ्रनगर दंगों में रालोद का यह समीकरण बिखर गया। इसके बाद ही रालोद का सियासी वजूद खत्म हो गया। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में रालोद मुखिया रहे स्वर्गीय अजित सिंह और उनके बेटे जयंत सिंह भी चुनाव हार गए। 2017 के विधानसभा चुनावों में छपरौली से जीता एकमात्र रालोद विधायक भी भाजपा में शामिल हो गया।
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कई सीटों को लेकर फंसा हुआ है पेंच
रालोद और सपा के बीच अब भी कई सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है। मेरठ जनपद की सिवालखास सीट पर दोनों ही पार्टियां अपना-अपना दावा कर रही हैं। सपा से 2012 में इस सीट से गुलाम मोहम्मद विधायक रह चुके हैं। जबकि रालोद इस सीट को अपना मजबूत गढ़ मानती है। इसी तरह से मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना सीट पर भी दोनों पार्टी अपना दावा कर रही हैं। बुढ़ाना से 2017 के चुनाव में सपा प्रत्याशी प्रमोद त्यागी कम अंतर से चुनाव हारे थे। इसलिए सपा फिर से इस सीट पर अपना दावा कर रही है। जबकि रालोद भी इस सीट को अपने पाले में चाहता है।