राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने गणतंत्र दिवस पर भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था का मुद्दा उठाया है। गणतंत्र दिवस के महत्व को समझते हुए उन्होंने भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था का जिक्र किया, जहां लोगों का दायरा वास्तव में मनुष्यों के गरिमापूर्ण उपयोग से परिलक्षित होता था। उन्होंने उस गरिमापूर्ण उपयोग की मदद से वर्तमान गणतंत्र प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता पर सवाल उठाया । उनका सुझाव है कि हमारा संकल्प भारत में वास्तविक गणतंत्र की स्थापना होना चाहिए। यह बातें उन्होंने आज त्रिपुरा के खैरपुर के सेवाधाम में गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद कही।
आज सुबह डॉ. मोहन भागवत ने सभी कोरोना नियमों का पालन करते हुए राष्ट्रीय ध्वज फहराया और राष्ट्रगान गाकर गणतंत्र दिवस के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने गणतंत्र दिवस के महत्व पर चर्चा करते हुए भारत के प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का शासन जनता के गरिमापूर्ण उपयोग से ही झलकता था। वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी उसी गरिमापूर्ण प्रयोग द्वारा विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने प्राचीन गणतंत्र का उल्लेख करते हुए वैशाली, लिच्छबी शासन का विषय उठाया।
उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस का उत्सव राष्ट्रीय ध्वज फहराने की भावना का प्रतिबिंब है। उनके अनुसार राष्ट्रीय ध्वज के गेरुआ रंग के वातावरण में प्राचीन भारत से नवयुग तक नव भारत की संस्कृति का निर्माण हुआ है। उनका दावा है कि गेरुआ रंग भारत की शाश्वत पहचान है जो बलिदान, वीरता और वीर्य का भी प्रतीक है। इसी तरह, सफेद रंग शांति का संदेश देता है, जो भारत की आत्मा है। उन्होंने कहा कि भारत अनादि काल से पूरी दुनिया में शांति लाने का प्रयास करता रहा है। उनका कहना है भारत एक हरे-भरे जंगल और प्रकृति के अनुकूल देश है। हरी-भरी प्रकृति का दोहन करके नहीं, बल्कि हरे-भरे जंगल की रक्षा कर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ना भारत की परंपरा है। इसलिए हरा रंग प्रगति और माता लक्ष्मी का प्रतीक है।
डॉ. भागवत के अनुसार आगे बढ़ने का मतलब सिर्फ व्यक्तिवाद नहीं, बल्कि समग्रता है। भारत का धर्म सभी के संयुक्त प्रयासों से उस समग्रता को एक साथ लाना है। उन्होंने कहा कि भारत का यह धार्मिक रवैया राष्ट्रीय ध्वज के चक्र के माध्यम से प्रकट हुआ है। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी रंगों का प्रतीकात्मक उपयोग हमारे जीवन द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए और हमारा संकल्प पूरे भारत में एक वास्तविक गणतंत्र की स्थापना होना चाहिए।