‘मरते दम तक पीटते रहे, शरीर पर पेशाब किया’: पिता को खोने वाली कश्मीरी पंडित महिला ने सुनाया अपना अनुभव, भैरव मंदिर टूटते देखा था

इस्लामी चरमपंथियों द्वारा कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर बनी फिल्म ‘The Kashmir Files’ को लोग हाथोंहाथ ले रहे हैं। इसी बीच नब्बे के दशक के कई पीड़ितों की कहानियाँ भी सामने आ रही हैं। इसी तरह एक महिला ने अपने अनुभव ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ के माध्यम से शेयर किए हैं, जिसमें उन्होंने लिखा है कि जिस कश्मीर में वो बड़ी हुईं वो काफी अलग था और वो जब भी आँखें बंद करती हैं, उन्हें सुन्दर चिनार के पेड़, दूधगंगा नदी और भैरव मंदिर प्रकाशित हुए दिखते हैं।

उन्होंने लिखा है कि उनका पालन-पोषण एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। उनके पैतृक निवास स्थान पर रह रहे उस परिवार में तब 18 लोग थे। लेकिन, 1989 आते-आते बदल गया और आए दिन ‘बंद’ का आयोजन होने के साथ-साथ हर दूसरे दिन हड़ताल होती रहती थी। उन्होंने उस घटना को याद किया, जब जस्टिस गंजू को कश्मीरी पंडित होने के कारण मार डाला गया था। महिला ने कहा कि उन्हें तब ये समझने में काफी समय लग गया कि हमारे समुदाय को क्यों निशाना बनाया जा रहा है।

कश्मीरी पंडित महिला ने लिखा है, “घर में ये चर्चा चलती थी कि हमें क्यों निशाना बनाया जा रहा। पापा कहते थे कि शायद इसीलिए, क्योंकि वो लोग ऊँचे पदों पर थे। मेरे दादाजी का मानना था कि शायद राजनेताओं से टकराने के कारण ऐसा हो रहा हो। इसके बाद हमें पहला झटका तब लगा, जब हमारे एक रिश्तेदार की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई। तब भी किसी को इसका भान नहीं था कि पूरे समुदाय को साफ़ करने के लिए एक साजिश रची जा रही है।”

उन्होंने याद किया कि 19 जनवरी, 1990 को मस्जिद से एक घोषणा की गई। तब वो अपने कमरे में थीं। वो तब अपने मेडिकल परीक्षाओं के लिए तैयारी कर रही थीं। उन्होंने बताया कि तभी उनके चाचा दौड़ते हुए आए, कमरे में लाइट्स ऑफ किए और काँपते हुए कोने में बैठ गए। इसके बाद पूरा परिवार घुप्प अँधेरे में छिप गया। महिला के अनुसार, मस्जिद से घोषणा हुई – “कश्मीर की आज़ादी ज़िंदाबाद! हमें पूरे कश्मीर से हिन्दुओं को मिटा देना है।”

कश्मीरी पंडित महिला ने उस समय की दास्ताँ सुनाते हुए कहा कि तब मस्जिद से ये घोषणा भी की गई थी कि हम हमारी जमीन पर हिन्दुओं को नहीं रहने देंगे, उन्हें जाना होगा और अपनी महिलाओं को हमारे लिए छोड़ना होगा। महिला के अनुसार, तभी ‘भारत की मौत’ और ‘काफिरों की मौत’ का नारा लगाते हुए भीड़ सड़कों पर उतर आई और उनके चाचा ने कहा – कोई नहीं बचेगा। तभी लोगों को अचानक से एहसास हुआ कि वो अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक बना दिए गए हैं।

महिला ने अपने अनुभव साझा करते हुए याद किया कि जब उन्हें लग रहा था कि पहले ही निकल जाना चाहिए था, परिवार के कुछ लोगों को भरोसा था कि कुछ नहीं होगा, क्योंकि हम ‘उनके’ साथ कई वर्षों से रह रहे हैं। लेकिन, इसके बाद उनके घर के सामने स्थित भैरव मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया। दीवारों पर लिख दिया गया कि कोई यहाँ रहना चाहता है तो उसे मुस्लिम बनना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि तब घर की महिलाएँ सिंदूर मिटा कर बाहर जाती थीं और पुरुषों ने डर के मारे जनेऊ पहनना बंद कर दिया था।

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महिला ने बताया, “इसके बाद शिवरात्रि पर एक युवा बैंक कर्मचारी को सैकड़ों लोगों के सामने मार डाला गया। लोगों ने बताया कि अंतिम साँस तक भीड़ उसे पीटती रही और उसके शरीर के ऊपर पेशाब भी किया गया। मेरे चाचा चंडीगढ़ जाने को कहने लगे, लेकिन मेरे पिता ने कहा कि ये हमारा घर है और हम इसे क्यों छोड़ें। किसी तरह चाचा मुझे, माँ और चाची को लेकर चंडीगढ़ पहुँचे। मैंने बैग पैक करते हुए जब पूछा कि हम वापस कब आएँगे, तब उन्होंने कहा कि शायद कभी नहीं।”

महिला ने बताया कि उन्हें उस समय का बस इतना ही दृश्य याद है कि वो लोग टैक्सी से निकल रहे थे और उनके पिता एक मजबूर व्यक्ति की तरह हाथ हिला कर विदा कर रहे थे। उन्होंने लिखा, “जैसे ही रात के अँधेरे में टैक्सी गुम हुआ, हमने उसके बाद से कभी पिताजी को नहीं देखा।” सोशल मीडिया पर इस दुःख भरी कहानी को सुन कर लोग उन्हें सांत्वना दे रहे हैं। हालाँकि, कई इस्लामी कट्टरपंथियों को ये बनी-बनाई कहानी लग रही है।