लखनऊ: यूपी चुनाव 2022 से ठीक पहले सत्ताधारी दल के जब 3 मंत्री समेत 14 विधायक इस्तीफा दे दें तो माथे पर चिंता की लकीरें खिंचना लाजमी है. कुछ यही स्थिति है यूपी की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की, लेकिन भाजपा को छोड़कर दूसरे दलों में गए यह नेता आखिर कितने प्रभावशाली है और यह कहां तक बीजेपी को डैमेज कर सकते हैं पढ़ें इस रिपोर्ट में…
यूपी विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और उससे ठीक पहले भाजपा में मची भगदड़ ने प्रदेश के चुनाव को और भी पेंचीदा बना दिया है, जहां कुछ दिन पहले तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर आत्मविश्वास से लबरेज थे और उन्हें विश्वास था कि वह फिर से मुख्यमंत्री की गद्दी संभालने जा रहे हैं ऐसे में उससे ठीक पहले मची भगदड़ से अब यह कॉन्फिडेंस कम जरूर हुआ होगा. पिछले कुछ ही दिनों में योगी सरकार के तीन मंत्रियों समेत 14 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है और ऐसी कयास लगाई जा रही है कि अभी यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है. अधिकतर नेताओं ने सपा की साइकिल की सवारी कर ली है और अब लाल टोपी लगाकर भगवाधारी को आंख दिखा रहे हैं.
अधिकतर ओबीसी वर्ग के दलबदलू नेता
उत्तर प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आबादी 50% से ज्यादा है और ऐसा माना जाता है कि यह वर्ग जिस तरफ चला जाता है सत्ता उसकी आ जाती है. बात बिल्कुल सही है 2017 विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में ओबीसी वर्ग ने भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा जताया था और ऐतिहासिक जीत भी दिलाई थी, लेकिन खास बात यह है कि जो नेता भाजपा का साथ छोड़ रहे उसमें अधिकतम ओबीसी वर्ग के ही नेता है फिर चाहे बात स्वामी प्रसाद मौर्य की हो या फिर धर्म सिंह सैनी की इन लोगों ने भाजपा को सत्ता की चाबी दिलाने में और ओबीसी वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन अब यह लोग पूरी तरह रूठ चुके हैं. सैनी ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि 20 जनवरी तक हर दिन एक मंत्री बीजेपी का दामन छोड़ने जा रहा है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दिन-रात समुद्र मंथन कर रहा है और कवायद इस बात की है कि आगे कोई साथ ना छोड़े.
भाजपा छोड़ने वाले नेताओं पर एक नजर
जिन नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ा है उनके नाम है स्वामी प्रसाद मौर्य, भगवती सागर, रोशन लाल वर्मा, विनय शाक्य, अवतार सिंह भड़ाना, दारा सिंह चौहान, बृजेश प्रजापति, मुकेश वर्मा, राकेश राठौर, जय चौबे, माधुरी वर्मा, आर के शर्मा, बाला अवस्थी और धर्म सिंह सैनी. इनमें से ज्यादातर नेता ओबीसी वर्ग के हैं और अपने क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ रखते हैं ऐसे में चुनाव से ऐन पहले पार्टी छोड़ना भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है.
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भगदड़ से भाजपा पर क्या पड़ेगा असर
ऐसा माना जा रहा है कि जो तमाम नेता भाजपा छोड़कर गए हैं उनमें सबसे ज्यादा प्रभावशाली स्वामी प्रसाद मौर्य है. एक समय में मायावती के खासम खास रहे स्वामी प्रसाद मौर्य 5 बार से विधायक हैं और कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी समुदाय पर अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं. स्वामी मौर्या के साथ ही दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी भी अपने-अपने क्षेत्र में ओबीसी वोटर्स पर अच्छी पकड़ रखते हैं. पूर्वांचल और अवध के जिलों में ओबीसी की सबसे प्रमुख पिछड़ी जाति मौर्य और कुशवाहा की अच्छी खासी आबादी है जो जीत में अहम भूमिका निभाती है.
चुनाव आते ही दल बदल की राजनीति तेज हो जाती है यह इस बार ही नहीं हो रहा पिछले विधानसभा चुनाव में भी एक पार्टी से दूसरी पार्टी में तमाम नेता गए थे, लेकिन उसका बहुत ज्यादा असर भारतीय जनता पार्टी पर देखने को नहीं मिला था और उसे प्रचंड बहुमत हासिल हुई थी. भाजपा छोड़कर गए तमाम नेता इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि उनकी जाति के लोगों को पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा है ऐसे में भाजपा का जातीय समीकरण बिगाड़ने का काम यह नेता कर सकते हैं, लेकिन भाजपा में पड़ी फूट से जहां अखिलेश यादव बहुत खुश हैं तो ऐसे में देखना यह भी होगा कि इसका फायदा समाजवादी पार्टी किस तरह से उठा पाती है क्योंकि उनकी पार्टी में भी टिकट की कयास लगाए तमाम नेता बैठे हैं और अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो उनकी भी नाराजगी देखने को मिल सकती है.