पितृ विसर्जनी अमावस्या पर पितरों के निमित्त गंगा स्नान करने और तर्पण श्राद्ध आदि करने के लिए आज हरकी पौड़ी पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। गंगा स्नान करने के बाद श्रद्धालुओं ने गंगा तट पर ही अपने पितरों के निमित पूजा तर्पण आदि किया।
हालांकि पितृों के निमित्त तर्पण कोरोनाकाल से पूर्व तक नारायणी शिला पर होता था, लेकिन कोरोना के कारण भीड़ को देखते हुए नारायणी शिला मंदिर बंद रखा गया है। इस कारण तर्पण आदि कर्म लोगों ने गंगा घाटों और कुशावर्त घाट पर किए। कहा जाता है कि आज के दिन गंगा स्नान और पितरों के निमित पूजा करने से पितरों को मुक्ति और पुण्य की की प्राप्ति के साथ पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। अमावस्या के साथ ही 16 दिनों से चले आ रहे श्राद्ध पितृों के श्राद्ध-तर्पण के साथ समाप्त हो गए। सायंकाल लोगों ने गंगा के तट पर दीपदान कर अपने पितरों को विदाई दी।
पं. मनोज त्रिपाठी ने बताया कि यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु कि तिथि जानकारी न हो तो वह पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी पितृ विसर्जनी अमावस्या पर गंगा स्नान कर गंगा तट पर और श्री नारायणी शिला मंदिर में पितृों के निमित पूजा करता है तो पितरों को मुक्ति और मोक्ष मिलता है। उन्होंने बताया कि भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का पखवाड़ा पितरों का पखवाड़ा होता है। इन दिनों में अपने पितरों को पिंड दान-श्राद्ध तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिलता है और पितर प्रसन्न रहते हैं। इससे घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध पक्ष में किसी भी वजह से श्राद्ध नहीं कर पाता है तो वह इस पक्ष के आखिरी दिन पितृ विसृजनी अमावस्या के दिन यदि पिंड-दान श्राद्ध आदि कर दे तो पितरों को सदगति मिलती है।
मान्यता है कि आज के दिन पितृ 15 दिन धरती पर रहने के बाद अपने वंशजों से खुश होकर उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद देकर वापस पितृ लोक चले जाते हैं। श्राद्ध पक्ष का समापन होने के चलते इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस दिन उन मृत लोगों के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण कर्म किए जाते हैं, जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं होती है। साथ ही अगर किसी कारण से मृत सदस्य का श्राद्ध नहीं कर पाए हैं तो अमावस्या पर श्राद्ध कर्म किया जाता है।