साल 2014 से 36 प्रमुख चुनावों में हार का सामना कर चुकी, कांग्रेस के सामने गांधी परिवार के नेतृत्व को लेकर नया संकट खड़ा हो गया है। उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित 5 राज्यों में हार के बाद, गांधी परिवार का पिछले 23 साल का सबसे बड़ा विरोध कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कर दिया है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि अब वक्त आ गया है कि ‘घर की कांग्रेस’ की जगह ‘सब की कांग्रेस’ हो। इस हमले के बाद गांधी परिवार के सपोर्ट में आए, अभी कई नेता डैमेज कंट्रोल ही कर रहे थे, कि नाराज गुट G-23 की मीटिंग में गांधी परिवार के करीबी मणिशंकर अय्यर भी पहुंच गए, जो संकट को कम करता नहीं दिख रहा है। जाहिर है लगातार हार से परेशान कांग्रेस का एक धड़ा, अहम बदलाव के लिए कमर कस चुका है।
क्या कांग्रेस को तोड़ना चाहता है G-23
G-23 नेताओं की गुलाम नबी आजाद के घर हुई बैठक में कई अहम संकेत मिले हैं। मसलन मीटिंग में मणिशंकर अय्यर और शशि थरूर की भी मौजूदगी कई संकेत दे रही है। क्योंकि 2020 में G-23 द्वारा लिखे गए पत्र में हस्ताक्षर करने वाले थरूर पिछले दो साल से गुट से दूरी बनाकर चल रहे थे। जबकि मणिशंकर अय्यर गुट का हिस्सा नहीं थे। वही इस बैठक में पूर्व कांग्रेस नेता शंकर सिंह बघेला भी मौजूद थे।
हालांकि कांग्रेस में बदलाव की मांग कर रहे G-23 की कोशिशों पर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा ‘उन्हें 100 बैठकें करने दीजिए, सोनिया गांधी को कोई कमजोर नहीं कर सकता। ये लोग बैठकें करते रहेंगे और भाषण देते रहेंगे। सोनिया गांधी वो सभी कदम उठा रही हैं, जिन पर सीडब्ल्यूसी में चर्चा हुई थी। अगर वे इस तरह से बोलेंगे तो इसका यह मतलब यही होगा कि वे बैठकें करके पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
वहीं पार्टी तोड़ने के मसले पर देर रात G-23 की बैठक के बाद शामिल हुए नेताओं ने साफ कर दिया है कि वह, तब तक पार्टी नहीं छोड़ेंगे, जब तक उन्हें पार्टी से निकाला नहीं जाएगा। इस बार की बैठक में G-23 में मूल नेताओं में केवल 18 शामिल हुए थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि उनमें से एक जितिन प्रसाद सहित पार्टी छोड़ चुके हैं, जबकि कुछ बैठक में नहीं पहुंचे।
2014 से इन प्रमुख चुनावों में हुई हार
अगर देखा जाय तो साल 2014 से कांग्रेस के चुनावी अभियान का नेतृत्व सीधे तौर पर राहुल गांधी के पास है। इसके अलावा 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में चुनाव की कमान प्रियंका गांधी के पास रही। इस दौरान 2019 का लोकसभा चुनाव राहुल गांधी की अध्यक्षता में लड़ा गया। हालांकि उन्होंने लोकसभा चुनावों में हार के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। और उसके बाद सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई है। लेकिन अभी तक पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पाया है। सूत्रों के अनुसार, नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले नेताओं का साफ कहना है कि अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के ही पास है। ऐसे में हार की जिम्मेदारी भी उन्हें लेनी चाहिए और पार्टी को सामूहिक नेतृत्व के साथ आगे बढ़ना चाहिए और एक पूर्णकालिक अध्यक्ष भी पार्टी को मिलना चाहिए। नाराज नेताओं की इस दलील को पिछले 8 साल में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों को परिणामों से भी बल मिलता है..
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नोट: -2017 के विधानसभा चुनावों में गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकन सरकार नहीं बना पाई।
– महाराष्ट्र में चौथे नंबर की पार्टी , लेकिन चुनाव बाद गठबंधन कर मौजूदा उद्धव ठाकरे सरकार में सहयोगी है।
– सूची में केवल लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लिया गया है, इसमें उप चुनाव शामिल नहीं हैं।
गांधी नेतृत्व के सवाल पर टूटी थी कांग्रेस
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में पहली बार गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। आज से करीब 23 साल पहले भी ऐसा हुआ था। जब साल 1999 में शरद पवार के नेतृत्व में कांग्रेस के एक धड़े ने सोनिया गांधी के नेतृत्व को अस्वीकार करते हुए पार्टी से नाता तोड़ लिया था। उस समय शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए पार्टी छोड़ दी थी। उस वक्त पीए संगमा और तारिक अनवर ने भी सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए शरद पवार का साथ दिया था।
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उसी दौर में 1998 में ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस का साथ छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था। हालांकि उन्होंने सोनिया गांधी के नेतृत्व की वजह से पार्टी नहीं छोड़ी थी। उनकी नाराजगी सोनिया गांधी से पहले, कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके सीता राम केसरी से थी। जो उन्हें पश्चिम बंगाल में आगे बढ़ने का मौका नहीं दे रहे थे। और बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष सोमेन मित्रा से उनकी दूरियां बढ़ती जा रहीं थी। इसी विरोध के चलते उन्होंने बाद में तृणमूल कांग्रेस का गठन कर लिया।