कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार से बहुत नाराज हैं। पहले ही जब उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर टिप्पणी की थी तभी नाराजगी शुरू हो गई थी लेकिन अब हद हो गई है। हालांकि बेचारे कांग्रेस नेता मजबूर हैं कुछ कर नहीं सकते हैं। वे सही मौके का इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस के एक दिग्गज नेता ने माना कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता जो बयान दे रहे हैं उस पर आलाकमान की सहमति है और वह बयानबाजी सिर्फ शरद पवार की वजह से हो रही है। कांग्रेस नेता यह भी मान रहे हैं कि शरद पवार ही शिव सेना को भी भड़का रहे हैं। कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने चुनिंदा पत्रकारों के सामने कहा कि शरद पवार नियमित रूप से उद्धव ठाकरे से मिलते हैं, जबकि कांग्रेस में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है। अपनी मुलाकातों में पवार क्या खिचड़ी पकाते हैं यह किसी को पता नहीं है।
कांग्रेस के एक नेता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि शरद पवार सिर्फ प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं और विपक्ष की राजनीति को नियंत्रित करना चाहते हैं। वे सिर्फ पांच सांसदों वाली पार्टी के नेता हैं इसलिए चाहे अखिल भारतीय स्तर पर जितनी बड़ी छवि बना लें या जितने नेताओं के साथ बैठक कर लें, उनकी हैसियत बहुत बड़ी नहीं हो जाएगी। उनकी पार्टी बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी 10-12 सीट जीत लेगी। कांग्रेस के नेता यह भी मान रहे हैं कि कांग्रेस को कमजोर साबित करने के लिए भाजपा से ज्यादा मेहनत शरद पवार कर रहे हैं। वे भाजपा की ओर से प्रचारित इस तथ्य को स्थापित करना चाहते हैं कि मुख्य विपक्षी पार्टी कमजोर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल कोई विकल्प नहीं हैं।
कांग्रेस के जानकार नेता ने तंज करने के अंदाज में पूछा कि यह सामूहिक नेतृत्व क्या होता है, जिसकी बात शरद पवार कर रहे हैं? क्या शरद पवार की पार्टी में कोई सामूहिक नेतृत्व है? असल में पिछले दिनों जब इधर-उधर के कुछ नेताओं के साथ शरद पवार की बैठक को लेकर कांग्रेस ने उचित माध्यम से नाराजगी जताई तो पवार को सफाई देनी पड़ी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के बगैर विपक्ष का कोई मोर्चा नहीं बन सकता है। लेकिन तब भी पेंच डालने की अपनी पुरानी आदत की वजह से उन्होंने कहा कि विपक्ष सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा।
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सामूहिक नेतृत्व का क्या मतलब है? नेतृत्व तो किसी एक के हाथ में ही होगा। भले उसे प्रधानमंत्री पद का दावेदार बना कर नहीं पेश किया जाए पर नेता तो किसी को चुनना होगा। अगर किसी को नेता नहीं चुना जाता है तब भी यह तो साफ करना होगा कि नेतृत्व करने वाली पार्टी कौन सी है। कांग्रेस नेताओं ने कहना है कि अपने अपने राज्य से बाहर किसी प्रादेशिक पार्टी का कोई मतलब नहीं है। अगर वे भाजपा से मुकाबला करना चाहती हैं तो उन्हें कांग्रेस के छाते के नीचे आना होगा। कांग्रेस के जानकार नेताओं का यह भी कहना है कि अगर प्रादेशिक क्षत्रप यह सोच रहे हैं कि वे कांग्रेस पर दबाव डाल लेंगे तो यह गलतफहमी है क्योंकि किसी किस्म की जल्दबाजी शरद पवार, ममता बनर्जी को हो सकती है लेकिन राहुल गांधी को नहीं है।