पाकिस्तान (Pakistan) की एक प्रमुख जांच एजेंसी ने इस्लामाबाद में एक हाउसिंग सोसाइटी से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेताओं (Kashmiri Separatist Leaders) पर करीब 100 करोड़ रुपये के गबन का मामला दर्ज किया है. फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (FIA) ने कश्मीरी अलगाववादी नेता अल्ताफ अहमद भट और 15 सहयोगियों पर “धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वास का उल्लंघन” का मामला दर्ज किया है. भट सेंट्रल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू एम्प्लॉइज को ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी (CBRECHS) के अध्यक्ष हैं.
अल्ताफ श्रीनगर के बाहरी इलाके बाग-ए-मेहताब इलाके में रहते हैं. वह पाकिस्तान में हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख नेता हैं. एजेंसी ने कहा है कि आरोपी ने जमीन की वास्तविक कीमत पर विचार किए बिना ज्यादा कीमत” पर एग्रीमेंट बनाया, और रेजिडेंशियल प्लॉट को बिना कन्वर्जन फीस दिए कमर्शियल प्लॉट में बदलकर जमीन पर कब्जे से पहले ही जमीन के मालिकों को पूरा पेमेंट दे दिया. FIA ने इस मामले में दो लोगों – चौधरी नज़ीर अहमद (CBRECHS के कार्यकारी सदस्य) और राणा लियाकत अली (जमीन के मालिक) को गिरफ्तार किया है. यह मामला पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दायर किया गया था. कश्मीरी अलगाववादी नेता जफर अकबर भट का भाई अल्ताफ फरार है.
यह घोटाला अलगाववादियों के लिए बड़ा झटका था
एक पूर्व आतंकवादी कमांडर और अलगाववादी संगठन ‘साल्वेशन मूवमेंट’ के संस्थापक जफर को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कथित रूप से पाकिस्तान के प्रोफेशनल कॉलेजों में MBBS सीटें बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया है, जो कश्मीरी छात्रों के लिए आरक्षित हैं और इस पैसे का इस्तेमाल कथित तौर पर कश्मीर में हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए किया गया था. जफर से राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने टेरर फंडिंग के एक मामले में भी पूछताछ की थी.
हुर्रियत नेता अल्ताफ भट के खिलाफ दर्ज मामला उजागर करता है कैसे कुछ कश्मीरी अलगाववादियों ने आम लोगों को गुमराह कर उन्हें संघर्ष के लिए उकसाते हुए अपना हित साधा. एक घोटाले में जम्मू-कश्मीर की राज्य जांच एजेंसी (SIA) भी जफर अकबर भट और उनके भाई अल्ताफ अहमद भट की तलाश कर रही है. 2020 में सामने आया यह घोटाला अलगाववादियों के लिए बड़ा झटका था जब सुरक्षा एजेंसियों को पता चला कि पाकिस्तान के पेशेवर कॉलेजों में कश्मीरी छात्रों के लिए आरक्षित सीटें कश्मीरी अलगाववादियों द्वारा बेची गई थीं.
इस खुलासे के बाद, जम्मू-कश्मीर पुलिस के आपराधिक जांच विभाग ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ पाकिस्तान के कुछ नामी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में बच्चों को एडमिशन दिलाने के नाम पर ठगने और उस पैसे से कश्मीर में अलगाववाद को आगे बढ़ाने का मामला दर्ज किया था.
धोखेबाजी में साठगांठ
पिछले साल अगस्त में जफर समेत छह आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था. राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने यह भी दावा किया कि इस पैसे का इस्तेमाल कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ाने में किया जा रहा था. जहां जफर ने भोले-भाले कश्मीरी माता-पिता से एडमिशन के नाम पर पैसे ठगने में मुख्य भूमिका निभाया. वहीं उसके भाई अल्ताफ, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने नब्बे के दशक की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर से पलायन किया था, ने पाकिस्तान के प्रोफेशनल कॉलेजों में उनके एडमिशन को अंजाम दिया.
जांचकर्ताओं ने 2014-18 के बीच 80 मामलों की जांच की थी जिसमें छात्रों या उनके माता-पिता से पूछताछ की गई थी और कश्मीर घाटी में कई जगहों की तलाशी ली थी. अन्य सीटों के अलावा हर साल MBBS के लिए 40 सीटें ऑफर की जाती थीं और हर सीट के लिए 10-12 लाख रुपये लिए जाते थे, अधिकारियों ने कहा कि इस स्कैम से जुटाई गई राशि सालाना लगभग 4 करोड़ रुपये हो सकती है.
षडयंत्र का भंडाफोड़
पिछले साल SIA ने मामले की जांच अपने हाथ में ली थी और दोनों भाइयों समेत नौ आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. चार्जशीट में नामित अन्य लोगों में मंजूर अहमद शाह, जो पाकिस्तान में रह रहे हैं, दक्षिण कश्मीर के प्रमुख मौलवी काज़ी यासिर, फातिमा शाह, मोहम्मद अब्दुल्ला शाह, सबजार अहमद शेख और मोहम्मद इकबाल मीर और सैयद खालिद गिलानी शामिल हैं. इस मामले में भट, फातिमा, अब्दुल्ला शाह, सबजार और इकबाल मीर को भी गिरफ्तार किया गया था. काजी यासिर और मंजूर अहमद भट फरार है, जबकि गिलानी पर केवल धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था.
जांचकर्ताओं ने बताया कि यह मामला हुर्रियत नेताओं और पाकिस्तान के बीच गठजोड़ और जम्मू-कश्मीर में स्थिति को अस्थिर करने के प्रयास को उजागर करता है. चार्जशीट में कहा गया है कि आतंकी फंडिंग में हुर्रियत कांफ्रेंस की भूमिका को पाकिस्तानी कश्मीरी छात्रों को प्रोफेशनल एजुकेशन देने की आड़ में लिए गए फंड जैसे सबूतों के माध्यम से उजागर किया गया था.
आतंक को बढ़ावा देना
कई परिवारों ने पाकिस्तान के इशारे पर इस प्रोग्राम का फायदा उठाने के लिए हुर्रियत नेताओं से संपर्क किया, जिसका उद्देश्य मारे गए आतंकवादियों के परिवारों को मदद के तौर पर मुफ्त एमबीबीएस और इंजीनियरिंग सीटें प्रदान करके आतंक को बढ़ावा देना था.
एजेंसी ने कहा कि 2016 में दक्षिण कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद अशांति फैलाने के लिए इस तरह से जुटाए गए फंड का इस्तेमाल किया गया था. एजेंसी के मुताबिक़, “अगस्त 2019 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35A को निरस्त करने के बाद शांति भंग करने के हर संभव प्रयास किए गए.”