जिस देश को अपने राष्ट्रपिता के स्वाभिमान की फिक्र नहीं है, उस देश का भविष्य क्या होगा? यहां पर अगर आप राष्ट्रीय पशु-पक्षी को नुकसान पहुंचाते हैं तो आप कानून का उल्लंघन करते हैं। लेकिन अगर राष्ट्रपिता का अपमान करते हैं, उनकी छवि को नुकसान पहुंचाते हैं तो कोई रोकने वाला नहीं है। आखिर राष्ट्रपिता के लिए कोई कानून क्यों नहीं है? यह सवाल देश के पीवी राजगोपाल ने उठाया है। पीवी राजगोपाल देश के वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक-विचारक, गांधी पीस फाउंडेशन के पूर्व उपाध्यक्ष और गरीब-आदिवासी को जमीन के अधिकार के लिए लड़ रही एकता परिषद के अध्यक्ष हैं। पीवी राजगोपाल का कहना है कि देश में गांधी की कमियां बताने के लिए दुनियाभर की वॉट्सएप यूनिवर्सिटी खुल गई हैं, लेकिन यह बताने वाला कोई नहीं है कि आखिर गांधी के मूल्यों और सिद्धांतों से सीखा क्या जा सकता है।
दुनिया गांधी से सीख रही, हमें फिक्र ही नहीं
पीवी राजगोपाल ने कहा, हमने अर्मेनिया, जार्जिया समेत कई देशों के विश्वविद्यालय में गांधी पीठ की स्थापना की है। वहां पर गांधी की नीतियों और विचारों से भविष्य के रास्ते निकाले जा रहे हैं। वो देश कह रहे हैं कि हमारी समस्याओं का समाधान न अमरीका में है, न यूरोपीय यूनियन में और न ही रूस में। हमारी समस्याओं का समाधान गांधी में है। बेल्जियम ने हमसे सलाह मांगी कि आखिर हम कैसे शिक्षा व्यवस्था में गांधी के अहिंसा सिद्धांत को शामिल कर सकते हैं। हम कैसे नॉन वॉयलेंस गर्वेनेंस बना सकते हैं। मतलब पूरी दुनिया गांधी के सहारे एक नई दिशा में जाना चाहती है, लेकिन हमारी सरकार को फिक्र नहीं है। हमने रक्षा मंत्रालय तो बनाया, लेकिन क्या देश में शांति मंत्रालय नहीं बनाया जा सकता है? मैंने खुद प्रधानमंत्री से विचार करने को कहा है। सेना के सहारे अगर गांधी और बुद्ध का देश शांति खोजेगा तो क्या वह मिलेगी? भूटान के पूर्व प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों सबके सामने जिक्र किया था कि हैप्पीनेस इंडेक्स का विचार भूटान को महात्मा गांधी की नीतियों से आया।
जीवन शैली नहीं बदल सकते तो गांधी को ही बदल रहे
गांधी की यादों से देश को मुक्त करने की कोशिश हो रही है। हम अपने आप को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। गांधी कहते हैं कि सच बोलो, सादगी से रहो, जीवन मूल्यों में आदर्श लाओ। लेकिन हम झूठ बोलना चाहते हैं, पैसा इकठ्ठा करना चाहते है। ऐेसे में जिन मूल्यों को हम जीना चाहते हैं कि उनसे पूरी तरह से विपरीत हैं गांधी। हमारी जीवन शैली में गांधी फिट नहीं बैठ रहे हैं। ऐसे में हम जीवन शैली नहीं बदलकर गांधी को ही बदलना चाह रहे हैं। पूरा देश इस कोशिश में है कि गांधी से कैसे मुक्ति मिले। गांधी को खत्म करने की कोशिश चल रही है। अरविंद केजरीवाल ने गांधी के नाम पर आंदोलन किया और सरकार में आते ही गांधी की ही तस्वीर हटा दी। भाजपा की प्राथमिकता में गांधी हैं ही नहीं। कांग्रेस चाहती तो गांधी के सिद्धांतों पर चल सकती थी, लेकिन उसने अपनी अलग दिशा चुनी।
युवा समझें, समाधान नहीं हैं साइलेंस और वॉयलेंस
हमें युवाओं को समझाने की जरूरत है कि हिंसा और चुप्पी दोनों ही समाधान नहीं हैं। किसी भी समस्या का समाधान गांधी की अहिंसात्मक सोच है। जिसमें गलत के खिलाफ खड़े होकर बात करने की आजादी भी है। हमें युवाओं को यह भी समझाने की जरूरत है कि जिम्मेदारी आने पर पैसा नहीं बल्कि नया समाज खड़ा करने पर काम करना है। पैसे पर अभिमान करने के बजाय हम अपने इतिहास पर गर्व करें। हम परमाणु ऊर्जा से लेकर कंप्यूटर तकनीकी में भी शीर्ष पर नहीं हैं। लेकिन हम सत्य, अहिंसा और संस्कार में शीर्ष पर हैं। बुद्ध और गांधी जैसे लोग इस देश में हुए हैं, हमें दुनिया को गांधी के अहिंसात्मक समाज को बनाने में दिशा दिखानी चाहिए। दुनिया को इस वक्त में सबसे ज्यादा जरूरत इसी की है।
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हर समस्या का समाधान गांधी में
हमें गांधी को स्कूलों के भीतर लेकर जाने की जरूरत है। उन्हें बताने की जरूरत है कि आखिर गांधी के सहारे कैसे नया समाज और नया कल बनाया जा सकता है। आज के वक्त में हर समस्या का समाधान गांधी की नीतियों के भीतर ही है। क्लाइमेट क्राइसिस भी गांधी के सादा जीवन से बेहतर किया जा सकता है। ग्रेटा थनबर्ग जैसे बच्चे भी गांधी के सिद्धांतों के सहारे आज क्लाइमेट क्राइसिस पर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आर्थिक, समाजिक और राजनीतिक समस्याओं के समाधान भी गांधी में हैं। लेकिन हमारी सरकार और नेता गांधी के सिद्धांत पर चल नहीं सकते, इसलिए वह उनमें समाधान नहीं तलाशते हैं। यही वजह है कि गांधी की नीतियों का महत्व आज के दौर में कुछ बचा नहीं है।