जम्मू-कश्मीर के हथियार और बंदूक लाइसेंस घोटाला मामले की जांच करते हुए सीबीआई ने बड़ा कदम उठाया है। दरअसल, इस मामले में सीबीआई ने सूबे के 22 ठिकानों पर छापेमारी की है। इन ठिकानों में -कश्मीर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शाहिद इकबाल चौधरी का आवास भी शामिल हैं। इसके अलावा सीबीआई ने कई अन्य सरकारी ठिकानों पर भी छापेमारी की। सचिव (जनजातीय मामले) और सीईओ मिशन यूथ जम्मू-कश्मीर शाहिद इकबाल चौधरी कठुआ, रियासी, राजौरी और उधमपुर जिलों के डिप्टी कमिश्नर के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं।
सीबीआई को पूर्व राज्यपाल ने दी थी जांच की जिम्मेदारी
प्रारंभिक जांच से पता चला था कि एक आईएएस अधिकारी शाहिद इकबाल चौधरी ने गैर-जम्मू-कश्मीर निवासियों को बड़ी संख्या में फर्जी बंदूक लाइसेंस जारी किए थे। तब वह जिला उपायुक्त (डीसी) के रूप में तैनात थे। अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि 2012 के बाद से जम्मू-कश्मीर में अवैध रूप से दो लाख से अधिक बंदूक लाइसेंस जारी किए गए हैं। इसे भारत का सबसे बड़ा बंदूक लाइसेंस घोटाला माना जाता है।
शनिवार को की गई इस छापेमारी के दौरान जम्मू, श्रीनगर, उधमपुर, राजौरी, अनंतनाग, बारामूला, दिल्ली सहित लगभग 40 स्थानों पर तत्कालीन लोक सेवकों (आईएएस अधिकारियों) सहित लगभग 22 जगहों पर तलाशी ली। केंद्रीय एजेंसी कम से कम आठ पूर्व उपायुक्तों (डीसी) की जांच कर रही है।
आपको बता दें कि वर्ष साल 2012 के बाद से जम्मू-कश्मीर से दो लाख से अधिक बंदूक लाइसेंस अवैध रूप से जारी किए गए हैं। इसे भारत का सबसे बड़ा गन लाइसेंस रैकेट माना जाता है। साल 2020 में आईएएस अधिकारी राजीव रंजन समेत दो अधिकारियों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। रंजन और इतरत हुसैन रफीकी ने कुपवाड़ा जिले के उपायुक्त के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कथित तौर से अवैध रूप से ऐसे कई लाइसेंस जारी किए थे।
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इस मामले में पिछले साल फरवरी में एजेंसी ने एक निजी व्यक्ति को भी गिरफ्तार किया था, जो लोक सेवकों सहित अन्य सह-आरोपियों के साथ कई वित्तीय लेनदेन में शामिल था। सीबीआई पहले ही कह चुकी थी कि उसने इस मामले में गहरी जड़ें जमाने वाली साजिशों का खुलासा किया है। इस घोटाले का पता पहली बार 2017 में राजस्थान के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने लगाया था, जब उन्होंने रंजन के भाई और बंदूक डीलरों के लिए बिचौलिए के रूप में काम करने वाले अन्य लोगों को गिरफ्तार किया था। अब इसे मामले को पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने सीबीआई को सौंप दिया गया था, जिसके बाद सीबीआई ने इस घोटाला में जम्मू-कश्मीर सरकार के अधिकारियों पर छापेमार की कार्रवाई को अंजाम दिया।