सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सभी याचिकाएं ख़ारिज कर दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्थिक फैसले को पलटा नहीं जा सकता। साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार और आरबीआई के बीच छह महीने तक बातचीत हुई थी।
सरकार (government) द्वारा नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया गया था। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर (Justice S Abdul Nazeer) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं, केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद 7 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से रिकॉर्ड मांगा था
बेंच में जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम (Justices A S Bopanna and V Ramasubramanian) भी शामिल हैं, जिन्होंने सरकार और RBI को 8 नवंबर 2016 की अधिसूचना के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया से संबंधित रिकॉर्ड पेश करने के लिए कहा था।
बता दें कि जस्टिस नज़ीर 4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में तर्क दिया था कि आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 26 (2) में नोटबंदी की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
अधिनियम की धारा 26(2) में कहा गया है कि RBI की केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर केंद्र सरकार (Central Government) भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह घोषित कर सकती है कि इस तारीख से किसी भी बैंक नोटों की कोई भी श्रृंखला बैंक के निम्न कार्यालय या एजेंसी को छोड़कर अन्य जगह मान्य नहीं होगा।
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सरकार ने केंद्रीय बैंक को सलाह दी- पी चिदंबरम
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम (Senior Advocate P Chidambaram) ने तर्क दिया कि अधिनियम के अनुसार सिफारिश आरबीआई की ओर की जानी चाहिए थी। लेकिन इस मामले में सरकार ने केंद्रीय बैंक को सलाह दी थी, जिसके बाद उसने सिफारिश की। उन्होंने कहा कि जब पहले की सरकारों ने 1946 और 1978 में नोटबंदी की थी, तो उन्होंने संसद द्वारा बनाए गए कानून के जरिए ऐसा किया था।