नई दिल्ली: हिंदू धर्म में जप, ध्यान और साधना का गहरा महत्व है। माना जाता है कि मन को शुद्ध करने और भगवान के करीब पहुंचने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका माला जप है। लेकिन इसके साथ कुछ नियम और पारंपरिक विधियां जुड़ी होती हैं, जिनका पालन करने पर जप का फल और भी शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं माला जप से जुड़े आवश्यक नियम और सही तरीके।
कौन सी माला जप के लिए सर्वोत्तम है?
जप के लिए अलग-अलग प्रकार की मालाएँ उपयोग की जाती हैं, और हर माला का अपना विशेष महत्व है।
- तुलसी की माला – सबसे पवित्र और शुभ मानी जाती है।
- रुद्राक्ष की माला – शिव भक्तों में अत्यंत प्रचलित, मन को स्थिर करती है।
- पीले मोती या मूंगे की माला – मन को शांत रखती है, ध्यान बढ़ाती है, मानसिक एकाग्रता में सहायक।
आस्था और उद्देश्य के अनुसार योग्य माला का चुनाव साधना को अधिक प्रभावी बनाता है।
माला फेरने का सही तरीका
माला जप के दौरान कुछ शास्त्रीय नियमों का पालन जरूरी है—
- माला हमेशा सही ढंग से और सम्मानपूर्वक पकड़ें।
- माला को नाभि से नीचे न ले जाएँ।
- माला को नाक के ऊपर भी न ले जाएँ।
- जप करते समय माला को छाती से चिपकाकर न रखें।
यदि आप आंखें खोलकर जप कर रहे हैं, तो नजरें भगवान पर टिकाएँ।
यदि आंखें बंद हैं, तो मन में भगवान की छवि को केंद्र में रखें।
सबसे महत्वपूर्ण—
- माला को कभी जमीन पर न गिरने दें।
- उसे हमेशा साफ, ऊँची और सुरक्षित जगह पर रखें।
जाप से पहले शुद्धता का ध्यान रखें
जप शुरू करने से पहले माला और स्वयं की शुद्धि का नियम अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- पहले अपने ऊपर थोड़ा सा गंगाजल छिड़कें।
- इसके बाद माला को भी गंगाजल से शुद्ध करें।
- जिस स्थान पर जप करना है, उसे साफ रखें।
- स्वच्छ आसन पर बैठकर ही माला जप करें।
शुद्ध वातावरण में किया गया जप मन को एकाग्र करता है और साधना की शक्ति बढ़ाता है।
माला में मनकों की संख्या और मंत्र जप
आमतौर पर माला में 108 मनके होते हैं, परंतु 21 या 51 मनकों वाली मालाएँ भी प्रचलित हैं।
- जिस मंत्र का जप करना है, उसी उद्देश्य की माला का उपयोग करें।
- एक ही माला से अलग-अलग मंत्रों का जप न करें।
यह माला की पवित्रता और जप की शुद्धता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
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