बीते दिनों हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद से उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित जामा मस्जिद चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मामले में अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने शनिवार को अदालत में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। कैला देवी मंदिर ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका के जवाब में एएसआई ने वरिष्ठ खंड की अदालत में यह जवाब दाखिल किया है। इस मामले में एएसआई प्रतिवादियों में से एक है।
एएसआई ने अदालत में दाखिल किया डब्ल्यूएस
जिला सरकारी वकील (सिविल) प्रिंस शर्मा द्वारा अदालत के समक्ष लिखित जवाब (डब्ल्यूएस) के माध्यम से कहा कि याचिका में कहा गया है कि संभल की जामा मस्जिद एएसआई द्वारा संरक्षित है। इसकी कस्टडी सही अधिकारी को दी जानी चाहिए ताकि इसे संरक्षित किया जा सके और लोग वहां जा सकें। वादी द्वारा एएसआई को एक पक्ष बनाया गया था और अब हमने अपना डब्ल्यूएस दाखिल किया है।
शर्मा ने आगे कहा कि अभी तक एएसआई स्थानीय प्रदर्शनकारियों के डर से मस्जिद का कोई निरीक्षण नहीं कर सकता है। 2018 में, हमें शिकायत मिली थी कि मस्जिद में रेलिंग बनाई जा रही थी और जब एएसआई ने समिति को ऐसा करने से रोकने की कोशिश की, तो अधिकारियों को धमकाया गया और उन्हें वहां से चले जाना पड़ा।
2018 में जामा मस्जिद ट्रस्ट के खिलाफ दाखिल की गई थी एफआईआर
उन्होंने आगे कहा कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 30 ए और 30 बी के तहत 19 जनवरी, 2018 को जामा मस्जिद समिति के खिलाफ संभल पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके एक महीने बाद अतिरिक्त संभागीय आयुक्त ने मस्जिद समिति को रेलिंग को हटाने का आदेश दिया था, लेकिन आदेश का कभी पालन नहीं किया गया।
एक समाचार पत्र से बातचीत करते हुए नाम न बताने की शर्त पर एएसआई के एक अधिकारी ने कहा कि इस स्मारक को 1920 में संरक्षित घोषित किया गया था और प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के प्रावधान यहां लागू हैं।
मस्जिद ने खो दिया है अपना मूल स्वरुप
अधिकारी ने कहा कि हमने डब्ल्यूएस में उल्लेख किया है कि हमारे लिए स्थिति कठिन है क्योंकि हम निरीक्षण के लिए अंदर नहीं जा सकते। यही कारण है कि इसकी वर्तमान स्थिति एएसआई को ज्ञात नहीं है। मस्जिद का सबसे हालिया निरीक्षण इस साल 25 जून को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में किया गया था।
उन्होंने आगे कहा कि हमने पाया कि मस्जिद का मूल स्वरूप खो गया है क्योंकि मस्जिद समिति ने जगह को इनेमल से रंग दिया और मरम्मत कार्य के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस का इस्तेमाल किया। वास्तविक पुराने फर्श को संगमरमर के फर्श से बदल दिया गया।
एएसआई टीम को मिला था एक शिलालेख
अधिकारी ने बताया कि जून में किये गए निरीक्षण के दौरान, एएसआई टीम को एक शिलालेख मिला, जिसमें कहा गया था कि जामी मस्जिद का निर्माण 1526 में मीर हिंदू बेग ने किया था और इसकी मरम्मत 1620 में सैयद कुतुब और 1656 में रुस्तम खान ने की थी।
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सर्वेक्षण रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि टीम को मस्जिद के बाईं ओर के प्रवेश द्वार पर एक पुराना कुआं मिला, जिसे अब समिति ने ढक दिया है और उस पर सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ा कमरा तैयार किया गया है। उत्तर-पश्चिमी प्रांत और अवध में स्मारक पुरावशेष और शिलालेख के पृष्ठ 10 पर कुएं का उल्लेख है।
मस्जिद के अन्दर बनी है पुलिस चौकी
सर्वेक्षण दल ने यह भी पाया कि मस्जिद के निचले हिस्से में बने कमरों को दुकानों में बदल दिया गया था और उन्हें समिति द्वारा किराए पर दिया गया था। कथित बदलावों के बारे में पूछे जाने पर, मस्जिद समिति के ज़फ़र अली ने रविवार को बताया कि मस्जिद के अंदर एक इमाम की हत्या के बाद पुलिस चौकी बनाने के लिए कमरे का निर्माण किया गया था। यह एक पंजीकृत पुलिस चौकी है और रेलिंग उसी समय तैयार की गई थी। हमारे पास सभी संबंधित दस्तावेज़ हैं।