सबसे पहले आपको थोड़ा सा फ्लैश बैक में लिए चलते हैं। यही कोई पांच बरस पहले की बात है साल 2017 और अप्रैल का महीना तारीख 9 अप्रैल की जब एक व्यक्ति के फोर्सेज की तरफ से जीप के आगे बांधकर घुमाने की तस्वीर ने खूब सुर्खिांयां बटोरी थी। इस पर काफी चर्चा हुई एवं उसके मानवाधिकार पर गहरी चिंता जाहिर की गयी थी। भारतीय सेना की काफी आलोचना भी हुई थी। लेकिन आज आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं जिसमें कश्मीर की आज़ादी के नाम पर स्त्री से ऐसा व्यवहार किया गया जिसे पिछले तीन दशकों में लगभग भुला दिया गया। आपने फिलिस्तीन में सीरिया में शरणार्थियों के बुरे हाल के बारे में जरूर सुना होगा। कई लोग तो फिलिस्तीन पर कविताएं लिख कर महान भी बन गए। लेकिन क्या आपने किसी स्त्री का बलात्कार करने के उपरांत उसके शरीर को लकड़ी काटने वाली मशीन से दो भागों में चीर देने की किसी घटना के बारे में आपने सुना है? आखिर किसी स्त्री के साथ होने वाली इतनी विभित्स घटना आप तक क्यों नहीं पहुंच पायी? किसी ने उसकी इस खौफनाक मौत पर अफ़सोस क्यों नहीं जाहिर किया? आपने शाहीन बाग से लेकर कई कथाकथित सेक्यूलर विश्वविद्यालयों में पाकिस्तानी लेखक फैज अहमद फैज के ‘हम देखेंगे’ वाले नज्म को बड़ी तल्लीनता से गाते हुए सुना होगा। जिसके एक लाइन में ही ‘बस नाम रहेगा अल्लाह का’ भी आता है। आज आपको ‘आजादी’ के नाम पर ऐसी ही घटना के बारे में बताऊंगा जिसपर पूरा लिबरल गैंग दशकों तक खामोश ही नहीं रहा बल्कि इस तरह की किसी घटना होने से भी इनकार करता रहा।
बस नाम रहेगा अल्लाह का…
जनवरी 1990 में एक रात अचानक कश्मीर घाटी में पावर कट हो गया यानी लाइट चली गई और मस्जिदों से ऐलान हुआ ..उस अंधेरे में घाटी की मस्जिदों से ऐलान हुआ “असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान” (हमें पाकिस्तान चाहिए, पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ)। जिसके बाद शुरू होता है खौफ का वो ऐसा मंजर जिसके जख्म तीन दशक बाद भी ताजा हैं। उस रात उस अंधेरे में कई कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई कई रेप हुए कई लोग हमेशा के लिए लापता हो गए। यहीं से कश्मीर हिंदू विहीन होना शुरू हो गया है यानी कश्मीर पंडित घाटी छोड़कर जाने लगे और सारी दुनिया तमाशा देखती रह गई। पर इसके अलावा और भी बहुत कुछ हुआ। आपने कश्मीर फाइल्स देखी होगी और उसमें पुष्कर पंडित का किरदार निभाने अनुपम खेर की बहू की हत्या का वह खौफनाक दृश्य भी जरूर देखा होगा। आज हम आपको इसी किरदार के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका नाम है गिरिजा टिक्कू जिनके शरीर को लकड़ी काटने वाली मशीन से दो टुकड़े कर दिए थे।
बस नाम रहेगा अल्लाह का…
गुनाह केवल इतना कि वह कश्मीरी पंडित थी। एक हिंदू थी उनकी पूरी कहानी क्या थी यह बताते हैं। कश्मीरी पंडितों का नरसंहार के कहानी तो कश्मीर के बड़े हिंदू नेताओं की हत्या से शुरु हो गई थी। टीएसडब्ल्यू से लेकर जस्टिस नीलकंठ गंजू पर इसके बाद आम कश्मीरी पंडितों को चुन चुन कर मारा जाने लगा। चाहे वह लिबरल सोच वाले हो या किसी राजनीतिक विचारधारा वाले। यानी जो आतंकी थे वे केवल एक नजरिए से देख रहे थे उनके नाम धर्म के नजरिए से यानी अगर आप हिंदू थे तो आपको जीने का कोई अधिकार नहीं था। कश्मीर में रहने का भी कोई अधिकार नहीं था। शुरू में तो कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम समूह ने पूरे कश्मीर की आजादी की मांग करते हुए आजादी आंदोलन के नाम से एक अलगाववादी आंदोलन को शुरू किया। देखते ही देखते कई मुस्लिम संप्रदाय इसमें शामिल हो गए। यह कश्मीर का पूरी तरह से इस्लामीकरण चाहते थे। इन्होंने कश्मीरी हिंदुओं को पूरी तरह से खत्म करने का फैसला कर लिया था। जेकेएलएफ के आतंकियों ने सरला भट्ट नाम की नर्स के साथ गैंग रेप किया फिर उसकी हत्या कर दी। फिर नंबर आता है बांदीपोरा से आने वाली सरकारी स्कूल में लैबोरेट्री असिस्टेंट के रूप में काम कर रही गिरिजा टिकू का। मस्जिदों से ऐलान के बाद बहुत सारे कश्मीरी पंडित घाटी छोड़कर जम्मू जाना शुरू कर चुके थे। जून 1990 में गिरिजा टिकू को एक फोन आया कि घाटी में आजादी आंदोलन शांत पड़ चुका है अब वह आकर अपने बकाए वेतन को ले जा सकती हैं। साथ ही उन्हें आश्वासन दिया गया कि उन्हें किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं है। फिर वह घाटी जाने के लिए जम्मू से निकली और वहां जाकर बकाया वेतन लिया इसके बाद वह अपनी दोस्त से मिलने उनके घर गई पर गिरिजा टिकू को यह नहीं पता था कि उन पर बहुत ही पैनी नजर रखी जा रही है। फिर हुआ यह कि गिरिजा टिक्कू दोस्त से मिलने आई थी उनके घर से ही उनका किडनैप कर लिया गया। इसके कुछ दिनों के बाद उनकी डेट बॉडी काफी बुरी हालत में सड़क के किनारे मिली। पूरी हालत इसलिए क्योंकि उनकी बॉडी दो टुकड़ों में मिली थी। पोस्टमार्टम में पता चला कि गिरिजा टिकू के साथ पहले गैंगरेप हुआ उसके बाद जब वह जिंदा थी तो बीच से उनके शरीर के दो टुकड़े कर दिए गए।
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बस नाम रहेगा अल्लाह का…
इस दर्द की कल्पना हम और आप नहीं कर सकते। लेकिन यह तो सोच सकते हैं कि आखिर गिरिजा टिकू का गुनाह किया था? क्या वह राजनेता या उससे संबंधित थी? जवाब है नहीं। क्या उन्होंने कश्मीरी मुस्लिम को कुछ कहा था? जवाब है नहीं। फिर आखिर उनकी हत्या इस बर्बरता के साथ क्यों की गई? सिर्फ इसलिए कि वह एक हिंदू थी, एक कश्मीरी पंडित थी। मानव अधिकार आयोग, मीडिया, सरकार, कैंडल मार्च गैंग कोई भी उनके इंसाफ के लिए पिछले 32 सालों में आगे नहीं आया। कोई शाहीन बाग या शेरनी कहकर पुकारने वाली बातें भी नहीं हुई और ना ही विदेशी मैगजीनों ने उनकी तस्वीरों को बड़े-बड़े बड़े और भारी-भरकम पर शब्दों के साथ बयां किया। अब आते हैं मुख्य बात पर सबसे दुखद यह है कि उनके केस में कोई गिरफ्तारी ही नहीं हुई। जो भी गुनहगार थे वह कभी पकड़ में ही नहीं आए। लेकिन आखिर में आपको बस इस लाइन के साथ छोड़ जाता हूं- वह आज भी जिंदा है मर कर भी फिजाओं में, बस मार देने से कोई मुर्दा नहीं होता…