उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) द्वारा पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करने का चुनावी वादा एक बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है. अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के लिए यह गेम चेंजर होने जा रहा है. इस मुद्दे ने राज्य सरकार के 16 लाख कर्मचारियों का ध्यान पार्टी की ओर खींचा है जो लंबे समय से पुरानी पेंशन की बहाली की मांग कर रहे हैं.
चुनावों में इन कर्मचारियों के सहयोग की अपेक्षा करते हुए अखिलेश ने जनवरी में घोषणा की थी कि उनकी पार्टी की सरकार आने पर वे फिर से ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करेंगे और इसी के साथ वह विधानसभा चुनावों में राज्य सरकार के कर्मचारियों के सहयोग की उम्मीद भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली से राज्य के लाखों सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और शिक्षकों को मदद मिलेगी. यादव ने कहा कि वह आर्थिक विशेषज्ञों के साथ घोषणा के वित्तीय प्रभावों पर पहले ही बातचीत कर चुके हैं और इस योजना की बहाली के लिए उनको फंड की समस्या नहीं होगी. गौरतलब है कि पुरानी पेंशन योजना की जगह 2004 में एनडीए सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक नई राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) की शुरुआत की थी.
समाजवादी पार्टी के इस दांव से बीजेपी राज्य में बैकफुट पर है
उत्तर प्रदेश में 27 फरवरी को पांचवें चरण का मतदान होने जा रहा है, तो समाजवादी पार्टी ने सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन की बहाली के मुद्दे पर एक जुट करने का प्रयास किया है. हालांकि 2005 में अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव, तत्कालीन मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने एनपीएस के तहत एक नया मैनुअल पेश किया था जिसके माध्यम से अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पर पेंशन के अधिकार से वंचित कर दिया गया था. इसके बाद से कर्मचारी आंदोलन कर रहे थे.
समाजवादी पार्टी के इस दांव से बीजेपी राज्य में बैकफुट पर है. डैमेज कंट्रोल के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने कर्मचारी संघों के साथ बैठक कर उन्हें एनपीएस के फायदों के बारे में समझाने की असफल कोशिश भी की. दिलचस्प बात यह है कि बीएसपी प्रमुख मायावती ने भी ओपीएस बहाली की मांग को अपना समर्थन दिया है. वहीं कांग्रेस ने दोनों योजनाओं के बीच संतुलन बनाकर समाधान देने का वादा किया है.
हालांकि योगी सरकार के साथ-साथ पिछली सरकारों ने भी आंदोलनकारी कर्मचारियों से इस मामले को लेकर चर्चा की थी, लेकिन बातचीत बेनतीजा ही रही. सरोजनी नगर निर्वाचन क्षेत्र की एक शिक्षिका नंदिनी देवी का मानना है कि पुरानी पेंशन योजना की बहाली उनके परिवार को लंबे समय तक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगी. उन्होंने लखनऊ में इसी मुद्दे के आधार पर वोट डाला है अैर साथ ही बताया कि इस मुद्दे के उठने से राज्य भर के सरकारी कर्मचारियों में उम्मीद जगी है. नंदिनी देवी का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के अलावा, 2005 के बाद से सरकारी स्कूलों में नियुक्त हुए कम से कम 10 लाख शिक्षकों को मदद मिलेगी.
राष्ट्रीय पेंशन योजना को 2004 में एनडीए सरकार ने शुरू किया था
पुरानी पेंशन की बहाली का राजनैतिक महत्व इसी से समझ आता है कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले ही इस योजना की बहाली की घोषणा कर चुके हैं. राजस्थान में दिसंबर 2023 में मतदान होना है. ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम में नई पेंशन योजना की तरह कर्मचारियों को पेंशन के लिए योगदान करने की आवश्यकता नहीं होती है. गहलोत द्वारा पिछली योजना को बहाल करने की घोषणा और अखिलेश यादव द्वारा इसे चुनावी मुद्दा बनाने के साथ, राजनीतिक गलियारों में यह धारणा बन रही है कि अन्य राज्य सरकारें भी पेंशन को लेकर पुरानी व्यवस्था में वापस आ जाएंगी.
पिछले 15 वर्षों में सरकार और कर्मचारी संघों में बहस के बीच, बीएसपी, एसपी और बीजेपी के अधीन सभी सरकारों ने आर्थिक तंगी को देखते हुए कोई फैसला लेने में आनाकानी की है. राष्ट्रीय पेंशन योजना को 2004 में एनडीए सरकार ने शुरू किया था और यूपी सरकार द्वारा ये 1 अप्रैल 2005 को राज्य में लागू की गई थी. एनपीएस दरअसल एक योगदान-आधारित पेंशन प्रणाली थी जिसमें रिटायरमेंट की उम्र तक जमा की गई राशि, वार्षिकी के प्रकार और स्तर के आधार पर निवेश रिटर्न का प्रावधान था.
चूंकि एनपीएस में निवेश की जटिलताएं शामिल थीं, इसलिए यह सरकारी कर्मचारियों को आकर्षित करने में विफल रही. कर्मचारियों को वही पुराना सिस्टम ही रास आ रहा था था जिसमें अंतिम बेसिक सैलरी की 50 प्रतिशत राशि के साथ बाकी सुविधाएं और हाइक भी उनको मिल रहे थे. यही नहीं, ओपीएस के तहत, कर्मचारियों को एक सुनिश्चित राशि भी प्राप्त होती थी, फिर भले ही सेवा के दौरान अपने पेंशन फंड में उनका योगदान कितना ही रहा हो.
अखिलेश यादव ने जनवरी 2022 में इसे चुनावी मुद्दा बनाया है
राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत, तत्कालीन एनडीए सरकार ने सशस्त्र बलों को छोड़कर सार्वजनिक, निजी और असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की योजना बनाई थी. हालांकि बाजार निर्धारित होने की वजह से ये किसी भी प्रकार के सुनिश्चित रिटर्न की गारंटी नहीं दे रही थी जिस वजह से कर्मचारी इससे मिलने वाले लाभ को लेकर आशंकित रहे. एनपीएस के तहत पेंशन मूल्य सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारियों द्वारा बचाई गई राशि के अलावा निवेश मूल्य में वृद्धि और गिरावट के साथ पेंशन लाभ योगदान, सदस्य की आयु और निवेश के प्रकार पर भी निर्भर करता है.
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी का कहना है कि कर्मचारी एनपीएस का विरोध इसलिए कर रहे थे क्योंकि इसके शेयर बाजार से जुड़े होने की वजह से लाभार्थियों को रिटर्न के बारे में संदेह पैदा हो रहा था. रिटर्न की गारंटी नहीं होने के अलावा, कर्मचारी एनपीएस से जुड़ी अन्य समस्याओं को लेकर भी आशंकित थे. उनका इशारा कैश निकालने की सीमा और इस पर लगने वाले टैक्स से था. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जनवरी 2022 में इसे चुनावी मुद्दा बनाया है लेकिन इससे पहले ही नवंबर 2021 में लखनऊ में हजारों की संख्या में कर्मचारी और शिक्षक ओपीएस की बहाली की मांग को लेकर एकत्र हुए थे. उनकी ओर से एनपीएस को जुए से जुड़ी योजना बताते हुए नैशनल प्रॉब्लम योजना का नाम दिया गया. इसके बाद कर्मचारियों ने घोषणा की कि वे उस पार्टी को समर्थन देंगे जो ओपीएस पर उनका साथ देगी.
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यूपी शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. दिनेश चंद्र शर्मा ने एनपीएस को वापस लेने के राजस्थान सरकार के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि यूपी में शिक्षक और कर्मचारी इस मुद्दे पर एकजुट हैं और अपनी लड़ाई में जरूर सफल होंगे. पेंशन स्कीम को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया पर एक कैंपेन भी चल रहा है. इस पर गांव कनेक्शन इंग्लिश नाम से ट्विटर हैंडल की ओर से कमेंट किया गया है – उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के माहौल में सरकारी शिक्षक, सफाई कर्मचारी नई पेंशन योजना का कड़ा विरोध करते हैं. वे पुरानी पेंशन योजना की बहाली चाहते हैं.