उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि देश में संस्कृत,संस्कृति और लोक परम्पराओं को स्थापित करने वाले कलाकारों को सम्मानित करने की आवश्यकता है। पूरे शैक्षणिक सत्र में 10—12 अलग-अलग विषयों,भाषाओं के लोक कलाकारों को विश्वविद्यालय सम्मानित करें और उनसे विशेष व्याख्यान करायें। इससे विद्यार्थियों को संस्कृत और संस्कृति के प्रति ज्ञान,जानकारी और अनुभव मिलेगा।
राज्यपाल सोमवार को सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 39वें दीक्षांत समारोह में 37 छात्रों में 63 स्वर्णपदक वितरित करने के बाद उन्हें सम्बोधित कर रही थी। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी को वाचस्पति (डी-लिट)की मानद उपाधि देने के बाद राज्यपाल आनंदीबेन ने उनकी जमकर सराहना की। उन्होंने कहा कि पूरे भारत में लोक गायिकी के नये कलाकारों को तैयार करने के साथ देश के अलग-अलग राज्यों में लोकगीत को जीवित रखने का मालिनी का प्रयास प्रशंसनीय है।
राज्यपाल ने काशी की महिमा का बखान कर कहा कि तीनों लोकों से न्यारी ये नगरी जागृत रहती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी को नव्य और भव्य रूप में प्रतिस्थापित किया है। पिछले दिनों उन्होंने भव्य काशी विश्वनाथ धाम को लोकार्पित किया। पूरे काशी में स्वास्थ्य,सड़क,राजमार्ग, रिंगरोड का विकास हुआ है। धर्म और पर्यटन की दृष्टि से बड़ा कार्य हुआ है। राज्यपाल आनंदी बेन ने समारोह में देवभाषा संस्कृत को मृत भाषा बताने वालों को आईना दिखाया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा नहीं, संस्कृति का मूल आधार हैं। यह सभी भाषाओं की कोशिका है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ‘मन की बात’ में महामहोपाध्याय गंगा नाथ झा,गोपीराज कविराज जैसे विद्वानों का संस्मरण सुनाया था। कैसे इन विद्यानों ने देव भाषा संस्कृत का प्रसार प्रसार किया और इसकी सेवा की। हमें उन विभूतियों के आदर्शों का निर्वाह करने का संकल्प लेना होगा। विदेशी विद्यानों ने भी देवभाषा की सेवा और प्रचार—प्रसार किया। दारा शिकोह भी बनारस आए थे। उन्होंने यहां आकर संस्कृत सीखी। आज मुस्लिम और विदेशी छात्र भी इस विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जो पूरे विश्व में संस्कृत भाषा के महत्व को दर्शाता है। प्राचीनतम इस विश्वविद्यालय के उत्थान के लिए पूर्व मुख्यमंत्री स्व. संपूर्णानंद के योगदान अविस्मरणीय है। राज्यपाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति से संस्कृत भाषा को मजबूती मिली है। आचार्य स्वाध्याय,अध्ययन,विषय प्रबंधन के साथ छात्रों को शिक्षा दे। यदि उनका एक भी छात्र सफल होता है तो आचार्य का जीवन सफल हो जाता है। विद्यार्थी देश की धरोहर है, गुरुजनों,माता—पिता का सम्मान कर जीवन में आगे बढ़े। विद्यार्थी ज्ञान और धर्मयुक्त आचरण से समृद्ध होंगे तो विश्वविद्यालय व देश भी समृद्ध होगा।
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समारोह में मुख्य अतिथि लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि दुनिया के किसी भी देश में भारत जैसी संस्कृति और लोक परम्परा नहीं है। संस्कृति और शास्त्रों के संरक्षण में लोक कलाओं की भूमिका अहम है। मेधावी छात्र देवभाषा में रस उत्पन्न कर इसे प्रासंगिक बना नई पीढ़ी को आकर्षित करें। समारोह में मालिनी अवस्थी ने अपने विद्यार्थी जीवन से जुड़े संस्मरणों को सुना संस्कृत भाषा की महत्ता को बताया । शिक्षक, साहित्यकार, पद्मश्री व पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत स्व. पं. विद्यानिवास मिश्र से जुड़े यादों का उल्लेखकर कहा कि जिसने संस्कृत नहीं पढ़ी। इस पृथ्वी पर उससे बड़ा अभागा कोई नही है। उन्होंने अपने संस्कृत के अध्ययन और ज्ञान को संगीत कला में उतार दिया। उन्होंने छात्रों से आह्वान किया कि जीवन में सीखने का भाव हमेशा रखे। इसके पहले दीक्षांत समारोह की शुरुआत शैक्षणिक शिष्टयात्रा,राष्ट्रगान से हुईं । स्वागत भाषण कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी, समारोह का संचालन डा. रविशंकर पांडेय व धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डाॅ. ओमप्रकाश ने किया।