ऋषिकेश। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने रविवार को यहां कहा कि पश्चिम के देशों और भारत के राष्ट्रवाद में भिन्नता है। भारत का राष्ट्रवाद आध्यात्मिकता पर आधारित अखिल राष्ट्रवाद है। पश्चिम का राष्ट्रवाद मात्र अपने देश का राष्ट्रवाद कहलाता है। लोगों को इस अंतर को समझना होगा। उन्होंने यह विचार भरत मंदिर इंटर कॉलेज में आयोजित संघ के कार्यक्रम में व्यक्त किए।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता मनमोहन वैद्य ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों को 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। संघ ने अपने कार्य के दम पर भारत ही नहीं पूरे विश्व में अलग पहचान बनाई है। विभिन्न क्षेत्रों में 40 से अधिक संगठनों के माध्यम से सेवाकार्य किए जा रहे हैं। संघ की पहचान इसी के कारण बनी है। आज दुनिया भारत को आध्यात्मिकता की दृष्टि से देखना चाहती है।
उन्होंने कहा कि विश्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चर्चा-परिचर्चा सकारात्मक भाव से होती है। यह स्थिति संघ के सकारात्मक क्रियाकलापों से निर्मित हुई है। संघ का मूल कार्य शाखा है। एक घंटे की शाखा से परिवर्तन के नए आयामों को गढ़ने की कला आती है । इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के हर तबके और हर वर्ग में संघ का कार्य पहुंचाना है। उसके लिए संघ अपने सेवा संपर्क और प्रचार जैसे आयामों से कार्य करते हुए आगे बढ़ रहा है। संघ की स्थापना के बाद पहले 25 वर्ष तक संगठनात्मक कार्य हुए। फिर 25 वर्ष बाद अनेक वर्गों में अपना प्रतिनिधित्व बनाने का कार्य हुआ। इसके 50 वर्ष बाद ऐसे कार्य जिनकी देशकाल और वातावरण अनुसार अत्यधिक आवश्यकता महसूस हुई को किया गया ।
संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा कि इस समय आवश्यकता इस बात की है कि संघ का कार्य प्रत्येक परिवार तक पहुंचे, क्योंकि परिवार भी राष्ट्र का मुख्य घटक है। परिवार से ही राष्ट्र की विचारधारा और संस्कार का जन्म होता है। परिवार का निर्माण ही राष्ट्र का निर्माण है । इसलिए प्रत्येक परिवार तक संघ पहुंचे और परिवार में एक दिन सामूहिक रूप से मिल बैठकर भजन, कीर्तन और चर्चा निरंतर हो। इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व में अभी मात्र 15 प्रतिशत संघ शक्ति के जागरण होने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। यदि 80 प्रतिशत हिंदू शक्ति-सृजन शक्ति संगठित हो जाए तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा विश्व संघ के व्यवहार से संचालित हो सकता है । इस मौके पर उत्तराखंड के प्रांत प्रचारक युद्धवीर के अलावा धनीराम, भारत भूषण, सुदाम सिंघल , विपिन करण आदि मौजूद रहे।