कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर डंटे किसानों और केंद्र की सत्तारूढ़ मोदी सरकार बुधवार यानि की 30 दिसंबर को एक बार फिर इस मसले का हल निकालने के लिए बातचीत करने वाले हैं। हालांकि, पिछले छह बार की तरह ही अगर इस बार भी सरकार और किसानों के बीच होने वाली यह बातचीत बेनतीजा ख़त्म हुई तो मोदी सरकार मुश्किल में पड़ जाएगी। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ सडकों पर खड़ा हो जाएगा।
किसान नेताओं ने बताई विपक्ष की प्लानिंग
इस बात की जानकारी मंगलवार को संयुक्त किसान मोर्चा के दो किसान नेताओं और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बीच हुई बैठक के बाद मिली है। दरअसल, मंगलवार को ये किसान नेता शरद पवार से मिलने उनके घर पहुंचे और यहां इनके बीच एक लंबी बैठक हुई। इस किसान नेताओं में एक राष्ट्रीय किसान महासंघ से जुड़े संदीप दीघे हैं और दूसरे महाराष्ट्र के ही राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ से जुड़े शंकर दरेकर।
इस बैठक के बाद किसान नेताओं ने बताया कि एनसीपी प्रमुख ने भरोसा दिया है कि अगर 30 दिसंबर को होने वाली सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच की बातचीत विफल होती है तो विपक्ष की भूमिका निभा रही यूपीए के सभी घटक दल सड़कों पर उतरकर किसान आंदोलन का समर्थन करेंगे। इन किसान नेताओं ने यह भी बताया कि वे सरकार के साथ हो रही बातचीत में शामिल होते रहे हैं।
इन किसान नेताओं में एक थे संदीप दीघे जो महाराष्ट्र के से जुड़े हुए हैं तो दूसरे थे शंकर दरेकर जो महाराष्ट्र के ही राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ से जुड़े हुए हैं। दोनों किसान नेताओं का दावा है कि संयुक्त किसान मोर्चा ने तय किया है कि जो भी दल बीजेपी को छोड़कर किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं उन सब से समर्थन के लिए मिला जाएगा।
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इन दोनों किसान नेता ने दावा किया कि शरद पवार ने मुलाकात के दौरान किसान नेताओं को भरोसा दिलाया है कि अगर 30 दिसंबर दिन बुधवार को होने वाली किसानों और सरकार के बीच की बातचीत सफल नहीं होती तो यूपीए समेत सभी विपक्ष के दल किसानों के समर्थन में सड़क पर उतरेंगे।
आपको बता दें कि दिल्ली की सीमाओं पर किये जा रहे किसान आंदोलन को आज 34 दिन हो रहे हैं। इस दौरान सरकार और किसान नेताओं के बीच छह दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई भी निर्णय नहीं निकल सका है। ऐसे में कल 7वें दौर की बैठक होनी है। ऐसे में इस बैठक से काफी उम्मीद जताई जा रही है। अभी तक हुई बैठकों में सरकार बराबर किसानों को संशोधन का प्रस्ताव देती रही है लेकिन किसान कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ ही अपनी मांगों को डटें हुए हैं।