यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद समाजवादी पार्टी में मचे घमासान के बीच यह तो तय है कि चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव एक साथ नहीं रहेंगे। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवपाल सपा को छोड़ते हैं या अखिलेश उन्हें पार्टी विधानमंडल दल से निकालते हैं। दोनों ही ‘पहले आप-पहले आप’ का दांव खेल रहे हैं। अखिलेश यादव कह रहे हैं कि चाचा जल्दी जाएं तो शिवपाल चुनौती दे रहे हैं कि यदि अखिलेश को लगता है कि वह भाजपा से मिले हुए हैं तो जल्दी विधानमंडल दल से बाहर करें। आइए जानते है कि क्यों दोनों एक दूसरे के पाले में गेंद डाल रहे हैं।

आईए जानते दोनों ने क्या कहा
बता दे कि अखिलेश यादव ने बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा, ”बीजेपी हमारे चाचा को लेना चाहती है तो देर क्यों कर रही है। चाचा को जल्दी से पार्टी में ले ले। बीजेपी के नेता चाचा को लेने में इतना विचार क्यों कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि मुझे चाचा से कोई नाराजगी नहीं है लेकिन बीजेपी ये बताए कि चाचा को लेकर वो इतनी खुश क्यों है। वहीं बाद में शिवपाल यादव ने पलटवार करते हुए कहा कि सपा के 111 विधायक हैं। उनमें से एक वे भी हैं। यदि समाजवादी पार्टी उन्हें बीजेपी में भेजना चाहती है तो निकाल क्यों नहीं देती। इससे पहले भी जब अखिलेश ने कहा था कि जो बीजेपी से मिल गया है वह सपा में नहीं रह सकता तो शिवपाल ने कहा था कि यदि अखिलेश को ऐसा लगता है तो वह तुरंत उन्हें निकाल दें।
रानू मंडल के बाद अपने गाने के दम पर सोशल मीडिया पर छाया ये ट्रक ड्राइवर, आपने देखा क्या ?
विधायकी और दल-बदल विरोधी कानून
दरअसल, इसके पीछे विधानसभा की सदस्यता और दल-बदल विरोधी कानून एक बड़ी वजह है। 1985 में अस्तित्व में आए इस कानून के मुताबिक, सपा के सिंबल पर विधायक बने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के प्रमुख शिवपाल यादव यदि किसी दूसरी पार्टी में शामिल होते हैं या नया दल बनाते हैं तो जसवंतनगर सीट से उनकी सदस्यता स्वत: रद्द हो जाएगी। इसलिए अखिलेश बागी चाचा को बार-बार बीजेपी में शामिल हो जाने को उकसा रहे हैं। वहीं, शिवपाल अपनी सदस्यता बचाने के लिए अखिलेश यादव को विधायक दल से निकालने को कह रहे हैं। ऐसा करने पर शिवपाल यादव दूसरे दल में चले जाने पर भी विधानसभा का सदस्य बने रह सकते हैं।
Sarkari Manthan Hindi News Portal & Magazine