आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा कि श्रद्धा कभी अंधी नहीं होती। उन्होंने कहा कि कई लोग कहते हैं कि उन्हें पूजा-पाठ में विश्वास नहीं है। हालांकि संकट आने पर वे मंदिर जाकर नारियल फोड़ते हैं। उन्हें न पूरा विश्वास होता और न अविश्वास। वे एक तरह से बीच में लटकते रहते हैं। इसके पीछे क्या तर्क है मालूम नहीं होने के चलते ऐसा होता है। कोई बताए तो उन्हें विश्वास भी नहीं होता।
मोहन भागवत ने कहा कि वातावरण में वाद-विवाद बढ़ा है। सहमति का अभाव हो गया है। हमारे यहां कहा गया है कि पहले श्रद्धा रखो। श्रद्धा को नकारा नहीं जा सकता। श्रद्धा कभी अंधी नहीं होती। अंधश्रद्धा हम कहते हैं, लेकिन यह गलत है। अंधापन और श्रद्धा का कोई नाता नहीं है। श्रद्धा का मतलब है परिश्रम करके धारण करना। यह अनुभव का विषय है।
साथ चल सकते हैं धर्म और विज्ञान
मोहन भागवत ने कहा कि धर्म और विज्ञान साथ चल सकते हैं। हमारे यहां सभी बातें अस्तिव से जुड़ी हैं। हम भूमि, पेड़ों और ग्रहों की पूजा करते हैं। हम यह मानते हैं सभी जगह चैतन्य है, इसलिए उसमें पवित्रता है। उसकी पूजा करना है तो सामान्य व्यक्ति को एक तरीका दिया है कि हल्दी, कुमकुम फूल चढ़ाओ।
उन्होंने कहा कि जब हम धर्म और वेद की बात करते हैं तो लोगों को लगता है कि ये पूजा-पाठ की बातें हैं। ये पूजा-पाठ नहीं है, विचार है, तरीका है। हमारे धर्म में विश्वास नहीं, अनुभव की बात की गई है। खुद अनुभव लो और फिर विश्वास रखो, यह श्रद्धा है। ऐसे सत्पुरुष हुए हैं, जिन्हें अपना कोई स्वार्थ नहीं था, उन्होंने अपने अनुभव हमारे सामने रखे हैं। उनका जीवन ऐसा था कि वे झूठ नहीं बोलते थे और कच्ची बात किसी को नहीं बताते थे। इसलिए हम उनपर विश्वास रखते हैं, ये हमारी श्रद्धा है।
शासन चलाने के लिए हुआ था समय का निर्धारण
भागवत ने कहा कि काल गणना पर भी हम विश्वास रखकर चलते हैं। ग्रेकोरियन कैलेंडर रोम के सम्राट ग्रेकोरियन ने शुरू किया था। शासन चलाने के लिए समय का निर्धारण जरूरी था। भारत में शक संवत शुरू हुआ। उसी तरह रोम में राजा ने दिन रात और तिथि तय किया। इससे पहले दूसरा कुछ चल रहा था। हमारे यहां काल गणना कृषि के कारण शुरू हुई। कितने दिनों के बाद वर्षा होगी, बारिश का मौसम कब आता है। हजारों वर्षों के अनुभव के बाद इसके लिए गणना बनी। वो गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार चलती है।
संघ प्रमुख ने कहा कि पार्टिकल रिसर्च जितना है, प्रोटोन, न्यूट्रोन, इलेक्ट्रोन के बाद जो सब आया है, ये ऑब्जर्वेशन से ज्यादा कैलकुलेशन से आया है। क्योंकि इसका ऑब्जर्वेशन हो नहीं सकता, इतनी सुक्ष्म चीज है। इसे देखने जाएंगे तो उसका रूप बदल जाएगा। जैसी है वैसी नहीं दिखेगी, क्या है पता नहीं चलेगा। वहां नियम भी निश्चित नहीं है। जिसे हम पार्टिकल कहते हैं वह कभी-कभी तरंग हो जाता है और जिसे तरंग कहते हैं वो पार्टिकल हो जाता है।
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धर्म को साथ लेकर चले विज्ञान
उन्होंने कहा कि हमारा धर्म वैज्ञानिक है। हमारी अपेक्षा है कि विज्ञान धर्म को साथ लेकर चले। धर्म वो है जो साथ लेकर चलता है, बिगड़ने और बिखरने नहीं देता। अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आएगा, लेकिन उसके हाथ में कितना देना है, कल वही राज करेंगे और इंसान समाप्त हो जाएंगे। यह हो गया तो ज्ञान की दृष्टि से तो यह अलौकिक ज्ञान है, लेकिन वो धर्म नहीं है। एटम खोजा बहुत अच्छी बात है, लेकिन एटम का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए करो या बम के लिए करो, ये च्वाइस तो हमारा है। ये च्वाइस सिखाने वाला धर्म है।