डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भारत को कई सदियों तक विदेशी आक्रांताओं का शासन झेलना पड़ा। यह इतिहास का एक पहलू है। इसके दूसरे पहलू में भारतीयों की संघर्ष गाथा है। जिसने इन विदेशी आक्रांताओं को कभी चैन से बैठने नहीं दिया। इस दौर में भी अनेक हिस्सों में भारतीयों की स्वतन्त्र सत्ता संचालित होती रही। स्वतन्त्रता के लिए आंदोलनों व संघर्षों के सिलसिला तो अनवरत चलता रहा।
भारत की आत्मनिर्भरता पर अंग्रेजों ने किया था चोटिल
भारत सांस्कृतिक रुप से कभी परतंत्र नहीं रहा। आक्रांताओं के अनवरत प्रयासों के बाद भी दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृति सभ्यता शाश्वत रूप में कायम है। करीब पचहत्तर वर्ष पूर्व भारत से विदेशी शासन भी समाप्त हुआ। इसे प्रेरणादायक उत्सव के रूप में मनाने का केंद्र सरकार ने निर्णय लिया।
आजादी का अमृत महोत्सव वर्तमान पीढ़ी में राष्ट्रीय चेतना का संचार करने वाला साबित होगा। इसका शुभारंभ एक बानगी की तरह रहा। पूरे देश में इस दिन उत्साह देखा गया। 12 मार्च का दिन का चयन स्वयं में प्रेरणादायक है। इस दिन महात्मा गांधी ने दांडी मार्च का शुभारंभ किया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उस दौर में नमक भारत की आत्मनिर्भरता का एक प्रतीक था। अंग्रेजों ने भारत के मूल्यों के साथ साथ इस आत्मनिर्भरता पर भी चोट की थी। भारत के लोगों को इंग्लैंड से आने वाले नमक पर निर्भर हो जाना पड़ा। गांधी जी ने देश के इस पुराने दर्द को समझा,जन जन से जुड़ी उस नब्ज को पकड़ा। देखते ही देखते ये आंदोलन हर एक भारतीय का आंदोलन बन गया। हर एक भारतीय का संकल्प बन गया।
मोदी ने नमक के भारतीय विचार का भी उल्लेख किया। कहा कि हमारे यहाँ नमक का मतलब है ईमानदारी भी है। इसमें निष्ठा व वचनबद्धता का समावेश होता है। राष्ट्र के लिए नमक बनाने की यात्रा भी इस विचार की प्रतीक थी। आत्मनिर्भर भारत के विचार में स्वतन्त्रता भी शामिल है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां नमक को कभी उसकी कीमत से नहीं आँका गया। हमारे यहाँ नमक का मतलब है ईमानदारी,विश्वास, वफादारी है। इसको चरितार्थ किया गया। नमक हमारे यहाँ श्रम और समानता का प्रतीक है। आज़ादी का अमृत महोत्सव ही आज़ादी की ऊर्जा का अमृत बनेगा। यह स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणा लेने व आत्मनिर्भरता बनने का भी अमृत है।
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उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान को नरेंद्र मोदी ने नए कलेवर के साथ प्रारंभ किया है। कुछ ही समय में इसके सकारात्मक परिणाम भी दिखने लगे है। रक्षा स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में तो भारत का लोहा दुनिया मान रही है। लेकिन इसके लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान का जागरण भी आवश्यक है। हमको अपने देश के महापुरुषों से प्रेरणा लेनी होगी।