धार्मिक असहिष्णुता के उदय को देख रहा पंजाब! जो इतिहास में प्रदेश को ले जा चुका है बर्बादी की ओर

1980-90 के दशक में भारत के सबसे हिंसक विद्रोहों में से एक खालिस्तान आंदोलन, जिसने 21 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली। लेकिन इसके तीन दशक बाद फिर से पिछले एक साल से खालिस्तान आंदोलन के जीवत होने की खबरें विभिन्न तरह से सामने आती रहीं। पंजाब में हिंसा, बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन, बेअदबी और मादक पदार्थों की तस्करी की सभी घटनाएं मीडिया के एक वर्ग द्वारा खालिस्तान आंदोलन के संभावित पुनरुत्थान से जोड़ी जाती रही। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ खालिस्तानी समर्थकों के घुसपैठ और किसानों के विरोध को वित्त पोषित करने के दावे भी किए गए। हालांकि इन आरोपों का संयुक्त किसान मोर्चा ने जोरदार खंडन किया। 26 जनवरी को लाल किले पर छिटपुट हिंसा और धार्मिक झंडे फहराने से उनकी उपस्थिति निश्चित रूप से साबित सामने आई। मीडिया के कुछ हिस्सों और भारतीय जनता पार्टी के राजनेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि 5 जनवरी को पंजाब में एक फ्लाईओवर पर प्रधानमंत्री मोदी के काफिले को रोकने की साजिश खालिस्तानियों द्वारा की गई थी। पंजाब में बीते कुछ दिनों में चुनाव होने हैं।

धार्मिक असहिष्णुता के उदय को देख रहा पंजाब! जो इतिहास में प्रदेश को ले जा चुका है बर्बादी की ओर

2007 के बाद से पंजाब में सभी चुनावों में खालिस्तान आंदोलन का पुनरुत्थान हमेशा एक प्रमुख मुद्दा रहा है। मौजूदा चुनाव में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी गठबंधन की इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से नोकझोंक होती रही है। खालिस्तान आंदोलन की वर्तमान स्थिति पर न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने कोई व्यापक औपचारिक रिपोर्ट/बयान दिया है। गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2019-2020 में गैर-कानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) को “गैरकानूनी संघ” के रूप में घोषित करने के अलावा खालिस्तान आंदोलन का कोई उल्लेख नहीं है। 1 जुलाई 2020 को नौ खालिस्तानियों को औपचारिक रूप से अगस्त 2019 में संशोधित यूएपीए अधिनियम के तहत आतंकवादी के रूप में नामित किया गया था। ऐसे में राज्य में खालिस्तान आंदोलन के फिर से सर उठाने की हकीकत क्या है? क्या हम खालिस्तान के पुनरुत्थान को देख रहे हैं या यह अस्तित्व के लिए लड़ रहे आंदोलन सिर्फ हवा-हवाई है?

 

पुनरुत्थान के संकेत

 

अगस्त 2019 के बाद से पाकिस्तान से ड्रोन द्वारा हथियार, गोला-बारूद और आईईडी गिराए जाने की कई खबरें सामने आई हैं। 2021 में प्रकाशित हुई द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार बीएसएफ ने एके सीरीज राइफल, पिस्तौल, 3,322 राउंड गोला बारूद और 485 किलोग्राम हेरोइन सहित सभी प्रकार के 34 हथियार बरामद किए थे। हालांकि गिराए गए / बरामद किए गए हथियारों की कुल संख्या के संबंध में कोई आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी निश्चित रूप से एक संकेतक है कि आतंकी संगठन आईएसआई और पाकिस्तान में खालिस्तानी आतंकवादी संगठन विद्रोह को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, बीएसएफ और पंजाब पुलिस बहुत कुशल रही है और अधिकांश हथियार/गोला-बारूद/आईईडी बरामद किए गए हैं। पिछले दो दशकों में आतंकवादी वारदातों का स्तर बहुत क्षीण रहा। 2000 के बाद से संघर्ष प्रबंधन संस्थान की एक परियोजना खालिस्तान एक्सट्रीमिज्म मॉनिटर द्वारा संकलित आधिकारिक स्रोतों के आधार पर आंकड़ों के अनुसार खालिस्तानी आतंकवादी हिंसा के कारण 38 मौतें हुई हैं। इनमें 35 आम नागरिक और 3 आतंकवादी शामिल थे। आतंकवादी हिंसा में कोई सुरक्षाकर्मी नहीं मारा गया है। 2000 से 2007 तक, 21 मौतें हुईं। जबकि  2008 से 2015 के बीच कोई हिंसक घटना नहीं हुई। हालांकि, 2016 से अब तक 14 नागरिक और तीन आतंकवादी मारे जा चुके हैं। नागरिकों की अधिकांश हत्याएं आरएसएस और डेरों के धार्मिक या धार्मिक-राजनीतिक नेताओं और सिख धर्म के अन्य कथित विरोधियों को ही निशाना बनाया गया। 2016 से प्रभावी डेटा आंदोलन को पुनर्जीवित करने के प्रारंभिक प्रयासों का संकेत देता है।

 

बेअदबी बहुत ही भावनात्मक मुद्दा

 

सिखों के गुरु ग्रंथ साहिब से संबंधित बेदाबी या बेअदबी, पंजाब में एक बहुत ही भावनात्मक मुद्दा है। अतीत में आतंकवाद और बेअदाबी के उद्भव के बीच एक आंतरिक संबंध रहा है। निरंकारी संप्रदाय के प्रमुख बाबा गुरचरण सिंह द्वारा कथित बेअदाबी, 13 अप्रैल 1978 को अखंड कीर्तनी जत्था और दमदमी टकसाल और निरंकारी के बीच संघर्ष का कारण बना। जिसके परिणामस्वरूप अखंड कीर्तनी जत्थे के 13 सदस्यों की मृत्यु हो गई और जरनैल सिंह भिंडरावाले का उदय हुआ। इसे अपरोक्ष रूप से पंजाब में आतंकवाद/खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत कहा जा सकता है। 2015 के बरगारी बेअदबी मामले के बाद से बेअदबी के कई मामले सामने आए हैं, जब कपूरथला के एक गुरुद्वारे में दो अज्ञात लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। बेअदबी के मामले सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश कर रहे या चुनावी लाभ हासिल करने की कोशिश करने वाले राजनेता या मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों की करतूत हो सकते हैं।

 

नार्को आतंकवाद

 

पंजाब में मादक पदार्थों की लत आम बात है, पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर तस्करी खालिस्तान आंदोलन के पुनरुद्धार के लिए “नार्को आतंकवाद” को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किए जाने की ओर इशारा करती है। एसजीपीसी पर अकाली दल का दबदबा है और यह वस्तुतः इसकी धार्मिक शाखा के रूप में कार्य करता है।  एसजीपीसी ने 2013 में भिंडरावाले और अन्य शहीदों के लिए अकाल तख्त के बगल में एक स्मारक का निर्माण किया और हाल ही में उनकी तस्वीर को प्रदर्शित करने की अनुमति दी। इस तरह की हरकतों से आतंकियों का मनोबल बढ़ता है। हालांकि पंजाब में खालिस्तान आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए संत जरनैल सिंह भिंडरावाले के सांचे में कोई मास अपिलिंग नेता नहीं है। भिंडरावाले के भतीजे अमरीक सिंह के नेतृत्व में ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन गुटबाजी से परेशान है ंऔर ज्यादातर सिख धर्म के प्रचार में लगा हुआ है। भिंडरावाले की राजनीतिक शाखा दल खालसा ने 1998 में प्रतिबंध समाप्त होने के बाद खुद को पुनर्जीवित किया। सबसे प्रमुख सिख संगठन अमेरिका स्थित सिख फॉर जस्टिस है, जिसने पंजाब को भारत संघ से अलग करने के लिए “जनमत संग्रह 2020” को बढ़ावा दिया है। जनमत संग्रह का पहला चरण ब्रिटेन में 31 मार्च 2021 को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर शुरू किया गया था।

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स्थिति को बदतर होने में देर नहीं लगती

 

खालिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवित करने के लिए आईएसआई, पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी संगठनों और अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी में स्थित खालिस्तान समर्थक संगठनों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, पंजाब में इसके लिए खड़ा होने वाले की संख्या नगण्य हैं। हालाँकि, कई कमजोरियाँ सर्वव्यापी हैं और स्थिति को बदतर होने में देर नहीं लगती। उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिए पंजाब पुलिस को पुनर्जीवित करने और अत्याधुनिक तकनीक के साथ सीमा सुरक्षा कड़ी करने की आवश्यकता है। पंजाब में राजनीतिक दलों को राज्य के वित्त का प्रबंधन करने के लिए आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है, जिस पर 70,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष के राजस्व के साथ 2.87 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है, ऐसा न हो कि विकास की कमी लोगों को “खालिस्तान एल डोराडो” की ओर ले जाए। बहरहाल, मीडिया के उन वर्गों द्वारा राजनीतिक शोषण और सनसनीखेज कवरेज को रोकने के लिए सरकार को खालिस्तान आंदोलन की स्थिति पर एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। पंजाब के लोग हमारे देश में धार्मिक असहिष्णुता, हिंसा और भेदभाव की बढ़ती हुई को गौर से महसूस कर रहा है। स्मरण करो, कि कथित धार्मिक भेदभाव पंजाब विद्रोह के मुख्य कारणों में से एक था। “next could be us” की भावना पंजाब के लिए विनाशकारी होगी।