लखनऊ। आलमी शोहरत याफता और हर दिल अजीज शायर मिर्ज़ा ग़ालिब को उनकी पुन्यतिथि पर बुधवार को याद किया गया और उन्हें खिराजे अकीदत पेश किया गया।
मिर्जा ग़ालिब उर्दू ज़बान में शायरी किया करते थे
नवाबजादा सैय्यद मासूम रज़ा, एडवोकेट ने कहा कि भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वह एक बहुत ही लोकप्रिय शायर के तौर पर जाने जाते थें। मिर्ज़ा ग़ालिब सिर्फ 11 वर्ष की उम्र से शायरी लिखनी शुरू कर दी थी। उनका पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान था।
मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू ज़बान में शायरी किया करते थे मगर फारसी में भी उनकी शायरी बेहद मकबूल थी। ग़ालिब ने इस दुनिया को 15 फ़रवरी 1869 को दिल्ली में अलविदा कह दिया। हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह के पास ही उन्हें दफनाया गया।
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भारतीय डाक वा तार विभाग द्वारा क़रीब 52 साल पहले मिर्ज़ा ग़ालिब पर जारी पुराना और नायाब डाक टिकट और फर्स्ट डे कवर सैय्यद मासूम रज़ा, एडवोकेट की बिटिया इंजिनियर हया फातिमा के कलैक्शन में मौजूद है ।