भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट विश्व के प्रमुख पौराणिक तीर्थों में एक है। धर्म नगरी के कामदगिरि पर्वत पर ही प्रभु श्रीराम ने सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास काल का सर्वाधिक साढ़े 11 वर्षों का समय ऋषि-मुनियों के सानिध्य में व्यतीत किया था। प्रभु श्रीराम के वरदान से ही कामदगिरि पर्वत को मनोकामनाओं के पूरक होने का वरदान प्राप्त हुआ था। तभी से देश भर से करोड़ों श्रद्धालु प्रतिवर्ष अपनी मनौतियों को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकामतानाथ के दर्शन एवं कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने के लिए चित्रकूट आते रहे हैं।

तीर्थ यात्रियों का आवागमन ठप्प होने से भूख से तड़प रही राम की सेना
इधर, कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रकोप से एक बार फिर तीर्थ यात्रियों एवं बाहरी पर्यटकों का आवागमन ठप होने से चित्रकूट में वीरानी छा गई है। जिसका सबसे बुरा असर कामदगिरि पर्वत पर बसेरा बनाने वाले लाखों बेजुबान बंदरों के जीवन पर पड़ रहा है। यूपी-एमपी शासन-प्रशासन की अनदेखी से भूख और प्यास से तड़प-तड़प कर बेजुबानों की मौत हो रहीं है। संतों ने कामदगिरि पर्वत को वन्य जीव अभ्यारण बनाकर बंदरों का संरक्षण किये जाने की मांग की है।
धर्म नगरी के संतो ने यूपी-एमपी सरकार से की कामदगिरि पर्वत को वन्य जीव अभ्यारण बनाने की मांग
भगवान श्रीराम की तपोभूमि होने की वजह से देश-दुनिया में धर्म नगरी चित्रकूट पौराणिक तीर्थ के रूप में विश्व विख्यात है। यह यूपी-एमपी के 84 कोस में फैला चित्रकूट प्रकृति का एक अनुपम उपहार है। अनेकों घने जंगलों, नदियां, पहाड़ों और कंदाराओं समेत तमाम धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक धराहरों को अपनी आंचल में समेटे हुए हैं। सुप्रसिद्ध तीर्थ चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत को भगवान श्रीराम ने मनोकामनाओं का पूरक होने का वरदान दिया था। इसके चलते कोरोना संकट से पहले प्रति वर्ष दो करोड़ से अधिक श्रद्धालु देश भर से चित्रकूट पहुंचकर पतित पावनी मां मंदाकिनी में स्नान करने के बाद मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाते रहे हैं।
वहीं कामदगिरि पर्वत को अपना बसेरा बनाने वाले लाखों बंदरों समेत अनेक दुर्लभ जीव-जंतु तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र रहे है। तीर्थ यात्रियों के चना, फल आदि खिलाने से बंदर एवं गौवंशों की उदर पूर्ति होती रहीं है। इधर, कोरोना महामारी का संकट दोबारा गहराने एवं यूपी-एमपी में नाईट कफ्र्य एवं साप्ताहिक लाक डाउन लगाये जाने के बाद से बाहरी तीर्थ यात्रियों का आवागमन पूरी तरह से ठप हो गया है। जिससे बंदरों आदि जीव-जंतुओं के समक्ष भुखमरी की समस्या खड़ी हो गई है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश शासन-प्रशासन की अनदेखी जीव-जंतुओं के जीवन पर भारी पड़ रहीं है। भूख-प्यास से तड़प रहे बंदरों की आये दिन मौत हो रहीं है। भगवान श्रीराम की सेना के अभिन्न अंग रहे बंदरों को भगवान हनुमान के रूप में पूजा जाता है।
कोरोना संकट के दौर में भूख-प्यास से तड़प-तड़प कर मर रहे बंदरों की दुर्दाशा साधू-संतों से देखा नहीं जा रहा है। कामता नाथ प्रचीन मुखार बिंद मंदिर के प्रधान पुजारी भरत शरण दास महाराज का कहना है कि बंदरों को हमेशा हनुमान के रूप में पूजा गया है। भगवान श्रीराम की तपोभूमि होने की वजह से चित्रकूट में इनका विशेष महत्व है। कामदगिरि पर्वत पर एक लाख से अधिक लाल और काले मुंह वाले बंदर है। आने वाले तीर्थ यात्री अपने हाथों से इन्हे केला, चना, खीरा आदि खिलाकर अपने मन को प्रसन्न करते है। लेकिन कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते बाहरी तीर्थ यात्रियों के चित्रकूट न आने से बंदरों एवं गौवंशों के समक्ष भुखमरी की समस्या खडी हो गई है। शासन-प्रशासन ने ध्यान नही दिया तो बडी तादाद में बंदर भूख-प्याय से तड़प-तड़प कर मर जायेेगें। उन्होंने शासन-प्रशासन से बंदरों के संरक्षण के समुचित प्रबंध किये जाने की मांग की है।
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वहीं चित्रकूट के सुप्रसिद्ध भागवताचार्य आचार्य नवलेश दीक्षित, गायत्री शक्ति पीठ के व्यवस्थापक डा0रामनारायण त्रिपाठी, समाजसेवी महेश प्रसाद जायसवाल, ओम केशरवानी आदि का कहना है कि बंदर चित्रकूट के कामदगिरि परिक्रमा की शोभा है। इनकी अठखेलियां देश-विदेश से आने वाले तीर्थ यात्रियों का मन मोह लेती है। धरती अनेक प्रजातियों का घर है। वन्यजीव पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन जीवों का संरक्षण काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत को वन्य जीव अभ्यारण घोषत कर बंदरों के संरक्षण के समुचित इंतजाम किये जाने की मांग की है।
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