देश में जाति आधारित जनगणना (Caste Wise Census) की मांग एक बार फिर से उठने लगी है. मंडल आंदोलन (Mandal Andolan) से निकले तमाम राजनीतिक दल जातिगत जनगणना की मांग को लेकर मुखर हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने जातीय जनगणना कराने का पूरा प्लान तैयार कर लिया है. जातियों पर आधारित पार्टियों के लिए ये सियासत की एक ऐसी नब्ज़ है जिसके बिना उनकी राजनीति चल ही नहीं सकती है. इस मुद्दे पर नीतीश और तेजस्वी की दोस्ती हो गई. इस मुद्दे पर नीतीश कुमार को बीजेपी (BJP) से रिश्ता तोड़ना भी मंजूर है. मजबूरन में बीजेपी को भी हरी झंडी देनी पड़ी है.
मुसलमानों की जातीय जनगणना की मांग
जातीय जनगणना के बीच अब बीजेपी नेताओं ने मुस्लिम समाज में भी जातीय जनगणना की नई मांग करके बड़ा दांव खेल दिया है. मुसलमानों में सिर्फ शिया और सुन्नी का भेद सुनने को मिला होगा. जातियों की बात अभी तक सिर्फ हिंदुओं में ही सुनने को मिलती थीं, लेकिन मुसलमानों में जातियों (Indian Muslim Caste) की बात पर सियासत नए करवट ले सकती है. भगवा पार्टी इसे 2024 में बड़े मुद्दे की तरह इस्तेमाल कर सकती है.
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क्या मुसलमानों में भी होती हैं जातियां?
बहुत सारे लोगों को तो लगता है कि मुसलमानों में जाति के आधार पर कोई भेद ही नहीं है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मुसलमानों में भी जातियां हैं, लेकिन उनमें हिंदुओं जितने गंभीर मतभेद हैं. मुस्लिम पत्रकार मो. इमरान ने बताया कि हिंदुओं की तरह मुसलमानों में भी जातियां और वर्ण होते हैं. उन्होंने बताया कि जैसे हिंदुओं को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र) में बांटा गया है. उसी तरह से मुलसमानों भी ‘अशराफ़’, ‘अजलाफ़’, और ‘अरज़ाल’ होते हैं. ‘अशराफ़’ को सबसे ऊंचे दर्जे का मुसलमान मानते हैं. ‘अजलाफ़’ को मुसलमानों का ओबीसी वर्ग कहा जा सकता है. इसी तरह से ‘अरज़ाल’ सबसे नीचे वर्ग के मुसलमान होते हैं.