लखनऊ। पूरी दूनिया में लखनऊ जैसा कोई दूसरा शहर नहीं है। अवध की शाम के कहने ही क्या हैं। मुगलकालीन इमारतें इसको चार चांद लगाती हैं। इससे आगे की बात की जाए तो लखनऊ महज गुंबद-ओ-मीनार नहीं, सिर्फ एक शहर नहीं, कूच-ओ-बाजार नहीं। ‘लखनऊ’ यहां रहने वाले हर शख्स की कहानी बयां करता मिल जाता है? जिसमें अवध की परंपराएं विशेष रूप से शामिल होती हैं।
लखनऊ में आम से ख़ास हो गया है लइया-चना
महान साहित्याकार यशपाल पंजाबी, अमृत लाल नागर गुजराती, शिवानी कुमाऊंनी, एपी सेन बंगाली, भातखंडे मराठी थे, लखनऊ में सबका अवदान है लखनऊ में न पत्थर न संगमरमर, लखौर्टी इंट से इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, हुसैनाबाद आदि गुलजार है। सब मिट्टी का करिश्मा है।
यहां की गंगा-जमुनी संस्कृति, आदो-अदब की भाषा, खानपान में लजीज चाट-पकौडी,खस्ता-जलेबी, रबड़ी-मलाई, रेवड़ी-गजक और मुगलई व्यंजनों की चर्चा सात समु़न्दर पार तक सुनने को मिल जाती है। अब इस पहचान में लइया-चने का भी नाम जुड़ गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक वर्चुअल संवाद के दौरान जब लखनऊ में हर चौक-चौराहों बिकने वाली लइया-चना की तरीफ की तो लइया-चना आम से खास हो गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लखनऊ की लोकप्रिय लइया-चना की तारीफ की तो उस समय वह ‘पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि के तहत एक वेंडर्स विजय बहादुर से वर्चुअल संवाद कर रहे थे।
चौक-चौराहे के पास भेलपुरी का ठेला लगाने वाले विजय बहादुर से बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि लखनऊ की लइया-चना तो बहुत मशहूर है। प्रधानमंत्री ने विजय बहादुर से करीब तीन मिनट 40 सेकेंड तक बात की। उन्होंने विजय से पूछा कि आपने क्या काम शुरू किया है? विजय ने कहा कि लइया-चना बेचते है। पीएम स्वनिधि योजना के तहत उन्होंने 40 हजार रूपये लोन लेकर कारोबार में लगाए हैं। पहले बार-बार भागकर बाजार जाना पड़ता था। अब एक बार जाता हूं। और एक सप्ताह तक दुकान चलाता हूं। अब भागदौड़ कम होती है।
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यह सुनकर प्रधानमंत्री ने खुशी जाहिर की और कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि आपका समय भी बच रहा है और आप धंधे में अच्छा ध्यान दे पा रहें है। बोले, वैसे भी लखनऊ में लइया-चना बहुत मशहूर है तो बिकता भी खूब है। आपके यहां तो भीड़ लगती होगी। शाम को। यह सुनकर विजय ने कहा कि जी, मार्केट में दुकान है। शाम की शुरूआत लोग लइया-चना से ही करते है।
जवाब सुनकर प्रधानमंत्री ने हंसते हुए कहा कि लखनऊ में तो कुछ लोग लइया-चना के आदी होंगे। हर रोज खाते होंगे। नई पीढ़ी के बच्चे लइया-चना खाते हैं क्या? इन्हें तो थोड़ा बाहर के खाने का शौक हो गया। इस पर विजय ने बताया कि बच्चों को भी लइया-चना पसंद है। जो चना नहीं खाते, उन्हें लइया मंगूफली मिलाकर देते है।
प्रधानमंत्री ने लइया-चना की चर्चा क्या की, इस बात पर भी बहस शुरू हो गई कि मोदी हर चीज को कितनी बारीकी से समझते परखते हैं।