सिविल मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई योगी सरकार को फटाकार

लखनऊ । सिविल विवादों में राज्य पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से निराश सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उत्तर प्रदेश में ‘कानून का शासन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है’ क्योंकि ऐसे मामलों में ‘दिन-रात’ आपराधिक कानून लागू किए जा रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, “उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। सिविल मामले को आपराधिक मामले में बदलना स्वीकार्य नहीं है।” अदालत ने राज्य पुलिस महानिदेशक को दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

अपने निर्णयों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि सिविल विवादों में प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है और गौतमबुद्ध नगर जिले के पुलिस थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर या जांच अधिकारी को हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा कि आपराधिक कानून क्यों लागू किया गया।उत्तर प्रदेश में हर दिन कुछ अजीब और चौंकाने वाली बात हो रही है, हर रोज दीवानी मुकदमों को आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है। यह बेतुका है। केवल पैसे न देने को अपराध नहीं बनाया जा सकता।हम आईओ को गवाह के कठघरे में आने का निर्देश देंगे। आईओ को गवाह के कठघरे में खड़े होने दें और आपराधिक मामला बनाने दें, यह चार्जशीट दाखिल करने का तरीका नहीं है।पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य के वकील भूल गए हैं कि सिविल अधिकार क्षेत्र नाम की कोई चीज होती है।

एक वकील ने कहा कि सिविल विवादों के निपटारे में लंबा समय लगने के कारण एफआईआर दर्ज की जाती है, जिस पर शीर्ष अदालत नाराज हो गई और पूछा, “सिर्फ इसलिए कि सिविल मामलों में लंबा समय लगता है, आप एफआईआर दर्ज कर आपराधिक कानून लागू कर देंगे?नोएडा के सेक्टर-39 में संबंधित पुलिस स्टेशन के आईओ को शीर्ष अदालत ने ट्रायल कोर्ट में गवाह के रूप में पेश होने और मामले में एफआईआर दर्ज करने का औचित्य साबित करने का निर्देश दिया।पीठ आरोपी देबू सिंह और दीपक सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे वकील चांद कुरैशी के माध्यम से दायर किया गया था।

यह याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक व्यवसायी दीपक बहल के साथ धन विवाद में उनके खिलाफ आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार करने के खिलाफ दायर की गई थी।शीर्ष अदालत ने नोएडा की ट्रायल कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी, लेकिन कहा कि उनके खिलाफ चेक बाउंस का मामला जारी रहेगा। दोनों के खिलाफ नोएडा में भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 506 (आपराधिक धमकी) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।बलजीत सिंह के दोनों बेटों देबू सिंह और दीपक सिंह ने पिछले साल 3 सितंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने एफआईआर को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी।