भारत-चीन संबंधों में जारी गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक बार फिर आमने सामने होंगे। हालांकि यह मुलाकात द्विपक्षीय नहीं बल्कि बहुपक्षीय होगी। हम आपको बता दें कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अगले सप्ताह भारत की मेजबानी में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के ऑनलाइन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निमंत्रण पर राष्ट्रपति शी चार जुलाई को एससीओ के प्रमुखों की 23वीं परिषद बैठक में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हिस्सा लेंगे। हम आपको बता दें कि भारत की मेजबानी में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में शी जिनपिंग के हिस्सा लेने के बारे में यह पहली आधिकारिक घोषणा है। भारत एससीओ का मौजूदा अध्यक्ष होने के नाते शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी के हाल के अमेरिका के राजकीय दौरे के बाद भारत और चीन के बीच यह पहली बहुपक्षीय बैठक होगी। भारत-अमेरिका के बीच हुए कई रक्षा करारों से चीन नाखुश बताया जा रहा है।
एससीओ की बैठकें
हम आपको यह भी बता दें कि मई महीने में एससीओ सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक गोवा में और उससे पहले रक्षा मंत्रियों की बैठक दिल्ली में आयोजित की गयी थी। इन दोनों बैठकों में चीनी मंत्री शामिल हुए थे। मंत्रियों की भागीदारी को देखते हुए माना जा रहा था कि एससीओ वार्षिक शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी आएंगे। भारत सरकार ने उनको न्यौता भी भेज दिया था। लेकिन चीन के साथ हालिया द्विपक्षीय बैठकों के बावजूद दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है। इसके अलावा भारत की ओर से जी-20 बैठकों का आयोजन अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में किये जाने पर चीन और पाकिस्तान की ओर से जतायी गयी आपत्तियों को जिस तरह भारत ने खारिज करते हुए कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी उससे भी संबंधों में तनाव बढ़ा है। इसी बात को देखते हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में चीन, रूस और पाकिस्तान के नेताओं की भागीदारी को लेकर संशय के बादल दिखने लगे थे इसलिए भारत ने डिजिटल तरीके से शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी का फैसला लिया था।
भारत-चीन संबंध
दूसरी ओर, जहां तक भारत-चीन संबंधों की स्थिति की बात है तो आपको बता दें कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तीन साल से अधिक समय से जारी सैन्य गतिरोध जारी के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अभी एक दिन पहले ही कहा था कि सीमा पर स्थिति भारत और चीन के बीच संबंधों की स्थिति तय करेगी। जयशंकर ने एक परिचर्चा सत्र में कहा, ‘‘आज सीमा पर स्थिति अब भी असामान्य है।’’ चीन के साथ भारत के संबंधों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सीमा के प्रबंधन से जुड़ी व्यवस्था के उल्लंघन के कारण संबंध ‘‘मुश्किल दौर’’ से गुजर रहे हैं। जयशंकर ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि वह (चीन) एक पड़ोसी है, एक बड़ा पड़ोसी देश है। आज वह बहुत प्रमुख अर्थव्यवस्था और बड़ी शक्ति बन गया है।’’ विदेश मंत्री ने कहा कि कोई भी रिश्ता दोनों तरफ से निभाया जाता है और एक-दूसरे के हितों का सम्मान करना होता है। उन्होंने कहा, ‘‘और हमारे बीच हुए समझौतों का पालन किया जाना होता है और हमारे बीच बनी सहमति से मुकरना ही आज मुश्किल दौर की वजह है।’’ हम आपको याद दिला दें कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में गतिरोध बना हुआ है। हालांकि, दोनों पक्षों ने व्यापक कूटनीतिक और सैन्य वार्ता के बाद, टकराव वाले कई स्थानों से अपने-अपने सैनिकों को पीछे हटाया है।
क्या है एससीओ?
हम आपको यह भी बता दें कि एससीओ एक प्रभावशाली आर्थिक व सुरक्षा संगठन है, जो सबसे बड़े अंतरक्षेत्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है। एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में एक शिखर सम्मेलन में रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने की थी। भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके स्थायी सदस्य बने थे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गत मंगलवार को एससीओ सचिवालय में ‘नयी दिल्ली भवन’ का उद्घाटन किया था और इसे “मिनी इंडिया” करार देते हुए कहा था कि इससे देश की संस्कृति की बेहतर समझ विकसित होगी। उन्होंने कहा था, “आपको भारत की कलात्मक परंपरा और सांस्कृतिक पहचान से रू-ब-रू कराने के लिए भवन को पूरे भारत के समृद्ध वास्तुशिल्प कौशल का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्कृष्ट ‘पैटर्न’ और रूपांकनों के साथ तैयार किया गया है।”
हम आपको यह भी याद दिला दें कि एससीओ शिखर सम्मेलन का आयोजन पिछले साल उज्बेक शहर समरकंद में किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन सहित संगठन के सभी शीर्ष नेताओं ने हिस्सा लिया था। भारत सितंबर में जी20 शिखर सम्मेलन की भी मेजबानी करेगा, जिसके लिए वह शी और पुतिन के अलावा समूह के अन्य नेताओं को आमंत्रित करने जा रहा है।
चीन ने बनाया नया कानून
इस बीच, खबर है कि चीन ने पश्चिमी प्रतिबंधों को रोकने एवं संप्रभुता की रक्षा के लिए पहला विदेशी संबंध कानून बनाया है। चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी ने कहा है कि उनके देश ने अपना पहला विदेशी संबंध कानून बनाया है, जो पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के लिए ‘निवारक’ के रूप में कार्य करेगा और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा करेगा। बताया जा रहा है कि चीनी विदेशी कानून प्रवर्तन गतिविधियों पर चिंताओं के बीच चीन की संसद, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति द्वारा पारित नया कानून एक जुलाई से प्रभावी होगा। नया कानून वैश्विक सुरक्षा, विकास और सभ्यता पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की विदेश नीति पहलों को कानून के तौर पर बढ़ावा देने को भी सुनिश्चित करता है। कानून का एक अनुच्छेद कहता है, ‘‘कोई भी संगठन या व्यक्ति यदि कोई ऐसा कार्य करता है जो इस कानून के तहत या अंतरराष्ट्रीय रिश्तों की दृष्टि से चीन के राष्ट्रीय हितों के लिए नुकसानदेह हो तो उसे कानून द्वारा जिम्मेदार ठहराया जाएगा।’’
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सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने नये कानून के एक अन्य अनुच्छेद का हवाला देते हुए कहा है, ‘‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को अपनी संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास को खतरे में डालने वाले उन कृत्यों का मुकाबला करने या प्रतिबंधात्मक उपाय करने का अधिकार है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून या अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नियंत्रित करने वाले मौलिक मानदंडों का उल्लंघन करते हैं।’’ नये कानून का बचाव करते हुए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के विदेश मामलों के आयोग कार्यालय के निदेशक वांग ने कहा कि यह (कानून) प्रतिबंधों के लिए एक ‘निवारक’ के रूप में कार्य करेगा और बीजिंग की महत्वाकांक्षाओं तथा बढ़ती मुखर विदेश नीति की चिंताओं के बीच वैश्विक स्तर पर चीन की संप्रभुता की रक्षा के लिए इसकी तत्काल आवश्यकता है। राष्ट्रपति जिनपिंग के प्रमुख विदेश नीति सलाहकार वांग ने कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेली में प्रकाशित एक लेख में कहा है, ‘‘चीन अप्रत्याशित कारकों की बढ़ती संख्या का सामना कर रहा है और उसे ‘विदेशी संघर्षों’ के लिए अपने कानूनी ‘टूलबॉक्स’ का लगातार विस्तार करना चाहिए।’’