नई दिल्ली। भारतीय रसोई में हींग ऐसी चीज़ है, जिसकी एक चुटकी सब्ज़ी से लेकर दाल तक का स्वाद बदल देती है। उत्तर भारत हो या दक्षिण, तड़के में डाली गई हींग खाने का ज़ायका दोगुना कर देती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हींग आखिर बनती किस पौधे से है और यह मसाला इतना महंगा क्यों बिकता है? इसकी कहानी उतनी ही दिलचस्प है, जितनी इसकी खुशबू।
हींग फारसी भाषा का शब्द है, जिसे अंग्रेज़ी में Asafoetida कहा जाता है। यह फेरुला एसाफोइटीडा नामक पौधे से तैयार की जाती है, जो जंगली सौंफ की प्रजाति माना जाता है। यह पौधा आमतौर पर 1 से 1.5 मीटर तक ऊंचा होता है। इसकी जड़ में चीरा लगाने पर एक गाढ़ा, चिपचिपा रस निकलता है। इसी रस को इकट्ठा कर सुखाया और प्रोसेस किया जाता है, तब जाकर हींग तैयार होती है।
कच्ची हींग की गंध बेहद तीखी होती है, इसलिए इसका सीधे इस्तेमाल नहीं किया जाता। प्रोसेसिंग के दौरान इसमें चावल का आटा, गोंद, स्टार्च जैसी चीजें मिलाई जाती हैं। इसके बाद हाथ या मशीन से इसे पाउडर या गोलियों का रूप दिया जाता है। इंडियन स्पाइसेज़ की जानकारी के अनुसार, हींग मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है—काबुली सफेद और लाल हींग। सफेद हींग पानी में आसानी से घुल जाती है, जबकि लाल हींग तेल में घुलनशील होती है।
हींग की उत्पत्ति पश्चिमी एशिया मानी जाती है, खासतौर पर ईरान और आसपास के क्षेत्रों में। भारत में इसके आने को लेकर अलग-अलग मत हैं। आम धारणा है कि हींग मुगलों के साथ भारत आई, लेकिन कई इतिहासकार मानते हैं कि ईरान और अफगानिस्तान की जनजातियां मुगलों से पहले ही इसे भारत लेकर आ चुकी थीं। आयुर्वेद ग्रंथ चरक संहिता में हींग का उल्लेख मिलने से यह साफ होता है कि भारत में इसका उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है।
हींग दुनिया के सबसे महंगे मसालों में गिनी जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह इसकी खेती और उत्पादन प्रक्रिया है। एक हींग का पौधा तैयार होने में 4 से 5 साल का समय लेता है और एक पौधे से मुश्किल से आधा किलो तक हींग निकलती है। इसके बाद रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग में भी काफी समय और लागत लगती है। जितनी कम मिलावट, उतनी ज्यादा कीमत—इसी वजह से शुद्ध हींग भारत में 40 हजार से 50 हजार रुपये प्रति किलो तक बिकती है।
औषधीय गुणों की बात करें तो हींग को आयुर्वेद से लेकर एलोपैथ तक में सुपरफूड माना गया है। आयुर्वेद में इसे वात, पित्त और कफ के लिए लाभकारी बताया गया है। इसकी तासीर गर्म होती है और यह पाचन व भूख बढ़ाने में मदद करती है। एलोपैथ में भी इसे पेट से जुड़ी कई समस्याओं में फायदेमंद माना जाता है।
हालांकि हर किसी को हींग पसंद नहीं आती। कच्ची हींग की तीखी गंध कुछ लोगों को सड़े अंडे जैसी लगती है, इसी वजह से इसे अंग्रेज़ी में ‘Devil’s Dung’ यानी शैतान का गोबर भी कहा जाता है।
भारत दुनिया में हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। वैश्विक उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत अकेले भारत में खपत होता है। देश में हींग मुख्य रूप से ईरान, अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान से आयात की जाती है। CSIR की रिपोर्ट के अनुसार, भारत हर साल 1200 टन से अधिक हींग का आयात करता है। दुनिया में हींग की 130 से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं। पंजाब, कश्मीर, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में इसकी सीमित पैदावार होती है, हालांकि मुख्य किस्म फेरुला एसाफोइटीडा भारत में प्राकृतिक रूप से नहीं पाई जाती।
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