दिल्ली दंगा: मामले में अदालत ने दिल्ली पुलिस को दिया बड़ा झटका, लगाई फटकार

दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में घोंडा के एक व्यक्ति की याचिका पर मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की एफआईआर दर्ज करने के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका खारिज कर दी है। अदालत के एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने इस मामले में जांच में लापरवाही बरतने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई है।

अदालत ने एसचओ पर लगाया 25 हजार रुपये का जुर्माना 

अदालत ने भजनपुरा थाने के एसएचओ पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया और आदेश की प्रति पुलिस कमिश्नर को भेजने और कार्रवाई करने का आदेश दिया। अक्टूबर 2020 में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने दिल्ली पुलिस को मोहम्मद नासिर की शिकायत पर 24 घंटे के अंदर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।

नासिर ने 19 मार्च, 2020 को पुलिस से शिकायत की थी कि 24 फरवरी, 2020 को उन पर फायरिंग की गई जो उसके बायें आंख में लगी। नासिर ने अपनी शिकायत में नरेश त्यागी, सुभाष त्यागी, उत्तम त्यागी. सुशील नरेश गौर और दूसरे लोगों को आरोपित बनाया था। इसके बावजूद पुलिस ने कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जिसके बाद उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा था कि उसने एक एफआईआर दर्ज कर रखी है, जिसमें ये कहा गया है कि नासिर और दूसरे छह लोगों को गोलियां लगी थीं। पुलिस ने कहा था कि नासिर ने जिन लोगों को आरोपित बनाया है उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है। पुलिस ने कहा कि आरोपितों नरेश और उत्तम तो घटना के वक्त दिल्ली में मौजूद भी नहीं थे और वे अपने दफ्तर में थे।

अदालत में नासिर की ओर से वकील महमूद प्राचा ने कहा था कि दिल्ली पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है वो उसकी शिकायतों से जुड़ी हुई नहीं है। इसे लेकर अलग से एफआईआर दर्ज करने की जरूरत है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का हवाला दिया।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि नासिर के साथ घटना 24 फरवरी को उत्तरी घोंडा के निकट हुई जबकि एफआईआर में 25 फरवरी की घटना है जो मोहनपुर, मौजपुर से जुड़ी हुई है। जांच एजेंसी को ये पूरी तरह से पता है कि सात लोगों को गोली लगी है लेकिन दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज करते समय भारतीय दंड संहिता की धारा 307 और आर्म्स एक्ट की धारा 25 को नहीं जोड़ा।

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अदालत ने कहा कि केस डायरी को कानून के मुताबिक मेंटेन नहीं किया गया। जब दो अलग-अलग शिकायतकर्ता की ओर से दो अलग-अलग शिकायतें की गईं, जिसमें संज्ञेय अपराधों का होना बताया गया है तो दोनों को एक ही एफआईआर में कैसे रखा जा सकता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी के फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि पुलिस ने इस मामले की जांच में लापरवाही बरती है। ऐसे में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के फैसले पर रोक लगाने का कोई मतलब नहीं है।