राम मंदिर का निर्माण कार्य जोरों पर है। इसी बीच राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में फैसला देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज सुधीर अग्रवाल का बड़ा बयान सामने आया है। पूर्व जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने बताया कि ‘अगर राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद मामले मे 30 सिंतबर, 2010 को फैसला नहीं सुनाया गया होता तो अगले 200 सालों तक इस मामले मे कोई फैसला नहीं होता’
राम जन्मभूमि मामले में फैसला न सुनाने का दबाव था
उत्तर प्रदेश के मेरठ में शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान सुधीर अग्रवाल ने कहा कि ‘मुझे राम जन्मभूमि मामले में फैसला न सुनाने का दबाव था। अगर फैसला नहीं दिया होता तो अगले 200 साल तक इस मामले में कोई फैसला नहीं आता। आगे उन्होंने कहा कि ‘फैसला सुनाने के बाद…मैं धन्य महसूस कर रहा हूं।’
क्या हुआ था
गौरतलब हो शीर्ष अदालत से पहले इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अपना फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था। हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बटंवारा कर दिया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था, लेकिन केस से जुड़े तीन पक्षों निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान ने यह फैसला नहीं माना था ।
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9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एक लंबी सुनवाई के बाद अयोध्या में मंदिर मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया था। इस विवाद को तत्कालीन प्रधान न्यायधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में संवैधानिक पीठ ने इस पर फैसला सुनाया कि विवादित जमीन पर हक हिंदुओं का है। और साथ ही आदेश दिया कि मुस्लिम पक्ष को अलग से 5 एकड़ जमीन दी जाए। इसके बाद भी कई सारी पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।