शीतकाल तक के लिए बंद तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट

उत्तराखण्ड के गढ़वाल के में स्थित पंच केदारों में तृतीय केदार व चन्द्रशिला की तलहटी में बसे भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बुधवार को वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ बंद कर दिए गये हैं। इस पावन अवसर पर सैकड़ों भक्त तुंगनाथ धाम पहुंचकर कपाट बन्द होने के साक्षी बने और जय भोले के उदघोषों के साथ चोपता तक भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली का भव्य स्वागत किया।

बुधवार को बह्मबेला पर विद्वान आचार्यों, वेदपाठियों ने पंचांग पूजन के तहत भगवान तुंगनाथ सहित तैतीस कोटि देवी-देवताओं का आह्वान कर आरती उतारी और श्रद्धालुओं ने भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग पर जलाभिषेक कर मनौती मांगी। ठीक दस बजे से भगवान तुंगनाथ के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हुई तो ब्राह्मणों के वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को चंदन, पुष्प, अक्षत्र, फल, भृंगराज से समाधि दी गयी तथा भगवान शंकर शीतकाल के छह माह जगत कल्याण के लिए तपस्यारत हो गये। कपाट बंद होते ही तुंगनाथ की चल विग्रह डोली ने मंदिर की तीन परिक्रमा की। इसके बाद भक्तों ने डोली के साथ शीतकालीन गद्दीस्थल मक्कूमठ की ओर प्रस्थान किया।

उत्सव डोली प्रथम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंची तो स्थानीय व्यापारियों व सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली का भव्य स्वागत किया। भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली चोपता से रवाना होकर विभिन्न यात्रा पड़ाव पर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए अंतिम रात्रि प्रवास के लिए भनकुण्ड पहुंचेगी और छह नवम्बर को भनकुण्ड से रवाना होकर शीतकालीन गद्दीस्थल मार्कडेय तीर्थ तुंगनाथ मन्दिर मक्कूमठ पहुंचेगी। जहां पर छह माह तक शीतकाल में भगवान की पूजा अर्चना होगी। कपाट बंद होने के अवसर पर श्रद्धालुओं भोले के भजनों पर मन्दिर परिसर में झूमते रहे। साथ ही स्थानीय महिलाओं ने मंगल गीतों में साथ डोली को धाम से विदा किया।

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तुंगनाथ मंदिर से जुड़ी है ये मान्यताएं

तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो 3460 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर १,००० वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर चोपता से ३ किलोमीटर दूर स्थित है। कहा जाता है कि पार्वती माता ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यहां ब्याह से पहले तपस्या की थी ।