राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने एक अप्रत्याशित राजनीतिक विस्फोट करते हुए मंगलवार को पार्टी प्रमुख का पद छोड़ने की घोषणा कर दी। 82 वर्षीय पवार का इस तरह से सक्रीय राजनीति से दूर जाना, न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। शरद पवार को उलझी सियासी बिसात पर सही मोहरे चलकर बाजी पलटने में महारत हासिल है। जमीन से जुड़े बेहद अनुभवी नेता पवार का एनसीपी चीफ के पद से हटने का फैसला महाविकास आघाडी (एमवीए) को कमजोर करेगा, जिसके गठन में उनकी अहम भूमिका थी। लेकिन माना जा रहा है कि शरद पवार की सियासी ‘गुगली’ में अब कई धुरंधर फंस गए हैं।
वरिष्ठ नेता शरद पवार को करीब से जानने वाले कह रहे है कि शरद पवार ने अचानक यह कदम नहीं उठाया है। पवार के दोस्त विठ्ठल मणियार का कहना है कि सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श के बाद ही शरद पवार ने इस्तीफा देने का फैसला किया है। मणियार ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि शरद पवार आज का फैसला वापस लेंगे। एनसीपी के अगले अध्यक्ष को लेकर शरद पवार सभी से चर्चा करने के बाद ही कोई फैसला लेंगे।“ लेकिन यह बात सब जानते हैं कि शरद पवार के दिल में क्या है इसका अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल है।
मीडिया और एनसीपी के नेताओं से भरे हॉल में शरद पवार के इस्तीफे के ऐलान ने सियासी खलबली मचा दी। इस कदम से शरद पवार ने बीजेपी द्वारा लगाई जाने की सेंधमारी की कोशिश पर ब्रेक लगाया है। साथ ही बगावत की आशंका से घिरे अपने लड़खड़ाते संगठन पर अपना मजबूत पकड़ साबित किया है। उनके इस्तीफे की घोषणा से उनके चारों ओर एक अदृश्य दीवार भी बन गई है, जिसे भेदना विरोधियों के लिए मुश्किल हो गया है। यानी उनका इस्तीफे का फैसला एनसीपी के लिए सुरक्षा कवच की तरह है।
यह भी पढ़ें: बजरंग दल पर प्रतिबंध के कांग्रेस के वादे पर मचा बवाल, सड़कों पर उतरने की तैयारी में हिंदू संगठन
एनसीपी को पवार से बाहर करना ठीक वैसे ही है जैसे टाटा को जेआरडी या रतन से अलग करना। वह खुद को पार्टी की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में शामिल नहीं करेंगे। इसके अलावा, ‘सम्मानित रिटायरमेंट’ से शरद पवार को वह स्वतंत्रता मिलेगी, जो उन्हें अभी चाहिए।