खेती-किसानी से मिला अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा, राष्ट्रपति कोविंद ने भी माना

संजीव पाश

केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तुत आर्थिक सर्वें से भारतीय अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर उभरकर आई है उससे दो बातें साफ हो गई हैं कि कोरोना के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर आने लगी है। दूसरी, खेती-किसानी से देश को एकबार फिर बड़ा आर्थिक संबल मिला है। दरअसल, कोरोना काल में भी लोगों के लिए बड़ी राहत खेती-किसानी क्षेत्र से ही मिली। देश में रबी और खरीफ का भरपूर उत्पादन हुआ तो दूसरी ओर जब सबकुछ बंद था तब भी देश के किसी भी कोने में देशवासियों के लिए खाने-पीने की वस्तुओं की कमी नहीं आई। स्वयं राष्ट्र्पति रामनाथ कोविंद ने बजट सत्र के पहले दिन अपने अभिभाषण में माना है कि खेती-किसानी क्षेत्र के परिणाम, आशा से अधिक सकारात्मक रहे हैं।

देश में खाद्यान्नों की समर्थन मूल्य पर रेकार्ड खरीददारी हुई है। आर्थिक समीक्षा में माना गया है कि वर्ष 2020-21 में जहां जीडीपी करेंट प्राइस में 203.4 लाख करोड़ रु. से कम होकर 194.8 लाख करोड़ रु. रह गई, वहीं प्रति व्यक्ति आय में इससे पूर्व वर्ष की तुलना में 134226 से घटकर 126968 रु. रह गई। आर्थिक समीक्षा के अनुसार आने वाले वित्तीय वर्ष में विकास दर 11 फीसदी रहने की संभावना व्यक्त की गई हैं, वहीं आईएमएफ की मानें तो 11.5 प्रतिशत विकास दर रहने की संभावना है। दोनों के ही चालू वित्तीय वर्ष में विकास दर निगेटिव यानी आर्थिक सर्वें के अनुसार -7.7 फीसदी रहने की आशा व्यक्त की गयी है तो आईएमएफ के अनुसार विकास दर -8 फीसदी रहने की संभावना है। इस साल खेती किसानी की विकास दर 3.9 फीसदी रहने की आशा व्यक्त की गई है। जीडीपी में खेती-किसानी की हिस्सेदारी 17.8 से बढ़कर 19.9 रहने की संभावना है।

दुनिया के देशों में जहां कोरोना का असर नवंबर-दिसंबर 2019 से ही देखा जाने लगा था वहीं हमारे देश में मार्च, 20 में कोरोना का प्रभाव देखा गया और मार्च के दूसरे पखवाड़ा आते-आते लॉकडाउन का दौर शुरू हो गया। लॉकडाउन के कारण सबकुछ थमकर रह गया वहीं इससे खेत-खलिहान प्रभावित नहीं हुए। यही कारण है कि उद्योग-धंधों ने धुआं उगलना बंद कर दिया वहीं खेती-किसानी की गतिविधियां यथावत जारी रही। कुछ प्रकृति ने भी साथ दिया और मौसम अनुकूल रहने से कृषि पैदावार अच्छी रही और खेती के क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। कोरोना के कारण सबसे अधिक प्रभावित सर्विस सेक्टर हुआ तो विनिर्माण क्षेत्र में प्रभावी रहा। लाॅकडाउन के बाद उद्योगों ने जहां गति पकड़नी शुरू की वहीं होटल, सिनेमा, पर्यटन, इवेंट आदि बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें आज भी पटरी पर लाने के ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

हालांकि जिस तेजी से 2020-21 के पहली दो तिमाही में गिरावट का दौर रहा और अर्थव्यवस्था में पहली तिमाही में तो -23.9 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। दूसरी तिमाही के बाद आर्थिक गतिविधियां शुरू होने के साथ ही पटरी पर आने लगी और अब माना जा रहा है कि इस साल गिरावट -7.5 फीसदी रहेगी। यह एक तरह से अर्थव्यवस्था की रिकवरी का संकेत है। हालांकि आनेवाले वित्तीय वर्ष में जो 11प्रतिशत की विकास दर की आश जगाई जा रही है वहीं दुनिया के बहुत से देशों में लाॅकडाउन व पूरी तरह से गतिविधियां पटरी पर नहीं आने से निर्यात प्रभावित हो रहा है। देश में आयात की तुलना में निर्यात अधिक होने से भारत आज व्यापार घाटे की स्थिति से उबरकर सरप्लस की स्थिति में आ गया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय रहा है। माना जा रहा है कि सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछले सालों की तुलना में अधिक राशि का विनियोजन करेगी। कोरोना के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र में लोगों द्वारा स्वास्थ्य पर की जा रही राशि में कमी आई है। इसे भी शुभ संकेत माना जाना चाहिए। देश में विदेशी निवेश बढ़ रहा है। स्टार्टअप आगे आ रहे हैं।

मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रह्मण्यम का मानना है कि जीडीपी का 2.5 फीसदी स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यय किया जा रहा है जिसे बढ़ाकर 3 फीसदी करना होगा। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में और अधिक सुधार होगा। माना यह भी जा रहा है कि इस साल हमारे देश की अर्थव्यवस्था जीडीपी के क्षेत्र में चीन को पीछे छोड़ देगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि सरकार द्वारा जो समय समय पर पैकेज दिए गए उसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं। प्रधानमंत्री ने तो इन पैकेजों को मिनी बजट का ही नाम दे दिया है। दरअसल उद्योग क्षेत्र को पैकेजों खासतौर से ऋण, ब्याज आदि के लाभ, मोरेटोरियम व अन्य उपायों से छोटे उद्योगों खासतौर से एमएसएमई सेक्टर को बड़ी राहत मिली है। अभी बहुत कुछ किया जाना है।

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कारण साफ है, कोरोना ने लोगों की प्राथमिकताओं को भी बदला है। एक समय जब भारतीय परिवारों में एक साथ साल भर या तीन-चार माह का खाने-पीने का सामान घर में स्टाक रखने की परंपरा रही है जो धीरे-धीरे खत्म हो गई, अब लोगों का विश्वास उसपर बढ़ने लगा है। लोगों का मानना है कि लॉकडाउन जैसी परिस्थिति में घर में खाने-पीने का सामान पर्याप्त मात्रा में हो तो किसी तरह की परेशानी नहीं होती। इसी तरह लोगों का फास्ट फूड से मोह कम होने लगा है। इसका कारण भी स्वास्थ्य और खासतौर से इम्यूनिटी बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों प्रति जागरुकता है। लोग अब संग्रह करने लगे हैं तो वह खाद्य सामग्री है। ऐसे में आराम परक वस्तुओं की बिकवाली बढ़ाने में भी सरकार को पसीना बहाना पड़ेगा। अब देशी पर्यटन के प्रति लोगों का झुकाव हुआ है, ऐसे में सरकार कोई पैकेज देकर इसे पटरी पर ला सकती है। दरअसल अब बाजार में तेजी से मांग विकसित करने की आवश्यकता है जिससे बाजार में मांग बढ़े और आर्थिक गतिविधियां आगे बढ़ सके। समग्र रूप से देखा जाए तो आर्थिक सर्वें कोरोना की स्थिति के बावजूद सकारात्मक आशा का संचार कर रहा है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)