जाने क्यों मनाते है गुरु नानक जयंती पर प्रकाश का पर्व, गुरुनानक जी के ख़ास उपदेश

आज यानी 30 नवम्बर को गुरुनानक जयंती है, हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को गुरु पर्व या प्रकाश पर्व भी कहा जाता है। लोग सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी के जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के तौर पर मानते है। इस दिन उनकी सीखों को याद किया जाता है। गुरूद्वारे में ख़ास इंतजाम किये जाते है। इस दिन लोग गुरूद्वारे में जा के शीश झुकाते है। सिख समुदाय के लोग वाहे गुरु, वाहे गुरु जपते हुए सुबह-सुबह प्रभात फेरी निकालते हैं। गुरुद्वारे में शबद-कीर्तन करते हैं, रुमाला चढ़ाते हैं, शाम के वक्त लोगों को लंगर खिलाते हैं। गुरु पर्व के दिन सिख धर्म के लोग अपनी श्रृद्धा के अनुसार सेवा करते हैं और गुरु नानक जी के उपदेशों यानी गुरुवाणी का पाठ करते हैं।

बता दें गुरु नानक जयंती को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। यह कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।

आइये जानते हैं गुरु नानक जयंती से जुड़ी खास बातें …

इस साल कब है गुरु नानक जयंती

इस साल गुरु नानक जयंती 30 नवंबर को है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु पर्व मनाया जाता है।

क्यों मनाते हैं गुरु नानक जयंती

गुरु पर्व या प्रकाश पर्व गुरु नानक जी के जन्म की खुशी में मनाया जाता हैं। सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को राय भोई की तलवंडी नाम की जगह पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में है।

इस जगह का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा। यहां बहुत ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा ननकाना साहिब भी है, जो सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है।

इस गुरुद्वारे को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। बता दें, शेर-ए पंजाब नाम से प्रसिद्ध सिख साम्राज्य के राजा महाराजा रणजीत सिंह ने ही गुरुद्वारा ननकाना साहिब का निर्माण करवाया था।

सिख समुदाय के लोग दीपावली के 15 दिन बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु नानक जयंती मनाते हैं।

कौन थे गुरु नानक जी

गुरु नानक जी सिख समुदाय के संस्थापक और पहले गुरु थे। इन्होंने ही सिख समाज की नींव रखी। इनके अनुयायी इन्हें नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह कहकर पुकारते हैं। वहीं, लद्दाख और तिब्बत में इन्हें नानक लामा कहा जाता है।

गुरु नानक जी ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया। उन्होंने सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी जाकर उपदेश दिए।

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पंजाबी भाषा में उनकी यात्रा को ‘उदासियां’ कहते हैं। उनकी पहली ‘उदासी’ अक्टूबर 1507 ईं. से 1515 ईं. तक रही। 16 साल की उम्र में सुलक्खनी नाम की कन्या से शादी की और दो लड़कों श्रीचंद और लखमीदास के पिता बने।

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1539 ई. में करतारपुर (जो अब पाकिस्तान में है) की एक धर्मशाला में उनकी मृत्यु हुई। मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए। गुरु अंगद देव ही सिख धर्म के दूसरे गुरु बने।

गुरु नानक जी के खास उपदेश

– ईश्वर एक है। वह सर्वत्र विद्यमान है। हम सबका “पिता” वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।

– तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए तथा सदैव प्रसन्न भी रहना चाहिए।

– गुरु नानक देव पूरे संसार को एक घर मानते थे जबकि संसार में रहने वाले लोगों को परिवार का हिस्सा।

– किसी भी तरह के लोभ को त्याग कर अपने हाथों से मेहनत कर एवं न्यायोचित तरीकों से धन का अर्जन करना चाहिए।

– कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रुरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।

– लोगों को प्रेम, एकता, समानता, भाईचारा और आध्यत्मिक ज्योति का संदेश देना चाहिए।

– धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए।

– स्त्री-जाति का आदर करना चाहिए। गुरु नानक देव सभी स्त्री और पुरुष को बराबर मानते थे।

– संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों पर विजय पाना अति आवश्यक है।

– अहंकार मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देता अतः अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र हो सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए।