सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की याचिका पर आज भी सुनवाई चल रही है। इस बीच इस मामले में केंद्र ने एक नया हलफनामा दायर किया है और सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक पक्ष बनाने का आग्रह किया है ताकि कानून सही तरीके बनाया जा सके। केंद्र ने कहा कि स्पष्ट है कि राज्यों से पूछे बिना इस विषय पर कानून बनाने से फैसले प्रभावित हो सकते हैं। विभिन्न राज्यों ने पहले ही प्रत्यायोजित विधानों के माध्यम से इस विषय पर कानून बनाए हैं, इसलिए उन्हें बना रहे हैं।

क्या है नए हलफनामा का उद्देश्य
केंद्र की तरफ से एसजी तुषार मेहता ने कहा कि भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची में विवाह शामिल है। इस प्रकार, याचिकाओं के न्यायनिर्णयन के लिए सभी राज्यों के साथ परामर्श आवश्यक है। समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 में विवाह और तलाक शामिल हैं।
मंगलवार को भी हुई थी सुनवाई
वहीं इससे पहले मंगलवार को केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बीच जोरदार बहस हुई थी। केंद्र जहां समलैंगिक विवाह पर संसद से कानून पास कराने की मांग कर रहा है वहीं सुप्रीम कोर्ट फिलहाल सुनवाई से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है।
जानें केंद्र क्यों कर रहा विरोध
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जो जवाब दाखिल किया है, उसमे कहा गया है कि भारत में शादी का मतलब सिर्फ एक आदमी और औरत के बीच का बंधन होता है। भारत में कभी भी शादी का मतलब समलैंगिक विवाह नहीं रहा है। ना तो हिंदू और मुस्लिम कानून में समलैंगिक विवाह का कोई जिक्र किया गया है। केंद्र का कहना है कि राज्य से बिना पूछे इस पर फैसला देना विवाद पैदा कर सकता है। यह पूरी तरह से सामाजिक मामला है इसलिए इसकी संवेदनशीलता को समझना होगा।
यह भी पढ़ें: कार्ति चिदंबरम पर ईडी का शिकंजा, कुर्क हुई करोड़ों की संपत्ति
केंद्र ने हर धर्म का दिया हवाला
केंद्र ने समलैंगिक विवाह के मामले में हर धर्म हवाला देते हुए कहा कि हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन, पारसी लॉ में महिला, पुरुष, पति, पत्नी जैसे शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इन कानूनों में कभी भी यह नहीं सोचा गया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाएगी।
Sarkari Manthan Hindi News Portal & Magazine