जब जिंदगी-मौत से लड़ रहे थे अमिताभ, गांधी परिवार की इस हरकत ने रिश्तों में खड़ी की थी दीवार

इतिहास गांधी परिवार और बच्चन परिवार के रिश्तों में उतार चढ़ाव का गवाह रहा है। दोनों परिवार एक दूसरे के लंबे समय तक दोस्त रहें, लेकिन धीरे-धीरे बच्चन-गांधी परिवार के संबंधों में विश्वास और भरोसे की गाड़ी पटरी से उतरने लगी और दोनों परिवारों के बीच एक लम्बी-सी दीवार खड़ी हो गई। आइए जानते हैं, ड्रामा और ट्विस्ट एंड टर्न से भरी इस कहानी को…

अमिताभ बच्चन के पिता विदेश मंत्रालय में हिंदी अधिकारी के रूप में काम करते थे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनकी बहुत इज्जत करते थे। इलाहाबाद में रहते हुए दोनों परिवार बहुत करीब आ गए थे। इतना ही नहीं अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन भी नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी की बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं। यह रिश्ता अमिताभ और राजीव गांधी की दोस्ती के रूप में आगे बढ़ता गया।

अमिताभ बच्चन, 13 जनवरी 1968 की सुबह कड़ाके की सर्दी में पालम एयरपोर्ट पर सोनिया गांधी को लेने पहुंचे। इस दिन सोनिया गांधी, राजीव की मंगेतर के रूप में भारत पहुंची थी। सोनिया को बच्चन परिवार के घर ठहराया गया और तेजी ने उनको भारतीय संस्कृति और तौर तरीकों के बारे में समझाया। खबरों के मुताबिक इंदिरा गांधी, राजीव और सोनिया की शादी को लेकर अनिच्छुक थीं। वहीं, राजीव गांधी, सोनिया गांधी के प्यार में पागल हो रहे थे। ऐसे में तेजी बच्चन ने ही मध्यस्थ के रूप में भूमिका निभाई और इंदिरा गांधी को इसके लिए तैयार किया।

1969 में जब सोनिया और राजीव गांधी की शादी पक्की हो गई, सोनिया और उनका परिवार कुछ दिनों के लिए 13, विलिंगडन क्रीसेंट स्थित बच्चन परिवार के आवास पर ठहरा। दोनों के बीच दोस्ती बढ़ती गई और 1984 तक यह रिश्ता नई ऊंचाई पर जा पहुंचा। बता दें कि यह वही समय था जब राजीव गांधी ने अपने दोस्त अमिताभ बच्चन को कांग्रेस के टिकट पर इलाहाबाद से चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया था।

1984 में अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से कांग्रेस का टिकट मिला और उन्होंने बड़े अंतर से हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया। इसके बाद दिल्ली में अमिताभ बच्चन कांग्रेस की यूथ ब्रिगेड का हिस्सा बन गए। सतीश शर्मा, अरूण नेहरू, अरूण सिंह और कमलनाथ के साथ उनकी तुलना होने लगी। लेकिन, तीन साल बाद अमिताभ ने राजनीति छोड़ दी और इस्तीफा दे दिया। दरअसल, उस समय एक अखबार ने बोफोर्स घोटाले में अमिताभ की संलिप्तता को लेकर खबर छापी थी। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट की ओर से अमिताभ बच्चन को इस मामले में क्लीन चिट मिल गई।

राजनीति में छोटी पारी खेलने के बाद अमिताभ बच्चन 1988 में एक बार फिर बॉलीवुड में लौटे, लेकिन शहंशाह की सफलता के बाद बॉक्स ऑफिस पर उनकी फिल्में औंधे मुंह गिरी। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद दोनों परिवारों के रिश्ते बिगड़ते गए। गांधी परिवार को महसूस हो रहा था कि बुरे वक्त में अमिताभ बच्चन उन्हें अकेला छोड़कर चले गए। एक परिवार जो प्रधानमंत्री के आवास में कभी भी आ जा सकता था, अचानक से उसे ‘अछूत’ समझा जाने लगा।

दूसरी ओर अमिताभ बच्चन का कहना था कि गांधी परिवार उन्हें राजनीति में लेकर आया और परेशानी के समय उन्हें बीच में ही छोड़ गया। इसके साथ ही जब बच्चन की कंपनी एबीसीएल दिवाला हो गई और अमिताभ आर्थिक संकट से जूझ रहे थे, गांधी परिवार ने उनकी मदद नहीं की। इस संकट ने दोनों परिवारों के रिश्ते को डुबो दिया और अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन अपनी निराशा को पब्लिक से छुपा नहीं पाईं।

इसी बीच अमिताभ की जिंदगी में अमर सिंह की एंट्री हुई और समाजवादी नेता ने बिगबी की पूरी मदद की। अमिताभ और अमर की दोस्ती बढ़ती गई और आगे चलकर समाजादी पार्टी की ओर से जया बच्चन को राज्यसभा का सांसद बनाया गया। अमिताभ बच्चन के अमर सिंह के साथ जाने से गांधी परिवार के साथ उनकी दूरी बढ़ती गई। 2004 के चुनावों में जया बच्चन ने कहा, ‘जो लोग हमें राजनीति में लेकर आए, वो हमें संकट में छोड़कर चले गए। वो लोगों के साथ विश्वासघात करने वाले हैं।

इसके बाद राहुल गांधी ने जवाब दिया, ‘बच्चन परिवार झूठ बोल रहा है। इतने सालों बाद वे क्यों आरोप लगा रहे हैं, अमिताभ बच्चन दो दशक पहले राजनीति में आए और अब उन्होंने अपनी वफादारी बदल ली है। जो लोग गांधी परिवार को जानते हैं। उन्हें पता है कि हमने किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया। लोग जानते हैं कि किसने किसको धोखा दिया। लोग यह भी जानते हैं कि उनकी वफादारी किसके साथ है।’ इसके बाद अमिताभ बच्चन ने भी अपनी बात रखी, ‘वे (गांधी परिवार) लोग राजा हैं और हम (बच्चन परिवार) रंक (सामान्य लोग) हैं। रिश्ते की निरंतरता शासक के मूड पर निर्भर करती है। अब, वे मेरे परिवार पर झूठ बोलने का आरोप लगा रहे हैं।’

कांग्रेस के राजनीतिक दुश्मन बाल ठाकरे के साथ अमिताभ बच्चन की घनिष्ठता ने इसे और खराब किया। ठाकरे हमेशा अमिताभ बच्चन के साथ खड़े रहे, चाहे वह फिल्म सरकार की रिलीज का मामला हो या, उनके भतीजे राज ठाकरे का अमिताभ बच्चन पर महाराष्ट्र के साथ विश्वासघात का आरोप लगाना।

कांग्रेस के शासन में 2005 में इनकम टैक्स विभाग की ओर से अमिताभ बच्चन को 4.5 करोड़ रुपये का नोटिस मिला। अमिताभ इस समय लीलावती अस्पताल में भर्ती थे और आंत की बीमारी से जूझ रहे थे। अस्पताल के बेड पर लेटे अमिताभ बच्चन ने अपने हाथों से बिल भरा।  2006 में इनकम टैक्स विभाग ने एक बार फिर अमिताभ बच्चन से उनकी कंपनी अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड से जुड़े टैक्स का विवरण मांगा।

फिल्म जमानत में अमिताभ बच्चन ने दृष्टिहीन वकील की भूमिका में 2 लाख 70 हजार रुपये का रे-बैन का चश्मा पहना और उसे अपने दोस्त और डायरेक्टर एस. रामनाथन को गिफ्ट कर दिया। इनकम टैक्स विभाग एक बार फिर हरकत में था। इस बार उन्होंने बिग बी से चश्मे की खरीददारी को लेकर पूछताछ की।  2007 में कांग्रेस की महाराष्ट्र सरकार ने अमिताभ बच्चन पर अवैध तरीके से पुणे के पास कृषि भूमि खरीदने का आरोप लगाया। लोनावाला में आठ हेक्टेयर भूमि की खरीददारी को अमिताभ बच्चन ने सही ठहराया और कहा कि उत्तर प्रदेश में वह एक किसान थे।

राज्य सरकार ने अमिताभ से स्वयं को किसान साबित करने को कहा। अमिताभ ने दस्तावेज दिखाए, इसके मुताबिक उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में उनके पास खेत हैं। हालांकि अपने फैसले में यूपी की कोर्ट ने कहा कि अमिताभ बच्चन किसान नहीं हैं और उनके पास राज्य में खेत खरीदने का अधिकार नहीं है।

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मार्च 2010 में एक और राजनीतिक विवाद पैदा हुआ, जब बिग बी मुंबई में बांद्रा वर्ली सी लिंक के नए फेज के उद्घाटन कार्यक्रम में पहुंचे। अमिताभ की उपस्थिति ने बवाल खड़ा कर दिया। मुंबई कांग्रेस के कुछ लोगों ने खुलकर अपनी निराशा जाहिर की। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने हिस्सा लेने से इंकार कर दिया।

गांधी परिवार और अमिताभ बच्चन के परिवार के रिश्तों को देखते हुए कांग्रेस नेता गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लालायित रहते हैं। राजनीतिक लाभ लेने के चक्कर में कांग्रेस नेता इस बात से अनभिज्ञ रहे कि उनकी हरकत भारत के सबसे बड़े आइकॉन का अपमान है, जो उस कार्यक्रम में इसलिए शामिल हुए कि क्योंकि उन्हें न्यौता दिया गया था।