आज है इंटरनेशनल टाइगर डे,कभी थी लाखों की संख्या अब बस रह गये इतने बाघ

एक समय एसा था जब देश का राष्ट्रीय पशु कहलाने वाला बाघ भारत में ही विलुप्त होने की कगार में था। लेकिन केन्द्र और राज्य सरकार की पहल के साथ-साथ वन मंत्रालय ने बाघों के संरक्षण के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाये और उसका नतीजा ये निकला कि जहां दो दशक पहले तस्करी के कारण बाघों की संख्या लगातार कम हो रही थी।

वहीं 2018 की गणना के अनुसार भारत में बाघों की संख्या बढकर 2967 हो गयी। बाघों की घटती संख्या के कारण भारत सरकार ने 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के नाम से परियोजना शुरू की थी। उस समय 9 टाइगर रिजर्व ही इसके दायरे में आते थे।

देश में अब टाइगर रिजर्व की संख्या बढ़कर 52 हो गयी है। जिसमें बाघों का संरक्षण किया जा रहा है उनके बारे में बताया जाता है कि एक बाघ की औसतन आयु जंगल में 8 से 15 साल और चिडियाघर में करीब 16 से 20 साल होती है।

नर बाघ की लंबाई 275 से 290 सेमी

बाघ बिल्ली की प्रजाती का सबसे बडा जानवर होता है। नर बाघ की लंबाई 275 से 290 सेमी और मादा बाघ की लंबाई लगभग 260 सेमी तक होती है। बाघों की मृत्यु दर में भी पिछले कई सालों से कमी देखी गयी है। सबसे ज्यादा बाघों की तस्करी उसकी खाल के कारण होती है। बाघ की खाल की कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में लाखों रूपये होती है।

सबसे ज्यादा मांग चीन, तिब्बत और वियतनाम देशों में है, जहां न केवल बाघों का मांस खाया जाता है बल्कि उसके शरीर के अंगों का कारोबार भी बडी मात्रा में किया जाता है। हमारे देश में एक बाघ के लिए 20 से 200 किमी तक का एरिया विचरण के लिए होता है, वहीं रूस में एक बाघ के लिए 800 से 1200 किमी का एरिया निर्धारित किया गया है। बाघों के संरक्षण के लिए सरकार हर साल भारी भरकम खर्च करती है।

300 करोड़ का बजट बाघों के संरक्षण के लिए निर्धारित

केन्द्र सरकार ने वर्तमान वित्तीय वर्ष 2022-23 में 300 करोड़ रूपये का भारी-भरकम बजट बाघों के संरक्षण के लिए निर्धारित किया गया है। इस बजट में टाइगर रिजर्व के आस-पास रह रहे लोगों को विस्थापित करने का काम भी किया जा रहा है।

जिससे कि यहां जानवर स्वछंद रूप से विचरण कर सकें। टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में रह रहे परिवार को विस्थापित करने के लिए पहले 10 लाख रुपये दिये जाते थे। लेकिन अब इस रकम को बढ़ा कर एक परिवार को 15 लाख रूपये दिये जाते हैं। जिससे कि कोर एरिया में रह रहे लोगों को वहां से हटाया जा सके और जंगल का राजा ही जंगल में रह सके।

बाघों को लेकर यह केवल भ्रांति है

इससे आए दिन होने वाली खटनाओं को भी रोका जा सकेगा। क्योंकि बाघ वहां रह रहे लोगों का कभी शिकार भी कर लेता है। इसका डर वहां रहने वाले लोगों को हमेशा बना रहता है। जंगल के कोर एरिया से परिवारों के विस्थापित होने के बाद यह घटनाएं भी खत्म हो जायेंगी। बाघों को लेकर यह केवल भ्रांति है कि रेडियों कालर से बाघों के जीवन यापन में कोई दिक्कतें आती हैं।

WWF के अधिकारियों के अनुसार रेडियों कालर की ही देन है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में जहां एक भी बाघ नहीं बचा था। आज करीब एक दर्जन से ज्यादा बाघ वहां की शोभा बढा रहे हैं। वन विभाग और कई एनजीओ के द्वारा समय-समय पर जंगल के आस-पास रह रहे लोगों को कार्यशाला आयोजित कर बाघों के बारे में जागरुक किया जाता है।

ताकि वह उसको किसी तरह से क्षति न पहुंचायें और तस्करी रोकने में मदद कर सकें। सामान्यतः टाइगर रिजर्व दो भागों में बंटा होता है एक कोर एरिया जहां इनकी दिनचर्या व जीवन यापन होता है और दूसरा बफर जोन जो इस कोर एरिया के चारों तरफ का एरिया माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कोर एरिया में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध है।

टाइगर रिजर्वों में बाघों की दहाड़

बाघों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण NTCA ने आमूलचूल प्रयास किये जिसका नतीजा है कि आज हमारे देश के टाइगर रिजर्वों में बाघों की दहाड़ सुनाई देती है। जब भी कोई पर्यटक टाइगर रिजर्व घूमने जाता है तो बाघ की एक झलक पाने के बाद ही वह अपनेआप को आत्म संतुष्ट मानता है और अपनी यात्रा सफल। जंगल बिना बाघ की दहाड़ के सूना होता है इसलिए उसको जंगल का राजा कहा जाता है।

टाइगर एक प्रजाति का ही संरक्षण नहीं है बल्कि यह पूरे ईको सिस्टम के संरक्षण और संवर्धन के लिए जरूरी है। जब हमारा ईको सिस्टम सुरक्षित होगा तो पर्यावरण भी साफ-सुधरा होता है। पूरे भारत में 350 से ज्यादा मीठे पानी के श्रोत केवल टाइगर रिजर्व में ही हैं। इसलिए बाघ और जंगल दोनों को सुरक्षित रखना अति आवश्यक है।

29 जुलाई को टाइगर्स डे

कई देशों के राष्ट्र प्रमुखों के द्वारा सेंट पीटसबर्ग में आयोजित शिखर सम्मेलन में ही 29 जुलाई को टाइगर्स डे के नाम से मनाये जाने का ऐलान हुआ था।

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सफेद बाघ केवल भारत में ही हैं। इसे सबसे पहले मध्य प्रदेश के रीवा रियासत के महाराज ने जंगल में देखा था और उसका नाम मोहन रखा था। देश में जितने भी सफेद बाघ हैं वह सब मोहन की ही संतान हैं।

काला बाघ भी केवल भारत के ही उडीसा राज्य के सिमिलीपाल टाइगर रिजर्व में ही संरक्षित किया गया था।