अफगानिस्तान में खौफ और तालिबान के बीच फंसे हजारों भारतीय, विदेशी सैनिकों ने बढ़ाई चिंता

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो रही है। इसी के साथ कई दूसरे मुल्कों की सेनाएं भी अफगानिस्तान को छोड़कर लौट रही हैं। जैसे-जैसे विदेशी सैनिक अपने कदम जंग से पीछे बढ़ा रहे हैं वैसे-वैसे आतंकी संगठन तालिबान अफगानिस्तान में अपने पैर पसार रहा है। पिछले कुछ समय से जिस तरह की घटनाएं अफगानिस्तान से सामने आ रही हैं, उसने न सिर्फ भारत बल्कि हर उस मुल्क को चिंता में डाल दिया है जिसके नागरिक अफगानिस्तान में बसे हैं।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में बसे एक भारतीय शख्स ने बताया वो रात को सोते समय एक बैग में जूते, कपड़े, पासपोर्ट, कुछ पैसे और जरूरी पेपर्स अपने पास रखता है क्योंकि उसे डर है कि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है और उसे कभी भी भागना पड़ सकता है। तालिबान ने अफगानिस्तान के दर्जनों इलाकों पर कब्जा कर लिया है और दावा कर रहा है कि इन इलाकों में अफगान सेना ने उसके आगे घुटने टेक दिए हैं। हालांकि अफगान सेना कुछ जिलों को अपने कब्जे में वापस लेने की बात कह रही है।

अमेरिकी जनरल ने जताई गृह-युद्ध की आशंका

जर्मनी, पोलैंड समेत कई विदेशी सैनिक अब अफगानिस्तान में नहीं हैं। ऐसे में अफगान सुरक्षा बल को अकेले ही तालिबान से जूझना पड़ रहा है जो कि काफी मुश्किल है। एक अमेरिकी रिपोर्ट पहले ही चेतावनी दे चुकी है कि सैनिकों की वापसी के कुछ महीनों बाद ही अफगान सरकार गिर जाएगी। पहले कहा जा रहा था कि 11 सितंबर तक अमेरिकी सैनिक लौटेंगे लेकिन अब रिपोर्ट्स दावा कर रही हैं कि ‘कुछ दिनों’ में ही अमेरिकी सेना अपने मुल्क लौट जाएगी।

काबुल में अमेरिकी जनरल ऑस्टिन एस मिलर ने आशंका जताई है कि अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ सकता है। उन्होंने कहा है कि मौजूदा हालात गृह युद्ध की संभावना को बढ़ा सकते हैं। अफगानिस्तान हाई काउंसिल फॉर नेशनल रिकंसलिएशन के अध्यक्ष डॉ. अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह का कहना है कि नागरिकों की सुरक्षा के लिए अफगान नेताओं को एकजुट होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वो शांति चाहते हैं लेकिन युद्ध धीरे-धीरे उनके नजदीक आ रहा है।

भारतीय दूतावास ने जारी किए दिशा-निर्देश

रिपोर्ट के मुताबिक आम नागरिक अपने घरों में हथियार इकट्ठा कर रहे हैं ताकि स्थिति बिगड़ने पर अपने परिवार की रक्षा कर सकें। काबुल स्थित भारतीय दूतावास पहले ही भारतीयों के लिए सुरक्षा एडवाइजरी जारी कर चुका है, जिन पर सुरक्षा संकट के बादल मंडरा रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अफगानिस्तान के 1700 भारतीयों के लिए जारी एडवाइजरी में कहा है कि-

– अफगानिस्तान में रह रहे भारतीय गैर-जरूरी कामों से घर से बाहर न निकलें।

– मुख्य शहरों में न जाएं। अगर कहीं जाना है तो हवाई यात्रा ही करें क्योंकि हाइवे सुरक्षित नहीं हैं।

– भारतीय नागरिकों को अपहरण किए जाने का खतरा है।

चारों तरफ सिर्फ डर और असुरक्षा

बीबीसी की रिपोर्ट ने अफगानिस्तान में कार्यरत एक भारतीय नागरिक के हवाले से बताया कि अफगानिस्तान में सैन्य गतिविधियों में बीते कुछ दिनों में कमी आई है। उन्होंने बताया कि हालात बहुत खराब हैं। वो हमेशा एक बैग में कपड़े, पासपोर्ट, पैसे जैसी कुछ चीजें साथ रखकर सोते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर वो कभी भी भाग सकें। भारतीय दूतावास भारतीय लोगों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी करता रहता है।

रिपोर्ट में महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए विदेशों की यात्रा करने वाले नितिन, जो कि अफगानिस्तान पहुंचे हैं, बताते हैं कि अफगानिस्तान में स्थिति बिगड़ती जा रही है। यात्रा के दौरान लोग उनसे कहते कि ‘यहां मत घूमिए, यहां बहुत खतरा है।’ तालिबान काफी तेजी से अपने पैर पसार रहा है। नितिन जब काबुल में थे तो एक वैन को निशाना बनाया गया था, जिसमें उनके एक सहयोगी की मौत हो गई थी। वो बताते हैं कि लोग अफगानिस्तान से बस किसी तरह निकलना चाहते हैं।

कहीं किसी ने पाकिस्तानी समझ लिया तो..

काबुल में नितिन की मुलाकात भारतीय दूतावास के अधिकारियों से हुई। वो कहते हैं कि दूतावास की तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है। अब यह जेल लगता है। अधिकारी डर के चलते बाहर नहीं निकलते और न ही मुझे बाहर जाने की सलाह दे रहे थे। चारों तरफ सिर्फ डर, उन्माद और असुरक्षा का माहौल है। ‘अफगानिस्तान के भारतीयों में एक और डर तेजी से बढ़ रहा है, पाकिस्तानी समझे जाने का डर। अफगान भारतीयों से काफी अच्छे से पेश आते हैं लेकिन पाकिस्तानियों से बेहद नफरत करते हैं। यहां जब आप हिंदी बोलते हो तो या तो आप पाकिस्तान से समझे जाओगे या भारत से। माहौल ऐसा है कि ज्यादातर लोग आपको पाकिस्तानी ही समझेंगे क्योंकि पाकिस्तानी अक्सर अपनी पहचान छिपाते हैं।’ बीबीसी से बात करते हुए नितिन ने बताया।

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9/11 के बाद की तारीखों में कैद अफगानिस्तान का भविष्य

नितिन जब 501 साल पुराने जलालाबाद स्थित गुरुद्वारे गए तो वहां लोगों ने उनसे बात ही नहीं की क्योंकि वो उन्हें पाकिस्तानी समझ रहे थे। इन सब परिस्थितियों ने अफगानिस्तान में कार्यरत भारतीयों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। तालिबान ने बयान जारी कर कहा है कि वो विदेशी नागरिकों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएगा लेकिन तालिबान की बातों पर कितना भरोसा करना चाहिए, इसके कई उदाहरण हम इतिहास में देख चुके हैं। 9/11 अमेरिकी इतिहास का एक काला दिन है। इस साल 9/11 तक अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान का भविष्य उसके नागरिकों के हाथों में सौंपकर पूरी तरह से लौट जाएंगे। सवाल ये भी कि क्या भारत इस क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा ले सकता है? आने वाले समय में 9/11 के बाद की तारीखें ही तय करेंगी कि अफगानिस्तान का भविष्य क्या होगा और ये दुनिया पर क्या असर डालेगा।