EVM पर सपा का घमासान: कब-कब सवालों के घेरे में रही ईवीएम, इस बार इसके मूवमेंट पर विवाद क्यों?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और नतीजे गुरुवार को आएंगे। उससे पहले सोमवार को आए एग्जिट पोल में ज्यादातर ने यूपी में भाजपा की सरकार बनने का अनुमान जताया है। जिसके बाद ईवीएम पर सियासी घमासान शुरू हो गया है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने वाराणसी में गाड़ियों से ईवीएम की मूवमेंट का मुद्दा उठाते हुए यूपी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, ‘भाजपा को जिताने के लिए प्रशासन वोट चुराने में लगा हुआ है। यह लोकतंत्र का आखिरी चुनाव है, जिसके बाद लोगों को क्रांति करनी होगी।

नतीजों से पहले ईवीएम की सुरक्षा को लेकर यूपी के कई जिलों में हंगामा हो रहा है। ईवीएम में छेड़छाड़ या अदला-बदली के आरोपों पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कई जिलों में प्रदर्शन किया है। वाराणसी, अलीगढ़, सोनभद्र, बदायूं, बरेली, आगरा, मेरठ समेत कई 20 जिलों में सपा प्रत्याशी और उनके समर्थकों ने स्ट्रांग रूम की निगरानी सतर्कता के साथ कर रहे हैं।

अखिलेश यादव के आरोप क्या?

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गाड़ियों से ईवीएम की मूवमेंट की जानकारी सामने आने पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को उठाते हुए भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था कि चुनाव में धांधली की कोशिश की जा रही है। बनारस में ईवीएम से लदी तीन गाड़ियां पकड़ी गई थीं। दो गाड़ियां निकल गईं, लेकिन एक को सपा कार्यकर्ताओं ने पकड़ लिया।

भाजपा ने अखिलेश के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि उनकी हार को देखकर अखिलेश यादव भड़क गए हैं, जिससे वह ईवीएम पर तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं।

चुनाव आयोग ने क्या स्पष्टीकरण दिया?

चुनाव आयोग ने बयान जारी कर कहा है कि वाराणसी में गाड़ी से बरामद की गई ईवीएम मशीनें अधिकारियों के लिए मतगणना की ट्रेनिंग के मकसद से लाई गई थीं। चुनाव आयोग ने कहा कि इन मशीनों का मतदान में इस्तेमाल नहीं किया गया।

ईवीएम पर लगातार उठते रहे हैं सवाल

भाजपा भले ही अखिलेश यादव के आरोपों का मजाक उड़ा रही हो, लेकिन भारत में पहली बार 1982 में एक प्रयोग के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की सत्यता पर पहले भी कई बार सवाल उठाए जा चुके हैं। अक्सर देखा गया है कि जब राजनीतिक दल चुनाव हारते हैं तो वह सबसे पहले हार का ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ते हैं। कभी भाजपा ने तो कभी कांग्रेस भी लगातार ईवीएम पर ही सवाल उठाती रही है।

सबसे पहले भाजपा ने ही बनाया था मुद्दा

सबसे पहले पहले भाजपा ने ही इस पर सवाल खड़े किए थे। 2009 में, जब केंद्र में कांग्रेस की सत्ता थी और भाजपा कई राज्यों में चुनाव हार रही थी, तो भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे।

महाराष्ट्र और तीन अन्य राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए मतपत्रों को फिर से पेश करने की मांग की थी। लालकृष्ण आडवाणी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए कहा था कि जब आयोग ईवीएम की सुरक्षा की गारंटी नहीं लेता है, तो देश में इस माध्यम से चुनाव कराने का कोई मतलब ही नहीं बनता।

यही नहीं भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तो बाकायदा ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से लोकतंत्र को खतरे’ पर एक किताब तक लिख डाली थी। भाजपा ने उस दौरान पूरे देश में ईवीएम से धोखाधड़ी को लेकर प्रचार भी किया था।

कांग्रेस समेत सपा-बसपा सब को हुई शंका

इसी तरह 2014 में जब भाजपा रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीती, तो असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए और कहा कि भाजपा की जीत ईवीएम की वजह से हुई है।

ईवीएम पर सवाल उठाने वालों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो 2017 में चुनाव आयोग के खिलाफ ऐसा बिगुल फूंका कि केजरीवाल के विधायक सौरभ भारद्वाज ने खुलेआम ईवीएम को हैक करने का डेमो तक कर डाला। भारद्वाज ने सदन में बताया कैसे 5-स्टेप में ईवीएम को हैक किया जा सकता है।

2017 में हुए विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने सबसे पहले आरोप ईवीएम पर ही लगाया। मायावती ने एक बयान मैं कहा था कि भाजपा की जीत सिर्फ ईवीएम में हुई छेड़खानी की वजह से हुई है। मायावती के साथ-साथ अखिलेश यादव ने भी ईवीएम पर ही आरोप लगाए थे कि केंद्र में भाजपा की सरकार होने के चलते ईवीएम में छेड़खानी हुई नतीजतन उनकी पार्टी चुनाव हार गई।

2017 में हुए गुजरात चुनाव के नतीजों से पहले ही विपक्षों दलों ने ईवीएम में छेड़छाड़ का मुद्दा जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया था। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल से लेकर गुजरात कांग्रेस के नेता पहले ही कहने लगे कि अगर भाजपा ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं करती है तो गुजरात में कांग्रेस की जीत पक्की है। 

आयोग ने ईवीएम हैक करने की खुली चुनौती दी

इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, चुनाव आयोग ने 2017 के मई में राजनीतिक दलों को अपने दावे को साबित करने और ईवीएम को हैक करने के लिए खुली चुनौती दी।

आयोग ने 12 मई को ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतों को लेकर आयोजित सर्वदलीय बैठक के बाद सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों को खुली चुनौती में शामिल होने के लिए तीन जून को आमंत्रित किया था।

चुनाव आयोग ने खुला चैलेंज दिया कि मई के पहले हफ्ते से लेकर 10 मई के बीच कोई भी उनकी इन मशीनों को हैक करके दिखाए।  आयोग ने चुनौती दी कि मई के पहले हफ्ते सप्ताह से लेकर किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और टेक्नीशियन एक हफ्ते या 10 दिन के लिए आकर मशीनों को हैक करने की कोशिश कर सकते हैं।

चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि यह चुनौती एक हफ्ते या 10 दिन के लिए रहेगी और इसमें विभिन्न स्तर होंगे। इस दौरान ईवीएम में टैंपरिंग करने के साथ इन मशीनों को खोलकर उसमें भी छेड़छाड़ करने की चुनौती दी। इसके लिए आयोग ने पांच राज्यों के 12 विधानसभा क्षेत्रों में इस्तेमाल की गयी 14 मशीनों को हैक करने के लिए तैयारी रखा था।

ज्यादतर दलों ने चुनौती नहीं की स्वीकार

लेकिन आयोग की इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए ज्यादातर दल तैयार ही नहीं हुए।  3 जून को आयोजित होने वाली चुनौती को स्वीकार करने के लिए 26 मई की निर्धारित समय सीमा तक सिर्फ दो दलों एनसीपी और सीपीएम ने आवेदन किया था।  इन दलों के प्रतिनिधि तय समय पर चुनाव आयोग पहुंचे लेकिन उन्होंने ईवीएम को हैक करने में अपनी अक्षमता जाहिर की।

हालांकि ईवीएम से छेड़छाड़ के दावों को लेकर 2019 में एक और बार विवाद बढ़ा जब एक भारतीय साइबर विशेषज्ञ ने दावा किया कि 2014 के आम चुनाव में ईवीएम को हैक करके उसके माध्यम से ‘धांधली’ की गई थी।

ईवीएम को लेकर इस बार विवाद अलग कैसे?

पिछले कुछ समय से राजनीतिक पार्टियां ईवीएम में गड़बड़ी होने या उसके साथ छेड़छाड़ करने की बात कहकर उस पर सवाल उठाती रही है। लेकिन इस बार ईवीएम की गड़बड़ी की बात नहीं की जा रही। अखिलेश यादव सीधे पर ईवीएम में गड़बड़ी या छेड़खानी की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे इसकी शिफ्टिंग और मूवमेंट पर सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि ईवीएम को स्ट्रांग रूम से पोलिंग बूथ तक और वापस स्ट्रांग रुम में कैसे लाया जाता है? 

ईवीएम का मूवमेंट कैसे होता है?

जब चुनाव नहीं हो रहे होते हैं तब ईवीएम को जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ) के सीधे नियंत्रण में कोषागार या गोदाम में रखा जाता है। जहां सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षा गार्ड उसकी निगरानी करते हैं। गैर-चुनाव अवधि के दौरान, चुनाव आयोग के विशिष्ट निर्देशों के बिना ईवीएम को गोदाम से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है। इंजीनियरों द्वारा ईवीएम की प्रथम स्तर की जांच राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में की जाती है।

चुनाव होने पर

चुनाव की तारीख के करीब, ईवीएम को पार्टी के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों आवंटित किया जाता है। यदि प्रतिनिधि अनुपस्थित हैं, तो प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए आवंटित ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की एक सूची पार्टी कार्यालय के साथ साझा की जाती है। यहां से विधानसभा क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) आवंटित मशीनों का प्रभार लेते हैं और उन्हें नामित स्ट्रांग रूम में स्टोर करते हैं।

ईवीएम को पार्टी के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में विशिष्ट मतदान केंद्रों पर लगाया जाता है। चुनाव आयोग द्वारा उम्मीदवारों को सलाह दी जाती है कि वे अपने संबंधित मतदान एजेंटों के साथ मशीन नंबर साझा करें ताकि वे मतदान शुरू होने से पहले इनका सत्यापन कर सकें।

सभी मशीनों को उम्मीदवारों की सेटिंग और मतपत्रों को ठीक करने के बाद तैयार किया जाता है  और फिर उसे चालू किया जाता है। पार्टी के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में स्ट्रांग रूम को सील कर दिया जाता है। वे अगर चाहें तो ताले पर अपनी मुहर भी लगा सकते हैं।

स्ट्रांग रूम को एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के प्रभार में चौबीसों घंटे पहरा दिया जाता है, जो पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे का नहीं होता है। जहां भी संभव हो, केंद्रीय पुलिस बल इसकी सुरक्षा में लगाए जाते हैं।

एक बार सील होने के बाद स्ट्रांग रूम को केवल एक निश्चित तिथि और समय पर ही खोला जा सकता है। सभी उम्मीदवारों और उनके चुनाव एजेंटों को स्ट्रांग रूम खुलने की तारीख और समय के बारे में पहले ही बता दिया जाता है।

बूथ से वापस स्ट्रांग रूम तक

एक बार मतदान समाप्त होने के बाद, ईवीएम को तुरंत स्ट्रांग रूम में नहीं भेजा जाता है। पीठासीन अधिकारी को मशीनों में दर्ज मतों का लेखा-जोखा तैयार करना होता है। इसकी एक सत्यापित प्रति प्रत्येक उम्मीदवार के मतदान एजेंट को प्रदान की जाती है। इसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है। उम्मीदवारों और उनके एजेंटों को मुहरों पर अपने हस्ताक्षर करने की अनुमति मिलती है, जिससे वे छेड़छाड़ के किसी भी संकेत की जांच कर सकते हैं।

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उम्मीदवार स्ट्रांग रूम की निगरानी करते हैं

जब ईवीएम स्ट्रांग रूम तक जा रहा होता है तो उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम तक ईवीएम ले जाने वाले वाहनों के पीछे जाते हैं जो अक्सर मतगणना केंद्र के करीब होता है।

ईवीएम जब स्ट्रांग रूम पहुंच जाता है तो सील होने के बाद मतगणना की सुबह तक स्ट्रांग रूम नहीं खोला जा सकता। यदि किसी अपरिहार्य कारण से उसके पहले स्ट्रांग रूम खोलना पड़ता है तो वह उम्मीदवार या उसके प्रतिनिधि की उपस्थिति में ही ऐसा किया जा सकता है।

कमरा बंद होने के बाद फिर से उन्हें मुहर या अपना ताला लगाने की अनुमति मिलती है। सुरक्षा बलों को स्ट्रांग रूम के चारों ओर तीन परतों में तैनात किया जाता है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल आंतरिक रिंग की रखवाली करते हैं।

नतीजे के दिन मतगणना तभी शुरू होती है जब उम्मीदवार या उसके पोलिंग एजेंट ईवीएम की अच्छी तरह से जांच कर लेते हैं कि कहीं सील टूटी हुई तो नहीं?