रसोई गैस के बढ़े दाम, तो लोगों ने गाया ‘सखी सैंया तो खूब ही कमात है, महंगाई…’

वाराणसी, 27 फरवरी। घरेलू रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल के मूल्य में लगातार हो रही वृद्धि से लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। मूल्य में नित्य प्रतिदिन अप्रत्याशित बेलगाम वृद्धि से लोगों में आक्रोश भी व्याप्त है।

माल ढुलाई वाहन को खींच रसोई गैस, पेट्रोल के दामों में वृद्धि का जताया विरोध

सामाजिक संस्था सुबह- ए- बनारस क्लब के कार्यकर्ताओं ने शनिवार को नागरिकों के साथ  विशेश्वरगंज मंडी में माल ढुलाई करने वाले पिकअप गाड़ी को रस्सी के सहारे खींच कर एवं घरेलू सिलेंडर को भारी तादाद में सड़कों पर रखकर प्रतीकात्मक रूप से सांकेतिक विरोध प्रदर्शन किया।

इस दौरान कार्यकर्ताओं ने कहा कि ‘सखी सैंया तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है,इस गीत का जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके भाजपा 2014 में केंद्र में सत्तारूढ़ हुई। जनमानस में उम्मीद थी कि महंगाई पर अब लगाम लगेगी। लेकिन, आज का समय उस दिन की फिर से याद दिला रहा है। आज पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं,और रसोई गैस की कीमत ने रसोई घर में आग लगा दी है। सब्सिडी लेने वाली जनता को घरेलू गैस में मात्र ₹ 59 का लाभ मिल रहा है।

संस्था के मुकेश जायसवाल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है। लेकिन,  केंद्र सरकार भारी एक्साइज ड्यूटी और राज्य सरकारे  टैक्स के जरिए अपनी तिजोरी भरने में लगी है। अजब विडंबना यह है कि सरकार के आड़ मे तेल कंपनियां भी भारी मुनाफा कमा रही है। उन्होंने कहा कि महंगाई के अनुपात में यदि लोगों की आय बढ़े तो कुछ हद तक इसे न्याय संगत माना जा सकता था। कोरोना काल मे आर्थिक रुप से आम जन की आय बाजार की उदासीनता की वजह से काफी बदतर स्थिति में पहुंच चुकी है।

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अन्य वक्ताओं ने कहा कि जो पार्टी महंगाई के मुद्दे बनाकर सरकार में आई। उसके राज में रोजमर्रा उपयोग मे आने वाले सामानो मे इतनी मूल्यवृद्धि हो रही है, यह अपने आप में एक सवाल है। अगर सरकार इस गंभीर मुद्दे पर अपनी आंखें बंद रखेगी तो स्वाभाविक है, कि जनता में सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ेगा और धीरे-धीरे करके मोहभंग होता जाएगा।