बंगाल के चुनावी महासंग्राम में ओवैसी ने छोड़ा सियासी तीर, बढ़ गई ममता की मुश्किलें

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने आखिरकार बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। चुनाव के चौथे चरण में जिन विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होना है, उनमें से सात सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। यह सारे क्षेत्र मुस्लिम बहुल हैं और यहां माकपा-कांग्रेस गठबंधन पहले से ही अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को उतार कर रखा है। अल्पसंख्यक वोट बैंक बंटने से इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है।

ओवैसी ने अल्पसंख्यक बाहुल्य इलाकों में उतारे प्रत्याशी

दरअसल बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद करीब 30 फीसदी है और ऐसे में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। इससे पहले बिहार के विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। अब ओवैसी बंगाल में भी अपने मुस्लिम फैक्टर को आज़माना चाह रहे हैं।

ओवैसी ने जिन नेताओं को टिकट दिया है, उनमें ईथर सीट से मोफाककर इस्लाम, जलंगी सीट से अलसोकत जामन, सागरदिघी सीट से नूरे महबूब आलम, भरतपुर सीट से सज्जाद होसैन, मालतीपुर सीट से मौलाना मोतिउर रहमान, रतुआ सीट से सईदुर रहमान, आसनसोल उत्तर सीट से डेनिश अजीज का नाम शामिल हैं। यह सभी क्षेत्र अल्पसंख्यक बहुल हैं और यहां उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला अल्पसंख्यक मतदाता ही करते रहे हैं।

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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी जन सभाओं में बंगाल के मुस्लिम मतदाताओं के वोटों के विभाजन रोकने की अपील कर रहीं है। उन्होंने ओवैसी पर भाजपा की सहायता करने का आरोप भी लगाया है। ओवैसी के चुनाव लड़ने के फैसले पर कहा जा रहा है कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है और इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।