लिव-इन और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट से दूर रखा जाए- केंद्र का सुप्रीम कोर्ट को जवाब

केंद्र सरकार ने आज मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ों के साथ साथ समलैंगिक जोड़ों को भी सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाने का विरोध किया है. अब तक दो ही परिस्थितियों में सिंगल महिला किराए की कोख रख सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में सरकार की ओर से कहा गया कि ऐसे समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट में दायरे में लाना सही नहीं होगा क्योंकि इससे इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही इस तरह के मामलों में आगे भी दिक्कत बनी रहेगी क्योंकि किराए की कोख से जन्मे बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर हमेशा आशंका की स्थिति बनी रहेगी.

मामले की सुनवाई जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच कर रही है.

इन सिंगल महिलाओं को कोख की अनुमति

कोर्ट ने दाखिल अपने जवाब में केंद्र सरकार ने अकेली तथा अविवाहित महिला को सरोगेसी एक्ट के फायदे से बाहर रखने के अपने फैसले को सही ठहराया है. अभी सिर्फ दो ही स्थितियों में सिंगल महिला को किराए की कोख की इजाजत मिली है- पहला, या तो महिला विधवा हो और समाज के डर से खुद बच्चा न पैदा करना चाहती हो या फिर महिला तलाकशुदा हो और वो दोबारा शादी करने को इच्छुक न हो, लेकिन बच्चा पालने की ख्वाहिश रखती हो. हालांकि इन दोनों हो स्थितियों में महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा होने की शर्त रखी गई है.

केंद्र सरकार और ICMR ने ये हलफनामा सरोगेसी एक्ट के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दाखिल किया है.

यह भी पढ़ें: ‘क्या चीज डरा रही है?’ भाजपा नेत्री के इस  बयान पर क्यों भड़के कपिल सिब्बल, कही ये बात

लिव इन या समलैंगिक जोड़े कानून से बंधे नहीं

अपने जवाब के समर्थन में संसदीय कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि सरोगेसी एक्ट सिर्फ कानूनी मान्यता प्राप्त शादीशुदा पुरुष या स्त्री को ही अभिभावक के रूप में मान्यता देता है.

सरकार का कहना है कि चूंकि लिव इन जोड़े या समलैंगिक जोड़े किसी कानून से बंधे नहीं होते हैं, लिहाजा इन मामलों में सरोगेसी से जन्मे बच्चे का भविष्य हमेशा सवालों के घेरे में रहेगा.