आइआइटी कानपुर ने तैयार क‍िया कृत्रिम हृदय, जल्‍द जानवरों पर शुरु होगा परीक्षण

दौड़ती-भागती जीवनशैली और कोरोना जैसी संक्रामक बीमारियों के बाद हृदय रोगों में तेजी आ रही है। अचानक दिल का दौरा लोगों की जान ले रहा है। इसके बचाव में अब हृदय रोगियों के लिए आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिकों और हृदय रोग विशेषज्ञ ने मिलकर कृत्रिम दिल तैयार किया है जिससे हृदय का प्रत्यारोपण हो सकेगा। केजीएमयू के 118वें स्थापना दिवस के अवसर पर आइआइटी कानपुर के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने बताया कि 2023 में ट्रायल होने के बाद संभवत आने वाले दो वर्षों में कृत्रिम हृदय का प्रत्यारोपण इंसानों में किया जा सकेगा।

केजीएमयू के सेल्बी हाल में शनिवार को 118 वर्ष पूरे होने के उपलब्ध में स्थापना दिवस समारोह किया गया। इस अवसर पर केजीएमयू के 52 मेधावी विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल सिल्वर मेडल समेत कई पुरस्कारों से नवाजा गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो. अभय के साथ विशिष्ट अतिथि के तौर पर केजीएमयू के मानसिक चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. प्रभात सिथोले, केजीएमयू कुलपति डा. बिपिन पुरी, प्रति कुलपति डा. विनीत शर्मा समेत कई चिकित्सक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

आइआइटी कानपुर और हृदय रोग विशेषज्ञ ने मिलकर तैयार किया कृत्रिम दिल

प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि संस्थान के 10 वैज्ञानिक और चिकित्सकों की टीम ने कृत्रिम दिल तैयार किया है। आने वाले फरवरी से पहले फेस का ट्रायल शुरू किया जाएगा।

कृत्रिम हृदय का उद्देश्य शरीर में खून को सही रूप से सभी अंगों तक पहुंचाना होगा यदि कामयाबी मिलती है तो इससे प्रत्यारोपण भी किया जा सकेगा।

हालांकि वर्तमान में अभी इसमें काम चल रहा है। प्रो अभय ने कहा कि कोरोना काल ने हमें कई तरह से मजबूत बनाया है।

भारत में चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने मिलकर इलाज के कई नए तकनीक तैयार की और संक्रमितों की जान बचाई है।

विदेशों से 10 से 12 लाख रुपए में आने वाले वेंटिलेटर को महज 90 दिन में तैयार कर सिर्फ ढाई लाख रुपए में ही भारत के वैज्ञानिकों ने उपलब्ध कराया।

अभी भी इलाज में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों पर और अधिक काम करने की आवश्यकता है। देश में सिर्फ 20% उपकरण ही तैयार होते हैं। 80 फीसद इंप्लांट विदेशों से लाए जाते हैं।

इनमें सबसे ज्यादा उपकरण दिल के मरीजों के लिए होते हैं। इस ओर काम करने की जरूरत है।

देश में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी

प्रो. अभय ने देश में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों के कम संख्या पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एक हजार व्यक्तियों पर सिर्फ 0.8 चिकित्सक ही हैं।

इस कमी को तकनीकी से हल किया जा सकता है। इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, टेलीमेडिसिन, ईसंजीवनी और ई-फार्मेसी जैसी तकनीक को बढ़ाकर 5जी से जोड़ा जा सकता है जिससे अधिक से अधिक मरीजों को समुचित इलाज मिल सके।

विशिष्ट अतिथि डा. प्रभात सिथोले ने कहा कि भावी चिकित्सकों को कक्षाओं के साथ मरीजों और तीमारदारों से बातचीत कर उनकी मानसिक स्थिति को भी समझना चाहिए।

मरीजों का भरोसे के साथ आप एक बेहतर चिकित्सक में बन सकते हैं और साथ ही अस्पताल के कर्मचारियों के साथ भी समन्वय जरूर बनाकर रखें।

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इस मौके पर केजीएमयू कुलपति डा. बिपिन पुरी ने कहा कि मरीजों के इलाज और चिकित्सा व्यवस्था में लगातार नए उपकरण और तकनीक सामने आ रहे हैं। इससे न केवल शोध को बढ़ावा मिल रहा है पर साथ ही मरीजों का इलाज भी आसान हो रहा है।