कैसे एक बेरोजगार ने रातोंरात खड़ा किया बड़ा सियासी भूचाल

मजबूत कदकाठी के सामान्य से दिखने वाले हार्दिक पटेल के चेहरे पर एक खास बात जरूर है, वो है उनका जबरदस्त आत्मविश्वास. खरीखरी बातें करने की हिम्मत. ऐसा बड़ा आंदोलन खड़ा करने का कौशल जो अच्छे अच्छों के वश की बात नहीं है. उन्होंने कुछ साल पहले गुजरात में जो कुछ किया था, वो किसी सपने से कम नहीं था. वर्ष 2015 में जिस तरह गुजरात में पाटीदार पटेलों का आंदोलन पूरे सूबे में छा गया, वो कोई सोच भी नहीं सकता था. वो केवल एक ऐसे चेहरे का कमाल था, जो युवा था, बेरोजगार था, बहुत ही मामूली परिवार से आय़ा था. उम्र थी महज 20 साल.

खुद सोचिए इस उम्र में भला कोई युवा कैसे इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकता है कि राज्य के साथ केंद्र की सरकार भी हिल जाए. वो चेहरा देश का चर्चित चेहरा बन जाए. वो जब बोलता था तो हजारों लाखों पटेल उनके पीछे खड़े हो जाते थे. वर्ष 2015 में अहमदाबाद में हुई हार्दिक पटेल की रैली तो वाकई ऐतिहासिक कही गई. हालांकि इसके बाद उन पर कई आरोप भी लगे. कई कानून तोड़ने पर मुकदमा हुआ लेकिन हार्दिक पटेल तब ऐसा करिश्मा बन गए थे, जिन्हें रोकना असंभव लगने लगा था.

आज वही हार्दिक पटेल कांग्रेस नेतृत्व से खासे नाराज हैं. नाराजगी में उन्होंने साफतौर पर कांग्रेस को चेतावनी ही दे दी है या तो उनके लिए वास्तविकता में भूमिका तय करें और उन्हें आगे लाएं अन्यथा वो अपना कोई दूसरा रास्ता देखें. हालांकि कांग्रेस की इन दिनों जो हालत है, उसमें हर सूबे में उसके लिए ऐसी ही दिक्कतें हो रही हैं. क्षेत्रीय क्षत्रप नाराज हैं और सीधे आलाकमान को चुनौती दे रहे हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि वर्ष 2017 में हुए गुजरात चुनावों में उन्होंने कांग्रेस के लिए जमकर प्रचार किया था और बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती भी खड़ी की थी. ये माना गया कि कांग्रेस ने उस चुनाव में जो सीटें हासिल कीं, उसमें हार्दिक की भूमिका भी थी. हालांकि इसमें 17 विधायक फिर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. गुजरात में अब फिर चुनाव आने वाले हैं. इस साल के आखिर में सूबे के विधानसभा चुनावों से पहले सियासी गोटें बिछने लगी हैं.

कैसे यहां तक पहुंचे

एक मंझे हुए नेता की तरह हार्दिक ने सही समय पर कांग्रेस आलाकमान के सामने नाराजगी जाहिर की है. हार्दिक की नाराजगी की वजहें हैं. जिसका जिक्र हम आगे करेंगे उससे पहले ये देखते हैं कि कैसे हार्दिक ने सियासत में आए बगैर पाटीदार पटेलों का बड़ा आंदोलन खड़ा किया था. वो यहां तक कैसे पहुंचे.

मामूली व्यवसायी परिवार से

हार्दिक का जन्म गुजरात के वीरमगाम में 20 जुलाई 1993 को हुआ था. वह अभी 28 साल के हैं लेकिन सियासी परिपक्वता में उनका जवाब नहीं है. कम समय में उन्होंने बड़ी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बनाई है. उनके पिता सबमर्सीबल पंप लगाने का मामूली व्यवसाय करते थे. हार्दिक भी स्कूल में पढ़ने और इंटर पास करने के बाद पिता के व्यवसाय में मदद करते थे. परिवार मामूली आमदनी वाला था. पिता अपने व्यवसाय के साथ कांग्रेस के कार्यकर्ता भी थे.

कॉलेज में हुई नेता बनने की शुरुआत

पढ़ने में वो सामान्य स्टूडेंट थे. क्रिकेट से जबरदस्त लगाव था. जुनूनी भी थे. जो सोचते थे कर लेते थे. उनके नेता बनने की शुरुआत 2010 में हुई. वह अहमदाबाद पढ़ने गये. वहां सहजानंद कॉलेज में उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया. जनरल सेक्रेटरी के पद पर अनअपोज्ड चुने गए. सियासी कीड़ा यहीं से उनके जीवन में असली मायनों में दाखिल हुआ.

सरदार पटेल ग्रुप ज्वाइन किया और छोड़ना भी पड़ा

इसके बाद उन्होंने पटेलों के असरदार संगठन सरदार पटेल ग्रुप को ज्वाइन किया. ये पाटीदार पटेलों की युवा संस्था है. एक महीने से भी कम समय में उन्हें वीरमगाम की जिला ईकाई का प्रमुख बना दिया गया. हालांकि बाद में इस ग्रुप के प्रमुख से उनके मतभेद हुए और उन्हें हटना पड़ा. लेकिन उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बस आने वाला था, जो उनके जीवन को बदलने वाला था.

ये था वो टर्निंग प्वाइंट जिसने हार्दिक को पहचान दी

वर्ष 2015 में उनकी बहन को बहुत अच्छे नंबर्स के बाद भी स्कॉलरशिप नहीं मिली. उन्हें पता चला कि उनकी बहन की एक दोस्त के बहुत कम नंबर आने के बाद भी उसे स्कॉलरशिप इसलिए मिली, क्योंकि वो ओबीसी यानि अन्य पिछड़ा वर्ग में आती थी. बस यहीं से उन्होंने पाटीदार पटेलों को भी ओबीसी में आरक्षण देने के लिए आंदोलन करने का फैसला किया.

शुरू में जिसने भी उनके इस आंदोलन के बारे में सुना, उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया लेकिन हार्दिक अपनी आदत के अनुसार इस मामले में अड़ चुके थे और टस से मस हुए बगैर कुछ करना चाहते थे.

पाटीदार आरक्षण आंदोलन शुरू किया

उन्होंने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का गठन किया. ये भाषण देने लगे कि आखिर सरकारी नीतियों का फायदा पाटीदार पटेलों को क्यों नहीं मिल पा रहा है. उन्हें भी ओबीसी में शामिल करके आरक्षण देना चाहिए. इस समिति से लोग जुड़ने लगे. पाटीदार पटेलों के भीतर उनमें एक नेता और जोश नजर आया. पहले वो अपने जिले में हाथों हाथ लिए गए और फिर अगल बगल के जिलों में उनके पाटीदार आरक्षण आंदोलन की चर्चाएं फैलने लगी.

देखते ही देखते ये आंदोलन गुजरात में फैल गया

जुलाई 2015 से उनका ये आंदोलन गुजरात में बड़ा आंदोलन बन चुका था. पाटीदार पटेल बड़ी तादाद में गुजरात के हर जिले में जुटकर इस आंदोलन में शिरकत कर रहे थे. पहले तो गुजरात की बीजेपी सरकार ने हार्दिक और उनके आंदोलन को हल्के में लिया. उन्हें लगा कि इसे फुस्स होते देर नहीं लगेगी. लेकिन ऐसा होने वाला नहीं था. हार्दिक सूबे में हर जगह जाकर लगातार रैलियां कर रहे थे और पाटीदार लोग उनमें अपना नया नेता देख गर्व से फूले नहीं समाते थे.

अहमदाबाद की रैली तो अभूतपूर्व थी

खासकर 25 अगस्त 2015 को जब उन्होंने अहमदाबाद के जीएमजीसी मैदान में रैली की तो ये अभूतपूर्व सभा में तब्दील हो गई. हर ओर से इसमें पाटीदार पटेल पहुंचे. हर उम्र के पहुचे. युवा से लेकर बुजुर्ग तक. ये इतनी बड़ी संख्या थी कि गुजरात सरकार को अहसास हो गया कि ये आंदोलन बहुत बड़ा हो चुका है और हो भी चुका था.

केस दर्ज हुए लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गए

हालांकि इस विशाल रैली के बाद गुजरात में हिंसा, तोड़फोड़ भी शुरू हो गई. उग्र पाटीदार पटेलों ने कई जगह अपनी नाराजगी उग्र तरीके से जाहिर की तो गुजरात में कई शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना बुलानी पड़ी. हार्दिक पर देशद्रोह से लेकर कई मुकदमे ठोक दिए गए. उन्हें गिरफ्तार भी किया गया. कुल मिलाकर देखते ही देखते 20 साल का वो युवा हार्दिक पटेल राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गया. देशभर में अखबारों से लेकर टीवी तक केवल उसी की चर्चा थी.

हाईकोर्ट ने सजा सुनाई

25 जुलाई 2018 को गुजरात हाईकोर्ट ने उन्हें उपद्रव, बलवा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी पाया और 50 हजार आर्थिक दंड के साथ दो साल के कैद की सजा सुनाई. उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग गई. इसी वजह से वो अब तक चुनाव नहीं लड़ पाए थे. इस सजा के खिलाफ वो सुप्रीम कोर्ट गए. 12 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस सजा पर रोक लगा दी है. इसका मतलब ये हुआ कि वो चुनाव लड़ सकते हैं.

क्यों कांग्रेस से नाराज हैं

हार्दिक ने वर्ष 2017 के चुनावों में कांग्रेस का जमकर समर्थन किया. उन्हें चुनाव लड़ाया. इसके बाद वो खुद कांग्रेस में शामिल हो गए. फिर कांग्रेस ने पिछले दो सालों से उन्हें गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष  बनाया हुआ है. हालांकि हार्दिक का आरोप है कि पार्टी ना तो अपने किसी फैसले में उन्हें साथ लेती है और ना ही उन्हें बैठकों में बुलाया जाता है.

क्या अब लग्जरी लाइफ जीते हैं

वैसे एक जमाने के जुझारू हार्दिक पहले जितनी सादगी से रहते थे, अब उनका रहनसहन एकदम बदल गया है. उनके ही दो साथियों केतन पटेल और चिराग पटेल ने उन पर पटेल आरक्षण आंदोलन में आए फंड के दुरुपयोग का आरोप लगाया. वैसे हार्दिक को जानने वाले बताते हैं कि अब वो लग्जरी लाइफ जीने लगे हैं.

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क्यों कांग्रेस से नाराजगी जाहिर कर रहे हैं

दरअसल पूरा मामला इस साल के आखिर में गुजरात राज्य के चुनावों से पहले कांग्रेस में अपनी पकड़ मजबूत करने और खुद को मुख्य भूमिका में देखने की है. एक समय तो वो खुद पाटीदार पटेलों के संगठन खोडलग्राम ट्रस्ट के प्रमुख नरेश पटेल को कांग्रेस में लाना चाहते थे. अब ये चर्चाएं हैं कि ना केवल नरेश कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं बल्कि कांग्रेस का सीएम चेहरा भी हो सकते हैं. ये बात हार्दिक को विचलित कर रही है. लिहाजा वो पक्का करना चाहते हैं कि कांग्रेस में उनकी भूमिका कैसी और कितनी होगी. अन्यथा वो अपना कोई दूसरा रास्ता भी देख सकते हैं.

नरेश पटेल पाटीदार पटेल में लेऊआ पटेल हैं, जिनकी संख्या और असर ज्यादा है. वहीं हार्दिक कड़वा पटेल हैं. अब तक पाटीदार पटेल बीजेपी के कोर वोटर थे लेकिन अब वो बीजेपी से कुछ मामलों में नाराज भी बताए जा रहे हैं.