ब्राह्मण-बनिया के आरोपों से तिलक तराजू और तलवार तक, सबाल्टर्न हिंदुत्व की थ्योरी बंगाल के बाद UP में भी बीजेपी के लिए रही कारगर

ब्राह्मण-बनिया की पार्टी का आरोप झेलती बीजेपी हालिया वर्षों में इससे कहीं आगे निकल चुकी है। उत्तर प्रदेश में देखा जाए तो राजपूत महंत हैं और महंत ने पूरा खेल ही बदल दिया है और नतीजा पार्टी एक बार फिर से जबरदस्त ढंग से जीत दर्ज करती नजर आ रही है। बहुत पहले बहुजन समाज पार्टी ने नारा दिया था तिलक तराज़ू और तलवार इनको मारो जूते चार। वर्तमान में देखें तो भाजपा के पास तिलक, तराजू और तलवार तीनों ही है। तलवार गर्वित राजपूत का प्रतीक है और राजपूत-महंत फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। लेकिन बहुजन समाज पार्टी के पुराने नारे से ‘जूते मारने वाले’ अब बड़ी संख्या में चुनाव दर चुनाव भाजपा को वोट दे रहे हैं।

इसे आंकड़ों की बदौलत भी आप समझ सकते हैं। लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षण के अनुसार 2014 में लगभग एक-चौथाई (24%) की तुलना में 2019 में एक तिहाई (34%) से अधिक दलितों ने भाजपा को वोट दिया। बंगाल में दलित आबादी 23 प्रतिशत हैं। बंगाल में भाजपा द्वारा जीती गई 77 सीटों में से 38 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थीं। बंगाल में एससी और एसटी उम्मीदवारों के लिए 84 सीटें आरक्षित हैं। भाजपा ने एससी के लिए आरक्षित 31 सीटें और एसटी के लिए आरक्षित सात सीटें जीतीं।

बीजेपी का ये प्रदर्शन मोटे तौर पर उन लोगों को संदर्भित करती है, जिन्होंने कोविड -19 के दौरान शौचालय निर्माण, एलपीजी कनेक्शन, गरीबों के लिए आवास, मुफ्त राशन की मोदी सरकार की योजनाओं से लाभान्वित किया। निम्न वर्ग, जरूरी नहीं कि केवल निम्न जातियां से ही संबंधित हो। 2021 में बंगाल चुनाव से पहले, सबाल्टर्न हिंदुत्व की बात की गई थी, जिसका मूल रूप से मतलब था कि भाजपा की निगाह ऊपर से नीचे की ओर बढ़ना और समाज के उन वर्गों के लिए चुपचाप काम करना जो पीछे छूट गए हैं। भाजपा के बंगाल हारने के बाद चुनावी पंडित ने सबाल्टर्न हिंदुत्व की थ्योरी को खारिज कर दिया।

कमल एक बार फिर खिला, ‘टीपू’ नहीं बन पाए सुल्तान; BJP की बढ़त के 10 बड़े कारण

जैसे ही उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 आया कई चुनावी पंडितों ने कहा कि ठाकुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तहत ‘ठाकुरवाड़’ भाजपा सरकार को मटियामेट करने वाला है। मजे की बात यह है कि अन्य बातों के अलावा, जिन सरकारी अधिकारियों के उपनाम में ‘सिंह’ था, उन्हें यह साबित करने के लिए दिखाया जा रहा था कि योगी ठाकुर को हर चीज का प्रभारी बना रहे हैं। हालांकि ‘सिंह’ उपनाम का उपयोग गुर्जर, भूमिहार, कुर्मी और जाट जैसी अधिकांश जातियों द्वारा किया जाता है। लेकिन पंडितों से बहस करने का कोई मतलब नहीं है। तो, उत्तर प्रदेश चुनावों में बीजेपी का क्या कहना है? बीजेपी के अलावा कोई नहीं जानता। मुद्दा यह है कि ओबीसी प्रधानमंत्री हों या राजपूत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, जब तक भाजपा अपनी कल्याणकारी योजनाओं को अंतिम छोर तक पहुंचाने की कोशिश करती है, तब तक उसका कल, आज और कल उज्ज्वल दिखाई देगा।