किसानों की झोंपड़ी में लगे एसी और कूलर, ऐसे आलिशान तरीके से हो रहा आंदोलन

सिंघु बॉर्डर पर अपनी माँगों को लेकर धरने पर बैठे किसानों को कड़ाके की ठंड के बाद अब झुलसा देने वाली गर्मी सता रही है। लेकिन किसान इसके बावजूद टस से मस होने को राजी नहीं हैं। हालांकि किसानों ने यहां की गर्मी से निपटने के लिए सभी तरह के जरूरी इंतजाम कर लिए हैं। किसानों ने यहां पर कई तरह के कच्चे और पक्के मकाननुमा और झोपडीनुमा सेल्टर्स बना लिए हैं। यह सेल्टर्स काफी उन्नत किस्म के हैं जिन पर गर्मी का असर कम होता है, लेकिन खुला एरिया होने के कारण यहां का तापमान कुछ ज्यादा ही गर्म और उमस वाला होता है। जिस कारण यहां पर रहना बेहद मुश्किल भरा होता है, इससे बचने के लिए किसानों ने यहां पर अपने सेल्टर्स और झोपड़ियों में एयरकंडिशन और एयर कूलर लगा लिए हैं। इतना ही नहीं एयरकंडिशन और एयर कूलर यहां पर खड़ी ट्रैक्टर ट्रोलियों में भी लगे देखे जा सकते हैं।

जिसमें किसान आराम से अपना समय गुज़ार सकते हैं। बताया जाता है कि वैसे तो इन सभी तरह की मशीनों को चलाने के लिए जुगाड़ तकनीक भी है, लेकिन फिलहाल यहां पर बराबर के गांव व दुकान शोरूमों से 24 घंटे की बिजली का इंतजाम किया गया है। धरनास्थल पर बनाए गए मेटल ट्रेक्चर के सेल्टर्स तो इस तरह से तैयार किए गए हैं कि उनमें वैंटीलेशन की कोई समस्या नहीं है और वे दूसरे सेल्टर्स की अपेक्षा काफी ठंडे रहते हैं। कुछ बड़े सेल्टर्स ऐसे किसानों के लिए तैयार किए गए हैं, जिनमें पंजाब या अन्य इलाको से आकर किसान सीधे ठहर सकते हैं, ये वातानुकूलित सेल्टर्स काफी बड़े हैं और यहां पर एक बार में 50 से 60 लोग आसानी से सो सकते हैं। इसके अलावा यहां पर किसानों को पीने के लिए बोतलबंद ब्रांडेड पानी का इंतजाम है, जिसे ठंडा करने के लिए बड़े- बड़े रेफ़्रीजरेटर लगाए गए हैं, लेकिन थोड़ी-थोड़ी दूरी पर वॉटर कूलर भी लगा दिए गई हैं। खाने-पीने के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी आरओ का होता है।

फिरोजपुर से आए युवा किसान सिमरनजीत सिंह पेशे से इंजीनियर हैं। उनका कहना है कि हमारे जिले से करीब 25 से 30 लड़के हैं जो यहाँ पर बारी- बारी से एसी कूलर और दूसरी तरह कि मशीनों को सुचारु रूप से चलाने की सेवा दे रहे हैं। यहां पर हमने इस तरह के इंतज़ाम किए हुए हैं कि किसानों को किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी। यहां पर कुछ ऐसी बड़ी ट्रोलियां भी बना कर रखी गई हैं, जिनपर बड़े-बड़े कूलर फिट किए गए हैं, जिन्हें जरूरत पड़ने पर कहीं भी ले जाकर लगाया जा सकता है।

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अमृतसर से आए सरदार रणजीत सिंह का कहना है कि यहां पर किसी भी तरह का कोई भी स्ट्रेकचर बनाने के लिए मैटेरियल तो हम पंजाब से ही ला रहे हैं, लेकिन छोटी-मोटी ज़रूरतों के लिए दिल्ली में रहने वाले सिख किसान भाई भी हमें मदद कर देते हैं। आंकड़ों की मानें तो अभी यहां पर 10 से12 हजार किसान रह रहा है, ये आंकड़ा घटता बढ़ता रहता है, लेकिन यहां रहने वाले किसानों को मौसम से कोई डर नहीं है, किसानों का कहना है कि वह आने वाले बरसात के मौसम के लिए भी पूरी तरह से तैयार हैं। हम अपनी मांगों पर अड़े हैं और सरकार को काले कृषि कानून वापस लेने ही पड़ेंगे।