कानपुर के खेरेश्वर मंदिर में मुक्ति के लिए रोज आते है महाभारत के अश्वत्थामा

भगवान भोलेनाथ ‘शंकर’ की आस्था का पर्व शिवरात्रि गुरुवार को है और जनपद के सभी शिवालयों में इसको लेकर तैयारियां की जा रही हैं। इन सभी शिवालयों में खेरेश्वर मंदिर का शिवालय कुछ अलग ही है। यहां के शिवालय का इतिहास महाभारत काल से है और बताया जा रहा है कि इस मंदिर से महाभारत काल में कौरवों के पक्ष से युद्ध लड़ने वाले अश्वत्थामा का विशेष लगाव रहा है। युद्ध में हार के बाद अश्वत्थामा अपनी मुक्ति के लिए आज भी रोजाना खेरेश्वर मंदिर में शिवलिंग की पूजा करने आता है। खासकर शिवरात्रि के दिन यहां पर भक्तों की अच्छी खासी भीड़ रहती है और अश्वत्थामा के पूजा करने के बाद भक्त यहां पर धूमधाम से भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाते हैं।

गंगा के सुरम्य तट के समीप शिवराजपुर ब्लॉक में छतरपुर गांव बसा हुआ है और यहां पर प्राचीन शिवमंदिर है, जिसे खेरेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि द्वापर युग में महाभारत के समय से इसी मंदिर पर द्रोणाचार्य व उसके पुत्र अश्वत्थामा ने साधना की थी। द्वापर युग में गंगा की कल-कल लहरें यहीं से होकर गुजरती थीं और आज करीब ढाई किलोमीटर दूर गंगा की जलधारा बह रही है। उस समय यह इलाका कर्ण प्रदेश के अन्तर्गत आता था। द्रोणाचार्य की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने दर्शन भी दिये थे। उन्होंने शिवलिंग की पूजा करने के साथ इसी स्थान को अपनी तपोस्थली बना दिया था। कौरव-पाण्डव को इसी जगंल में द्रोणाचार्य ने शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया था, जब अर्जुन और अश्वत्थामा ने ब्रह्मअस्त्र का प्रयोग किया तो ऋषियों ने अपने तेज से इस धरा को बचाने के लिए दोनों ब्रह्मअस्त्र को टकराने से रोक दिया। अर्जुन ने अपने ब्रह्मअस्त्र को वापस ले लिया पर अश्वत्थामा इसे वापस लेने की कला नहीं जानते थे। तभी भगवान कृष्ण ने श्राप देते हुए अश्वत्थामा के माथे की मणि को निकाल लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि वह धरती पर तब तक पीड़ावश जीवित रहेगा जब तक स्वयं महादेव उसे उसके पापों से मुक्ति न दिला दें। तभी से ये कहा जाता है कि महादेव से मुक्ति की प्रार्थना के लिए यहां अश्वत्थामा हर रोज सबसे पहले जल चढ़ाने आता है।

प्राचीन तालाब से दूर होतें है कुष्ठ रोग

खेरेश्वर मंदिर के पास ही एक प्राचीन तालाब है, जिसकी मान्यता है कि उसमें स्नान करने से त्वचा व कुष्ठ रोग दूर हो जाते हैं। पुजारी आकाश पुरी गोस्वामी की मानें तो प्रतिदिन मंदिर का पट खोलने पर शिवलिंग के ऊपर सफेद फूल और जल चढ़ा मिलता है। यह क्रम सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है। वह बताते हैं पहले कई बार लोगों ने रात में जागकर मंदिर की निगरानी की लेकिन भोर होने से पहले उनकी झपकी लग गई। काफी समय पहले कुछ लोग रात में जागते रहे और भोर होने पर उन्हें एक विकराल सफेद साया दिखाई दिया। उसे देखकर वो भयवश बेहोश हो गए और सुबह कुछ भी ठीक से बताने में घबराते रहे।

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शिवरात्रि पर होती है विशेष पूजा

मंदिर में भगवान शिव की नित्य दर्शन करने आने वाले गोविन्द अवस्थी बताते हैं कि मंदिर में खेरेश्वर बाबा के पूजन की विशेष मान्यता है, यहां दर्शन पूजन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सावन में एक माह तक मेला चलता है और शिवरात्रि पर विशेष पूजन का कार्यक्रम होता है। मंदिर में ग्रामीण व शहरी इलाके के अलावा दूरस्थ जनपदों से लोग दर्शन पूजन करने आते हैं। शिवरात्रि पर कांवडिय़ों की भीड़ लगती है। भक्त व कांवड़िए गंगा जल लेकर ढाई किमी पैदल चलकर मंदिर पहुंचते हैं और जलाभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि पर सुबह रुद्राभिषेक का अनुष्ठान संपन्न होता है। मंदिर के महंत जगदीश पुरी का कहना है कि 36 पीढ़ियां इस मंदिर की सेवा करते आये हैं। यह आस्था और विश्वास लोगों में है हमारे पूर्वजों ने अश्वाथामा को देखा भी है। अश्वाथामा आज भी सबसे पहले दर्शन करने आते हैं। बताया कि मन्दिर के पट साल में भादों मास के आखिरी शनिवार और शिवरात्रि को बन्द नहीं होते हैं। दो दिन भगवान का शृंगार और पूजन पूरी रात होता है।