जल संचयन के अनूठे प्रयास से 534 गांव स्वच्छ पेयजल से हो रहे लाभान्वित

केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के अंर्तगत हर घर जल, हर घर नल को जमीन पर उतारने के अनूठे प्रयास की सफलता से उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तरप्रदेश के लगभग 534 गांव स्वच्छ पेयजल से लाभान्वित हो रहे हैं। यहां स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) की प्रायोजित संस्था हिमालयन इंस्टीट्यूट हॉस्पिटल ट्रस्ट (एचआईएचटी) की ओर से जल आपूर्ति व संरक्षण के लिए अनूठा प्रयास किया गया है। इसके अंतर्गत विश्वविद्यालय के कैंपस में रोजाना 07 लाख लीटर पानी रिसाइकिल कर सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जल आपूर्ति व संरक्षण की सफलता के बाद संस्था ने विश्वविद्यालय से बाहर भी उत्तराखंड एवं उत्तरप्रदेश के 534 गांवों में स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता योजनाओं का निर्माण करवाया। साथ ही 7000 हजार लीटर क्षमता के लिए 600 से ज्यादा जल संरक्षण टैंकों का निर्माण एवं 71 ग्रामों में जल संवर्धन का कार्य करवाया गया है।

स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया कि उत्तराखंड वासियों के लिए जल, जंगल, जमीन सिर्फ नारा नहीं, बल्कि पहचान है। पानी की महत्ता को देखते हुए उनके संस्थान में 23 वर्ष पहले ही जल आपूर्ति व संरक्षण के लिए एक अलग वाटसन (वाटर एंड सैनिटेशन) विभाग का गठन किया था। इसके पश्चात वाटसन की टीम ने उत्तराखंड के सुदूरवर्ती व सैकड़ों गांवों में पेयजल पहुंचाया है। इन्हीं उपलब्धियों को देखते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने एचआईएचटी को राष्ट्रीय जल जीवन मिशन की हर घर जल हर घर नल योजना का सेक्टर पार्टनर नामित किया है। 

रोजाना सात लाख लीटर पानी होता है शोधित

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया कि एसआरएचयू कैंपस में करीब 1.25 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाया गया है। इस प्लांट के माध्यम से 07 लाख लीटर पानी को रोजाना शोधित किया जाता है। शोधित पानी को पुनः कैंपस में सिंचाई व बागवानी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भविष्य में इस प्लांट की क्षमता बढ़ाकर इसी शोधित पानी को शौचालय में भी इस्तेमाल को लेकर हम कार्य कर रहे हैं।

लगवाए जाएंगे वाटर लेस यूरिनल

उन्होंने बताया कि जल संरक्षण के लिए हमने एक और कारगर शुरुआत की है। विश्वविद्यालय के सार्वजनिक शौचालयों में अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित वाटर लेस यूरिनल लगवाए जा रहे हैं। शुरुआती चरण में अभी तक 100 से ज्यादा वाटर लेस यूरिनल लगाए जा चुके हैं। भविष्य में इस तरह के वाटर लेस यूरिनल कैंपस के सभी सार्वजनिक शौचालयों में लगवाए जाएंगे। स्वच्छता के दृष्टिकोण से भी यह बेहतर है। अमूमन एक यूरिनल से हम प्रतिवर्ष लगभग 1.50 लाख लीटर पानी को बर्बाद होने से बचाते हैं। बरसाती पानी के सरंक्षण के लिए एसआरएचयू कैंपस में वर्तमान में करीब 50 लाख रुपये की लागत से 12 रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट बनाए गए हैं। इन सभी से सलाना करीब 40 करोड़ लीटर बरसाती पानी को रिचार्ज किया जा सकता है।

जल संरक्षण के लिए अभिनव पहल

उन्होंने बताया कि कैंपस में जल संरक्षण के लिए अभिनव पहल शुरू की गई है। इस नवीन योजना के मुताबिक प्लास्टिक की एक लीटर वाली खाली बोतल में आधा रेत या मिट्टी से भरकर ढक्कन लगा देते हैं। अब अपने टॉयलेट की सिस्टर्न (फ्लश टंकी) के भीतर उसमें बोतल रख दें। इससे आपके सिस्टर्न में बोतल के आयतन (एक लीटर) के बराबर पानी कम आएगा। यानी जब भी आप फ्लश चलाएंगे तो एक लीटर पानी की बचत होगी। इससे सिस्टर्न की कार्यकुशलता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। एक परिवार में औसतन प्रतिदिन 15 बार फ्लश चलाई जाती है तो इस प्रकार प्रतिदिन 15 लीटर पानी की बचत होगी। कैंपस में करीब 1500 शौचालय हैं। इस तरह हम सालाना करीब 50 लाख लीटर पानी बचा पाएंगे।

वर्षा जल को चार चरणों में किया जाता है संचय

कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट के बहुत फायदे हैं। ऐसा करने से बरसाती पानी आसानी से जमीन में समा जाता है, जिस कारण जमीन में पानी का स्तर बना रहेगा। कैंपस में वर्षा जल को पुन: विभिन्न विधियों द्वारा चार चरणों में संचय किया जाता है। प्रथम चरण में कैंपस में वर्षा के जल को रेन वाटर पाइप के द्वारा एकत्रित कर उसे एक चैम्बर में डाला जाता है। इस चैम्बर में एक जाली लगी होती है, जिसमें घास-फूस व पत्ते आदि जल से अलग हो जाते हैं। दूसरे चरण में, जल चैम्बर के अंदर जाली से छनकर पाइप के द्वारा फिल्टर टैंक में पहुंचाया जाता है। तीसरे चरण में, जल को फिल्टर टैंक में डाला जाता है। यहां पर भी तीन चैम्बर होते हैं। पहले में जल अंदर जाता है, दूसरे में फिल्टर से होकर साफ होते हुए तीसरे चैम्बर में एकत्रित होता है। चौथे चरण में, जल फिल्टर टैंक से निकलकर रिचार्ज पिट या रिचार्ज बोर वेल के अंदर चला जाता है। जिससे कि इस जल को जमीन के अंदर संचय करते हैं जो कि वाटर लेवल को कायम रखने में सहायक होता है।

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बचा सकते हैं पानी

उन्होंने बताया कि देहरादून में एक लाख से अधिक सिस्टर्न हैं अगर, इस योजना को पूरे देहरादून शहर में लागू किया जाए तो प्रति दिन 15 लाख लीटर पानी बचा सकते हैं। इस तरह वर्ष में यह बचत बढ़कर करीब 54,750,000 (54.75 करोड़) लीटर होने का अनुमान है। खास बात यह है कि इससे आपकी दिनचर्या पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा।